Wednesday, September 12, 2018

यूं ही मुसकुराते रहिए...

कैसे हो... ठीक हो...(हम लोग भी मुसकुराते हुए 'हां' में सर हिला देते)... बैठोे-बैठो काम करो. दिल्ली आॅफिस में जब कभी बतौर प्रधान संपादक आते, तो हरिवंशजी और हम लोगों के बीच अधिकतर समय इतना ही संवाद होता. बातचीत से ज्यादा भावात्मक संवाद. जब पहली बार उन्हें देखा... एक छोटे कद का साधारण सा दिखने वाला आदमी अपने कंधे पर बैग टांगे मुसकुराते आॅफिस में दाखिल हुआ. सीधे कैबिन में. कौन हैं कौन हैं... हमारे ब्यूरो प्रमुख अंजनीजी- हमें भी पता नहीं चला कि कब आ गए ... इ बाॅस हैं, हरिवंशजी (हमलोगों को बताते हुए ). तब तक हम (संतोष, विनय व मैं) उन्हें चेहरे से नहीं पहचानते थे. अक्सर कुछ देर बैठते अपना काम करते और फिर मुसकुराते हुए सभी के तरफ देखते निकल जाते. एक बार आॅफिस में सभी को इकट्ठा कर बात करने लगे. कोई रुआब नहीं. बिलकुल एक सहकर्मी की तरह. बोले, तुमलोगों की खबरें पढता रहता हूं. अच्छा काम करते हो. इसके बाद उन्होंने कहा, एनपीजी (तब नरेंद्र पाल सिंह दिल्ली आॅफिस हेड कर रहे थे) जून्यर को केवल आदेश ही नहीं देना चाहिए--- इनसे भी आइडिया लेना चाहिए. बेहतरीन आइडिया होता है, इनके पास.
सांसद बनने के बाद संसद में भी मिलते तो बस मुसकुराते हुए इतना ही पूछते कैसे हो...ठीक हो... एक बार डेढ -दो बजे के आसपास संसद की पहली मंजील पर मिले. मैं, संतोष और हमारे अंजनीजी भी थे. उन्होंने अंजनीजी से कहा, कैंटिन उधर है ना . पाॅकेटे से सौ का नोट निकाल बोले कुछ साधारण खाना मिलेगा, थाली. सभी के लिए ले लो. हम चारो एक ही टेबल पर खडे-खडे खाये. कोई ताम-झाम नहीं. बोले अच्छा खाना है... फिर मुसकुराते हुए निकल गये.
जहां तक मैं जानता-समझता हूं, अगर वह चाहते तो झारखंड में किसी भी पार्टी से जुड कर कब के मंत्री पद तो बडी आसानी से पा सकते थे. लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं किया. यूं सांसद बनने से पहले सेंट्रल हाॅल में उनकी बैठकें जमती थीं... वैसे जदयू ज्वाइन करना और सांसद बनना हम लोगों के लिए कोई आश्चर्य की बात नहीं थी. क्यों संतोष... अब राज्यसभा का उपसभापति... यूं ही मुसकुराते रहिए...

बिग 'बी' बिहार

फिल्म 'मि. नटवरलाल' में बिग बी यानी अमिताभ बच्चन गांव के बच्चों को एक कथा-गीत सुनाते हैं- 'मेरे पास आओ, मेरे दोस्तो, एक किस्सा सुनो'... याद आया? गाने के अंत में अमिताभ कहते हैं - 'मुझे मार कर बेसरम खा गया.'  डरे-सहमे से बच्चे कहते हैं- 'लेकिन आप तो जिन्दा हैं.'  इस पर वह कहते हैं- "ये जीना भी कोई जीना है लल्लू." आज बिहार की स्थिति फिल्मी कथा में शेर के खाने के बाद जिन्दा हीरो जैसी है. इसमें कहानी सुनानेवाले जैसे हीरो हैं- पटना और दिल्ली पर राज करने वाले नेता, पक्ष-विपक्ष, बुद्धिजीवी, मसिजीवी, पत्रकार-सरकार-बेकार यानी अलग-अलग कई मि. नटवालाल. वे बता रहे हैं कि बिहार को फलाना-ढिकाना शेर खा गया. तो फिर वही सवाल कि बिहार तो जिन्दा है? फिर वही जवाब 'ये जीना भी कोई जीना है लल्लू.'
                                                                                         --हेमंत की पुस्तक 'बतकही बिहार की' से साभर

महंगाई हमारे जीवन स्तर को उंचा उठाती है.

