Sunday, September 10, 2017

कायरता छोड़िए. बाल यौन शोषण के खिलाफ युद्ध में शामिल होइए...

(3 मिनट में पढ़ें )
'सुरक्षित बचपन - सुरक्षित भारत' भारत यात्रा में अपना योगदान दें  (https://bharatyatra.online)
कैलाश सत्यार्थी, नोबेल शांति पुरस्कार विजेता  
मैं बाल यौन शोषण और तस्करी के खिलाफ युद्ध का ऐलान करता हूं. मैं कल से भारत यात्रा कर रहा हूं, जो कि बच्चों के लिए भारत को फिर से सुरक्षित बनाने के लिए इतिहास का सबसे बड़ा आंदोलन होगा. मैं यह स्वीकार नहीं कर सकता कि हमारे बच्चों की बेगुनाही, मुस्क़राहट और आजादी छिनती रहे, उनका बलात्कार, यौन शोषण किया जा सके. यह साधारण अपराध नहीं है. यह एक नैतिक महामारी है जो हमारे देश को सता रही है. हमें आजादी कभी सुसज्जित गिफ्ट पैकेट में लिपटे उपहार के तौर पर नहीं मिलती. भय से आजादी एक संघर्ष है जो साहस और सहानुभूति के अनवरत जुस्तजू में निहित है. हम वैसे दौर में रह रहे हैं, जहां हम लगातार विभिन्न मुद्दों पर होनेवाली बहस में शामिल है. लेकिन मैंने देखा है कि जब हमारे सबसे बेशकीमती धन 'बच्चों' की बात आती है, तो कैसे हमारा मौन सामूहित षड्यंत्र उभर कर सामने आ जाता है. पिछले कुछ महिनों से मैं राक्षसों के यौन क्रुरता के शिकार हुए दर्जनों मासूम निर्दोष बच्चों से मिला. उनके दुख दर्द न सिर्फ हमारे समाज के लिए कलंक है, बल्कि यह मुझे महसूस कराता है कि बाल अधिकारों के लिए जीवन भर किया गया प्रयास आजीवन अधूरा संघर्ष बन कर रह गया. इसलिए मैंने फिर से एक यात्रा का निर्णय लिया. इस मुद्दे पर चुप्पी अब स्वीकार्य नहीं है. यह कायरता होगी. मैं इसको स्वीकार नहीं करूंगा कि शिकारी निडर खुलेआम घुमें और पीड़ित भय में रहने को मजबूर. बाल यौन शोषण को रोकना होगा. दुखद और कठोर वास्तविकता यह है कि बच्चों के यौन शोषण देश में नैतिक महामारी बन रहा है. पीड़ित मलिन बस्तियों से समृद्ध या किसी भी तबके से सामनेे आ सकते हैं. शिकारी ड्राइवर, शिक्षक, पडोसी या कोई नजदिकी रिश्तेदार हो सकता है. यह भयावह भय पूरे देश के अभिभावकों कों ग्रसित कर लिया है. इस भय से मुक्ति मिलनी चाहिए. देश में हर एक सेंकेड में बच्चों के खिलाफ कोई न कोई अपराध होते हैं, लेकिन सामाजिक बदनामी के डर से इनमें से ज्यादातर मामलों की शिकायत पुलिस में नहीं की जाती. मैं यात्रा पर इसलिए भी निकल रहा हूं कि अभिभावक जोरदार आवाज उठायें चाहे उनके रिश्तेदार ही शिकारी क्यों न हों. मैंने वर्ष 1993 में बिहार से दिल्ली तक बाल मजदूरी के खिलाफ यात्रा निकाली. अन्तर्राष्ट्रीय मजदूर संगठन ने इसे गैर कानूनी घोषित किया. छोटी आवाजों का भी शक्तिशाली प्रभाव हो सकता है. अगर हम और आप अपनी बच्चों की सुरक्षा के लिए आवाज नहीं उठाएंगे तो कौन उठायेगा? कश्मीर से कन्याकुमारी यात्रा बाल अपराधों के खिलाफ लोगों को जागरुक बनाते हुए ऐसे मामलों में खुलकर आवाज उठाने के लिए प्रेरित करेगी. 

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