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पद्मश्री टॉम ऑल्टर
'मैं फिल्म लाइन में आया था राजेश खन्ना बनने के लिए, राजेश खन्ना तो बन नहीं पाया, पर कम से कम टॉम ऑल्टर तो बन गया. यह ज्यादा मुश्किल काम था. एक आदमी को जिंदगी से और क्या चाहिए? मैंने राजेश खन्ना के साथ एक्टिंग की, सुनील गावस्कर के साथ क्रिकेट खेला, शर्मिला टैगोर के साथ अभिनय किया, पटौदी साहब, मिल्खा सिंह से मिला, दिलीप कुमार, देव आनंद, राजकपूर के साथ काम करने मुझे का मौका मिला. ये जो जवानी के सारे सपने थे, वे पूरे हुए. मेरी तकरीबन 400 फिल्में रिलीज हुई हैं. उनमें मैंने अच्छे-बुरे, तमाम तरह के काम किए. यह सिलसिला आज भी चल रहा है. रोज सुबह उठकर दुआ करता हूं कि मरते दम तक यह सिलसिला चलता रहे. क्रिकेट को लेकर मेरी दीवागनी जबर्दस्त थी. मैं अपने आपको खुशनसीब मानता हूं कि मैंने सुनील गावस्कर के साथ खेला. सचिन तेंदुलकर का पहला इंटरव्यू किया. हालांकि मेरी दिली तमन्ना यही थी कि एक दिन मैं हिन्दुस्तान के लिए खेलूं, पर मैं उतना अच्छा खिलाड़ी बन नहीं पाया. फिर भी हिन्दुस्तान के जो बड़े-बड़े खिलाड़ी हैं, जिन्हें मैं भगवान मानता हूं, उन सबके साथ खेलने का मौका मिला. चाहे वह अशोक मांकड हों, सोलकर हों, दिलीप वेंगसरकर हों, मोहिंदर अमरनाथ, सबा करीम हों या बिशन सिंह बेदी.
पिताजी के तीन सबक
(1) एक बार हम लोग राजपुर में कहीं जा रहे थे. मैंने चलती कार से चॉकलेट खाकर उसका ‘रैपर’ बाहर फेंक दिया. पिताजी ने कार रोकी और ‘रैपर’ को उठाकर लाने के लिए कहा. वह दिन है और आज का दिन है, कभी भी मैं कोई चीज सड़क पर नहीं फेंकता. (2) देहरादून में दीवान ब्रदर्स से हम खेल का सामान खरीदा करते थे. मैं जब 12-13 साल का था, एक दिन दुकान के मालिक दीवान जी से मैंने पूछा- ‘तुम्हारे पास कोई नया बैट है?’ पिताजी ने फौरन मेरा कान पकड़ा और कहा- ‘दीवान जी तुमसे कम से कम 40 साल बड़े हैं, तुम इनसे आप कहकर ही बात कर सकते हो.’ जो सबक उस रोज मिला, उसके बाद आज तक अगर कोई उम्र में मुझसे बड़ा है, तो मैं उनसे तुम कहकर बात नहीं कर सकता हूं. (3) एक बार मैं पिताजी के साथ यमुना में फिशिंग के लिए गया. वहां रेत बहुत थी, जिसकी वजह से हमारा स्कूटर फंस गया था. पिताजी उसे निकालने की अकेले ही कोशिश कर रहे थे और मैं बगल में चुपचाप खड़ा था. पिताजी ने थोड़ी देर बाद कहा- ‘खड़े होकर तमाशा मत देखो मेरी मदद करो.’ यह भी एक सबक था. अब तो मैं कुछ बूढ़ा हो गया हूं. जब जवान था, तब अगर सड़क पर कोई एक्सीडेंट मुझे दिखता, तो मैं वहां जाकर मदद करने की कोशिश जरूर करता.'