गरीब आदमी भी ऊँची महंगी चीजें खरीदने लगता है. मसलन, आटा, दाल, नमक, मिर्च आदि. देश की एकता और धर्मनिरपेक्षता के लिए भी महंगाई आवश्यक है. क्योंकि, यह जाति-धर्म, भाषा-क्षेत्र, अमीरी गरीबी में कोई भेद नहीं करती. महंगाई को अमीर और गरीब कभी बुरा-भला नहीं कहते. अमीरों के पास समय नहीं होता और गरीबों के पास न तो समय होता है और ना ही शब्द वह तो रोटी में खोया रहता है. केवल मध्यवर्ग ही उसे कोसता रहता है. घर में, बस में, रेल में, आॅफिस में... हर जगह.

'उजाला' हो गया फ्यूज, ।।ठग बुद्धि।। ...

शायद ही कोई ऐसा घर हो जिसमे पांच-दस फ्यूज 'उजाला' एलईडी बल्ब ना पड़े हुए हैं. लेकिन पिछले छह माह या कहीं कहीं तो एक साल से फ्यूज बल्बों को बदला नहीं जा रहा है. उपभोक्ताओं को पसीने छूट रहे हैं. मै भी भुक्तभोगी हूं. शायद आप भी होंगे. लोग प्रत्येक दिन फ्यूज बल्बों को बदलने के लिए विद्युत कार्यालय और पोस्ट ऑफिस का चक्कर लगा रहे हैं. तीन साल के रिप्लेसमेंट गारंटी के दावे के साथ वितरित किए गए एलईडी बल्ब साल भर से पहले दम तोड़ रहे हैं. यानी तीन साल के अंदर फ्यूज होने पर बल्ब बदल दिया दिया जाना था. उजाला (उन्नत ज्योति बाई एफोर्डेबल एलईडी बल्ब फार आल) कार्यक्रम के तहत 30 करोड़ से अधिक एलईडी बल्ब वितरित किए गए हैं. और बिजली ऑफिस में सुचना चस्पा कर दिया गया है- "एलईडी बल्ब के बारे में पूछ-ताछ न करें।"

कामेडी शो-

 50 रुपये/ली. डीजल...55रुपये/ली. पेट्रोल मिलेगा.।
Petroleum Ministry is setting up 5 ethanol-making plants in country. Ethanol will be produced from wood products&segregated municipal waste. Diesel will be available at Rs.50 per litre & petrol alternative at Rs.55 per litre: Union Minister Nitin Gadkari in Durg

वायरल सच

इन दिनों मुजफ्फरपुर (बिहार) की तेजतर्रार एसएसपी हरप्रीत कौर अपने कर्त्तव्य निर्वहन और बेबाक अंदाज के लिए सुर्ख़ियों में हैं. वहीं उनका एक गाना "आ लौट के आजा मेरे मीत" वीडियो काफी वायरल हो रहा है. उनके नाम से जारी वायरल वीडियो फेक है. यह वीडियो 'रेखा रावल' (वडोदरा, गुजरात ) नाम की एक गायका का है

नेता-जनता का अनुपात कितना होना चाहिए ?

जैसे- टीचर: स्टूडेंट. डाॅक्टर: आबादी. पुलिस: अवाम
फर्ज कीजिए....एक दिन ऐसा आए कि देश में नेता ज्यादा हो जाए, जनता कम रह जाए. स्थिति यहां तक विकट हो जाए कि हर मोहल्ले में दस में से नौ नेता हो जाएं और सिर्फ एक जनता रह जाये. इससे एक तरफ नेता परेशान, तो दूसरी तरफ जनता. नेताओं को जनता नहीं मिले. सडक पर जनता को आवारा कुत्तों से उतनी परेशानी नहीं हो, जितनी कि नेताओं से. किसी को कतई अंदाजा नहीं रहा कि स्थिति इतनी बिगड जाएगी. नेताओं का विकास जनता के दम पर होता है इसलिए जब जनता नहीं रही तो नेताओं का विकास भी रुक जाएगा. अंतत सरकार को मजबूर होकर खुला लाइसेंस नीति के तहत विदेंशों से जनता का आयात करना पडेगा. तब नेता-जनता संतुलन कुछ संभलेगा और नेताओं का धंधा फिर से चमक उठेगा.

Wednesday, August 22, 2018

आज खबरों से एक और सच दूर चला गया.

आज खबरों से एक और सच दूर चला गया. 'कलम के सिपाही' कुलदीप नैयर सर को विनम्र श्रद्धांजलि... वह ज्ञान देने में नहीं ज्ञान को साझा करने में यकीन रखते थे. पत्रकारिता जगत में मेरा पहला कदम उन्हीं से बातचीत पर आधारित प्रकाशित लेख (लगभग 12 साल पहले AUG 2006) के साथ शुरु हुआ था.... और यह सिलसिला जारी रहा. सर आप हमेशा यादों में बने रहेंगे ...शत शत नमन....

Friday, August 3, 2018

जरा इस मोहल्ले से गुजर के देख लें

मुझे भी पुण्य प्रसुन्न वाजपेयी के साथ हमदर्दी है. नौकरी छूटी है. लेकिन कुछ सवाल हैं? पिछले आठ साल में कितने चैनल बदल चुके हैं? एनडीटीवी में केवल 14 महीने ही क्यों टिके ? सहारा समय क्यों छोड़ना पड़ा ? ज़ी न्यूज़ क्यों गए थे ?2014 में एक नेता को क्या पाठ पढ़ा रहे थे? एक मित्र  अभिषेक पराशर लिखते हैं , आज पत्रकारिता छोड़ चुके या फिर अपेक्षाकृत सुरक्षित लोकेशन पर खड़े ''क्रांतिकारी'' कह रहे हैं कि सन्नाटा है. सन्नाटा तो है लेकिन यह नहीं होता अगर छंटनी और महीनों इंटर्न से मुफ्त काम कराए जाने या फिर न्यूनतम मेहनताना नहीं दिए जाने के मामले में वरिष्ठ इस्तीफा दे देते और मृतप्राय पत्रकारों का संगठन इस मामले को लेकर सड़कों पर कूद पड़ता. फिर आज यह कहने की जरूरत ही नहीं पड़ती कि जब गिने-चुने वरिष्ठों को टारगेट कर बाहर निकाला गया तो लोग सड़कों पर क्यों नहीं उतरे, सामूहिक इस्तीफा क्यों नहीं दिया? आज आपके पीछे कोई नहीं है, कल हमारे पीछे कोई नहीं होगा. इस स्थिति के लिए अगर कोई जिम्मेदार है तो वह यहीं वरिष्ठ हैं. आपको याद आता है कि किसी वरिष्ठ ने न्यूनतम मेहनताना को लेकर लड़ना तो दूर एक पोस्ट तक भी लिखा हो. बिलकुल सही लिखा है अभिषेक भाई। 
वहीं केशव सुमन सिंह लिखते हैं --जब IBN ने 350 लोगों को निकाला तो किसी ने नहीं बोला... Facebook पर एक भी पोस्ट नहीं लिखा गया। जागरण ने 360 से ज्यादा लोगों को निकाला ....किसी ने नहीं बोला... एनडीटीवी ने भी बहुतों को बाहर का रास्ता दिखाया... किसी ने नहीं बोला.. हिंदुस्तान के 275 लोगों को बाहर निकाल चुका है... कुछ पागल होकर मरे...कई के चप्पल कोर्ट के दरवाजे पर जाते-जाते घिस गए। तब किसी ने नहीं बोला... कभी इन निकाले गये लोगों का हाल जाना है??? किसी मक्कार फेसबोकिया क्रांतिकारी ने??? आज अभिसार और पुण्य प्रसून वाजपेई को बाहर निकाले जाने की आधी अधूरी सूचना पर ट्रोल गैंग बड़ा तेजी से सक्रिय हो गया, क्या बात है ??? ..तब मुंह में आवाज नहीं थी??? या उगलियों में को ढ़ हो गया था...एक भी शब्द नहीं लिखा गया??? मुंह में बांस घुसा था! या इंटरनेट कनेक्शन काट दिए गए थे?? या दिमाग में पोलियो हो गया??? 
जागरण कर्मचारी सड़क पर तख्तियां लपेटकर नंगे बदन घूम रहे थे तब किसी क्रांतिकारी की निगाह नहीं गई... ना किसी सो कॉल्ड बड़े भारी बुद्धिजीवी टाइप पत्रकार की निगाह गई... आईबीएन से निकाले गए लोगों पर भी किसी के कान में जूं नहीं रेंगी.. तवायफ मीडिया के सामने अधिकार मानवता, बच्चे, परिवार, बूढ़े माबाप, उनकी दवाओं, बच्चों की फीस आदि आदि बोल कर लोगों को चुटिया बनने वाले सो कॉल्ड बुद्धिजीवियों तब क्या अपना श्राद्ध करवा रहे थे ?? तब किसी के मुंह से बकारा नहीं निकलता ।
दोगले लोगों बकवास बंद करो। आज तुमको पत्रकारिता की चिंता हो रही है?!?!??? अबे पत्रकारिता को खत्म हुए तो अरसा बीत चुका है। यह जितने संस्थान जितने चैनेल और जितने भी सो कॉल्ड सच दिखाने बताने वाली वेबसाइट है ना... सब पैरोकारीता कि दुकान है सब की गोटी सेट है। जिस किसी के अंदर पत्रकारिता को समझने का कीड़ा काटे वह जरा इस मोहल्ले से गुजर के देख ले। स्कूल से तो फिर भी पत्रकार निकलते हैं... संस्थानों में काम पत्रकार नहीं करते...