साभार- www.livehindustan.com
#TomAlter
पद्मश्री टॉम ऑल्टर
'मैं फिल्म लाइन में आया था राजेश खन्ना बनने के लिए, राजेश खन्ना तो बन नहीं पाया, पर कम से कम टॉम ऑल्टर तो बन गया. यह ज्यादा मुश्किल काम था. एक आदमी को जिंदगी से और क्या चाहिए? मैंने राजेश खन्ना के साथ एक्टिंग की, सुनील गावस्कर के साथ क्रिकेट खेला, शर्मिला टैगोर के साथ अभिनय किया, पटौदी साहब, मिल्खा सिंह से मिला, दिलीप कुमार, देव आनंद, राजकपूर के साथ काम करने मुझे का मौका मिला. ये जो जवानी के सारे सपने थे, वे पूरे हुए. मेरी तकरीबन 400 फिल्में रिलीज हुई हैं. उनमें मैंने अच्छे-बुरे, तमाम तरह के काम किए. यह सिलसिला आज भी चल रहा है. रोज सुबह उठकर दुआ करता हूं कि मरते दम तक यह सिलसिला चलता रहे. क्रिकेट को लेकर मेरी दीवागनी जबर्दस्त थी. मैं अपने आपको खुशनसीब मानता हूं कि मैंने सुनील गावस्कर के साथ खेला. सचिन तेंदुलकर का पहला इंटरव्यू किया. हालांकि मेरी दिली तमन्ना यही थी कि एक दिन मैं हिन्दुस्तान के लिए खेलूं, पर मैं उतना अच्छा खिलाड़ी बन नहीं पाया. फिर भी हिन्दुस्तान के जो बड़े-बड़े खिलाड़ी हैं, जिन्हें मैं भगवान मानता हूं, उन सबके साथ खेलने का मौका मिला. चाहे वह अशोक मांकड हों, सोलकर हों, दिलीप वेंगसरकर हों, मोहिंदर अमरनाथ, सबा करीम हों या बिशन सिंह बेदी.
पिताजी के तीन सबक
(1) एक बार हम लोग राजपुर में कहीं जा रहे थे. मैंने चलती कार से चॉकलेट खाकर उसका ‘रैपर’ बाहर फेंक दिया. पिताजी ने कार रोकी और ‘रैपर’ को उठाकर लाने के लिए कहा. वह दिन है और आज का दिन है, कभी भी मैं कोई चीज सड़क पर नहीं फेंकता. (2) देहरादून में दीवान ब्रदर्स से हम खेल का सामान खरीदा करते थे. मैं जब 12-13 साल का था, एक दिन दुकान के मालिक दीवान जी से मैंने पूछा- ‘तुम्हारे पास कोई नया बैट है?’ पिताजी ने फौरन मेरा कान पकड़ा और कहा- ‘दीवान जी तुमसे कम से कम 40 साल बड़े हैं, तुम इनसे आप कहकर ही बात कर सकते हो.’ जो सबक उस रोज मिला, उसके बाद आज तक अगर कोई उम्र में मुझसे बड़ा है, तो मैं उनसे तुम कहकर बात नहीं कर सकता हूं. (3) एक बार मैं पिताजी के साथ यमुना में फिशिंग के लिए गया. वहां रेत बहुत थी, जिसकी वजह से हमारा स्कूटर फंस गया था. पिताजी उसे निकालने की अकेले ही कोशिश कर रहे थे और मैं बगल में चुपचाप खड़ा था. पिताजी ने थोड़ी देर बाद कहा- ‘खड़े होकर तमाशा मत देखो मेरी मदद करो.’ यह भी एक सबक था. अब तो मैं कुछ बूढ़ा हो गया हूं. जब जवान था, तब अगर सड़क पर कोई एक्सीडेंट मुझे दिखता, तो मैं वहां जाकर मदद करने की कोशिश जरूर करता.'
साभार- www.livehindustan.com
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