Thursday, July 19, 2018

देश में चुपचाप आने वाला गंभीर संकट --- जल संकट

आज ही लोकसभा में सांसद एडवोकेट जोएस जाॅर्ज के एक सवाल में संबंधीत मंत्री नितिन जयराम गडकरी ने साफ तौर पर माना कि अगले 30 साल में देश में पानी की मांग उपलब्धता को पार कर जायेगी.
देश में 1137 बीसीएम बिलियन घन मीटर प्रति वर्ष है. फिलहाल जल की कुल आवश्यकता लगभग 800 बीसीएम है. देश में वर्ष 2050 में कुल जल की मांग 1180 बीसीएम आंकी गई है, जो जल की कुल उपलब्धता 1137 बीसीएम को पार कर जाएगी. 2001 और 2011 में प्रति व्यक्ति औसत जल उपलब्धता क्रमशः 1820 घनमीटर और 1545 घनमीटर आंकी गई थी. यानी 10 वर्षों में लगभग 300 घनमीटर की कमी. 2025 और 2050 में यह घटकर क्रमशः 1340 बीसीएम और 1140 बीसीएम हो सकती है.
नीति आयोग ने बताया है कि भारत अपने इतिहास के सबसे खराब दौर से गुजर रहा है, जिसमें 60 करोड लोग जल संकट का सामना कर रहे हैं और लगभग दो लाख लोग स्वच्छ जल की अनुपलब्धता के कारण प्रतिवर्ष मर रहे हैं. वर्ष 2030 तक देश में जल की मांग इसकी उपलब्ध आपूर्ति से लगभग दोगुना होने का अनुमान है.

Monday, July 9, 2018

कुछ सुगबुगाइए ना...

20वीं शताब्दी में कम्युनिज्म विश्व के तिहाई इलाके में पैठ बना कर वैश्विक पूंजीवाद को तगड़ी चुनौती दी. लेकिन, 21वीं शदी में लाल किला ढहा प्रतित हो रहा है. शायद लगभग पांच देशों चीन, क्यूबा, लाओस, उत्तरी कोरिया व वियतनाम में दमखम बचाखुचा रह गया है. हालांकि कई अन्य देशों में भी कम्युनिस्ट दलों को देखा-सुना जा सकता है. जैसे, अपने देश भारत में भी. बतौर, एक अल्पसंख्यक राजनीतिक दल के तौर पर. सामाजिक न्याय का ताना-बाना बुनने वाली कम्युनिस्ट पार्टियां पानी के भाप की तरह उड गईं. ना कोई भीड, ना कोई आंदोलन. इनके कार्यालयों में जा कर देंखे- दिवारों पर महान नेताओं की तस्वीरें, तख्तों पर रखीं आदर्श किताबें तो दिख जाएंगी, लेकिन कुर्सियां खाली नजर आएंगी. इनके नताओं के घरों में जाकर देखें, वे अपनी दिनचर्या के काम-काज में मशगूल दिखेंगे. वहां भी आम आदमी नदारद. कोई आवाजाही नहीं. इन नेताओं से अगर सबसे ज्यादा कोई देश में नाखुश हैं, तो वह हैं हमारे बुजुर्ग. विलुप्त होने के कगार पर खडी हैं, कम्युनिस्ट पार्टियां. एक बुजुर्ग ने कहा, 'मैं यह नहीं कहता कि आज हमें 20वीं शताब्दी वाला कम्युनिज्म चाहिए, लेकिन मौजूदा हालात में कुछ अपेछाएं हैं...कुछ सुगबुगाइए ना...'

20 साल में 2 से 100

90 के दशक में देश के महज दो धन कुबेरों का नाम फोर्ब्स पत्रिका के सलाना दुनिया के सबसे धनिकों की सूची में शामिल हो सका था. और महज 20 सालों के बाद यह तीन अंकों को यानी 100 के आंकड़े को भी पार कर गया. इस मामले में अपने देश के धन कुबेर केवल अमेरिका, चीन और रुस से पीछे रह गये हैं. हाल ही में विश्व बैंक के एक अर्थशास्त्री इसके पीछे की वजह तलाशा है. उनके अनुसार, वजह- 'आय में भारी असमानता का तेजी से बढना'.
Book - “The Billionaire Raj: A Journey Through India’s New Gilded Age,” by James Crabtree. 
 

Friday, July 6, 2018

पहली बार एक हिन्दू बन सकता है, जम्मू कश्मीर का मुख्यमंत्री.

कही सुनी -
पहली बार एक हिन्दू बन सकता है, जम्मू कश्मीर का मुख्यमंत्री. इस रेस में भाजपा के डॉ. जितेंद्र सिंह सबसे आगे दिख रहे हैं. दो डिप्युटी सीएम सज्जाद लोन व इमरान अंसारी (पीडीपी नाराज गुट ) का नाम सामने आ रहा है.     

Thursday, July 5, 2018

बिगड़े हालात और तनाव के बीच कश्मीर आई दो और सकून भरी तस्वीर... #कश्मीरमांगेशांति#

1 कश्मीर के बांदीपुरा में एक सर्च ऑपरेशन के दौरान जे एंड के पुलिस के एक जवान को पानी पिलाती एक स्थानीय महिला. 


2. जे एंड के पुलिस का एक जवान प्यार से बच्ची का हांथ चूमते हुए.   

Tuesday, July 3, 2018

चाँद नवाब इज बैक

इस बार 'अपनों में ईद मानाने' नहीं बल्कि 'पान......... देखिए ना.........

Monday, July 2, 2018

सोशल साइट्स इस्तेमाल करने पर टैक्स!!!

यूगांडा के लोग जब कल यानी 01, जुलाई को सबेरे जागे तो वे अपने सोशल साइट्स जैसे व्हाट्सएप्प, ट्वीटर, फेसबुक, स्काईप आदि का इस्तेमाल नहीं कर पा रहे थे. ऐसा क्यों ? दरअसल, वहां की सरकार ने 1 जुलाई से सोशल साइट्स के उपयोग करने पर टैक्स लगा दिया है. इससे पहले भी पिछले साल चुनाव के दौरान वहां की टेलीकाॅम नियामक संस्था ने चुनाव के दौरान सोशल साइटस पर प्रतिबंध लगा दिया था. इसके पीछे सरकार की मंशा फेक न्यूज पर नकेल कसने की और साथ ही युवाओं की बेशकीमती समय को बचाने की है. अपने देश में भी कुछ ऐसा  ....

Thursday, May 3, 2018

नीतीश कुमार पर भी चढ़ा ब्रेकिंग न्यूज़ का नशा --

नीतीशजी आप सूबे के मुख्यमंत्री हैं. किसी भी खबर या मुद्दे की पहले अपने अधिकारियों से पुष्टि करा लें तब प्रतिक्रिया दें या श्रद्धांजलि दें. लेकिन लगता है खबरिया चैनल के ब्रेकिंग न्यूज़ और सोशल साइट्स पर कही सुनी बातों का नशा आपके सर भी चढ़ गया है. मामला मुजफ्फरपुर से दिल्ली जा रही बस हादसे से सम्बंधित है. सुशासनबाबू ने कल एक कर्यक्रम में इस हादसे में कई लोगों की मरने की बात कर उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए एक मिनट का मौन रखा और रखवाया.  जबकि अब तक एक भी मौत की पुष्टि नहीं हो पाई है. जैसे न्यूज़ चैनलों में ब्रेकिंग न्यूज़ की अधिकता ने उसके महत्व और जरुरत को ही सवालों के घेरे में ला दिया है वैसे ही कहीं आपके इक़बाल....  

Monday, April 16, 2018

वाह नहीं आह रे सरकार बोलिए...

पिछले कई दिनों से लोग एटीएम दर एटीएम भटक रहे हैं. काफी भटकने के बाद इक्का दुक्के एटीएम में भाग्य भरोसे नगद नारायण के दर्शन हो जाये तो आप खुद को किस्मत का धनी मानिए. वैसे कल पटना में मैं भी पड़ा था इस फेर में. अब मंत्रीजी सामने आये हैं और बकैती कर रहे हैं, १,२५,000 करोड़ की पर्याप्त करेंसी है , लेकिन समस्या है कि किसी राज्य में जरुरत से ज्यादा और किसी राज्य में कम. कमिटी बन गई है. 3 दिन लगेंगे. तबतक आप खाइए धक्का...       
   

Friday, March 16, 2018

श्रीनगर के एक स्कूल से आई यह तश्वीर लाखों शब्द अपने में समेटे और बयां कर रही है...


कोई बोले राम राम, कोई खुदाए 
कोई सेवै गोसइयां, कोई अल्लाहे
कारण करम करीम, किरपा धार रहीम 
कोई न्हावै तीरथ, कोई हज्ज जाए 
कोई करे पूजा, कोई सिर निवाए
कोई पढ़े बेद, कोई कतेब 
कोई ओढ़े नील, कोई सुपेद 
कोई कहे तुरक, कोई कहे हिंदू 
कोई बाछे बिश्त, कोई सुरगिंदु 
कहो नानक जिन हुकुम पछाता 
प्रभ साहिब का तिन भेद जाता (गुरु अर्जन देवजी )

Tuesday, March 13, 2018

गाली डॉट कॉम - राजनीतिक गालियों की ऑनलाइन शॉपिंग - क्रेडिट कार्ड से पैसे भरिए और गालियां ले जाइए

जिस प्रकार चुनावी मौसम में घर से गली तक और गलियों से लेकर संसद तक गालियों की बौछार चलती है, उसे देखकर लगता है कि मैं गालियों की ही दुकान खोल लूं. कौन सी गाली किस नेता पर फबती है, इस बात को ध्यान में रखते हुए गाली का स्टॉक रखूंगा, ताकि कोई भी लीडर अपनी पसंद से गाली खरीद सके और दूसरे नेता पर तीखी से तीखी गालियों से हमला कर सके. वैसे इस हाइटेक जमाने में ऑनलाइन शॉपिंग का बोलबाला है. सोचता हूं क्यों न ऑनलाइन गालियां सप्लाई करूं. क्रेडिट कार्ड से पैसे भरिए और गालियां ले जाइए. 
गालियो के लिए कुछ अच्छे कॉपिराइट रखने होंगे. इस पद के लिए हरेक मोहल्ले के छंटे हुए गालीबाजों को रखूंगा. गालियों की कई कैटेगरी होगी. एक श्रेणी होगी - पशुवाचक गाली. चुनावी मौसम में लोग जब बात करते हैं, तो उसमें ज्यादातर जानवर ही निशाना बनते हैं. जैसे कुछ लोग नेता को गिरगिट की उपाधी दे देते हैं. मेरा सुझाव है कि नये नये जानवर इसमें शामिल किए जाएं. जैसे कोई कहे कि हमारे विरोधी तो चुनाव के बाद डाइनासोर की तरह लुप्त हो जाएंगे. या कोई कहे कि अमुक दल अजगर की तरह सुस्त पडा है. काश ! जानवर भी मानहानि का मुकदमा दायर कर पाते. 
दूसरी कैटेगरी होगी - प्राचीन गालियों का. जैसे कोई किसी को रावण या कंस कह सकता है. तीसरी कैटेगरी होगी- हाईटेक गालियों का. यह सबसे महंगी होंगी. जैसे मान लिजिए किसी नेता के बारे में कहना है कि उनका तो दिमाग खराब है. इसके लिए कहा जाएगा कि उनका तो हार्ड डिस्क खराब है. अगर यह कहना हो कि जनता अमुक नेता को चुनाव में हरा देगी तो कहा जाएगा कि जनता उनको अनफ्रेंड कर देगी या ब्लॉक कर देगी.
 मैं एक जिम्मेदार नागरिक हूं, इसलिए मेरा भी यह उत्तरदायित्व बनता है कि मैं देश के नेताओं के लिए ऐसी गालियों का अविष्कार करूं, जो तेज धारदार हो और मारक हो. ऐसी गालियां जो सरकार द्वारा सर्टिफाइड हों और ज्यादा सोचना समझना भी न पडे. पहले इस्तेमाल करें, फिर विश्वास करें.

बिगड़े हालात और तनाव के बीच कश्मीर से आई एक और सकून भरी तस्वीर.



काँटों से खींच के ये आँचल
तोड़ के बंधन बांधे पायल
कोई न रोको दिल की उड़ान को
दिल वो चला..
आज फिर जीने की तमन्ना है

Wednesday, March 7, 2018

महिला दिवस

देश के आकाओं के पास एक बड़ी कला है कि समस्या को दूर करने के बजाय उसे दिवस का कर देना अर्थात उसके नाम का एक दिन कर देना. महिला दिवस मनवाकर उनके (महिलाओं ) मन के भड़ास को शांत करवा देना भी इसी होशियारी का एक हिस्सा है. दिल को बहलाने के लिए ग़ालिब ... फिर भी हैप्पी विमेंस डे....
     

Monday, February 5, 2018

कैसे बनी कैसे बनी फुलौरी बिना चटनी कैसे बनी'

80 के दशक में किंग ऑफ़ चटनी 'सुंदर पोपो' ने 'कैसे बनी कैसे बनी फुलौरी बिना चटनी कैसे बनी' गा कर धूम मचाया था.... इसके बाद कंचन और बाबला की जोड़ी ने इस गाने को सोहरत की बुलंदियों पर पहुंचा दिया. 'पकौड़ी' पर एक दूसरे का भेजा फ्राई करने से बेहतर है यह गाना सुनना...         

Sunday, February 4, 2018

बिगड़े हालात और तनाव के बीच कश्मीर घाटी से आई एक और सकून भरी तस्वीर.

बिगड़े हालात और तनाव के बीच कश्मीर घाटी से आई एक और सकून भरी तस्वीर. श्रीनगर के नौहट्टा चौक पर जहां पत्थरबाजी की घटना आम है, वहां से आई एक सकारात्मक तस्वीर ... सुरक्षाकर्मी बच्चे के साथ क्रिकेट खेलते हुए...

मंत्रीजी, होम क्वरंटाइन में घुमे जा रहे हैं

 बतौर केंद्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री कोरोनाकाल में अश्वनी चैबे की जिम्मेवारियां काफी बढ जानी चाहिए। क्योंकि आम लोग उनकी हरेक गतिविधियों खासक...