Thursday, November 23, 2017

यह है अलिशबा.

यह है अलिशबा. अल-कायदा से संबंधित संगठन अंसार उल गजवा ए ¨हद के खूंखार आतंकी मुगीस अहमद को जिंदा पकड़ने के प्रयास में शहीद हुए सब इंस्पेक्टर इमरान अहमद टाक की बेटी. बढ़ती उम्र के साथ यह जान पाएगी की इसके पिता ने कश्मीर के हालात को बेहतर बनाने के लिए सबसे बड़ी कुर्बानी दी. 

 

Tuesday, November 21, 2017

@बच्चों की दुनिया...

चलो दोस्तों असली मयस्सर नहीं तो क्या ईंटों को ही लैपटॉप कम्प्यूटर में बदल दें ... किसकी टाइपिंग सबसे फास्ट है...  

Wednesday, November 15, 2017

अनियंत्रित कलम निर्माण के बदले विध्वंस कर देती है

(4 मिनट में पढ़ें)
पत्रकारिता के क्षेत्र में आचार संहिता की जरूरत बराबर महसूस होती रही है. और उसका एक तरह से विकास भी होता रहा है. लेकिन आचार संहिता का कोई ठोस रूप अभी तक सामने नहीं आ सका है. यह अब भी मुख्यतः निजी विवेक का मामला है. संभवत: प्रत्येक प्रकार की स्वतंत्रता के साथ यही स्थिति है. बाहरहाल पत्रकारों की आचार संहिता के सवालों पर महात्मा गांधी की यह उक्ति हमेशा प्रासंगिक रहेगी- 'समाचारपत्रों का मुख्य उद्देश्य जनसेवा होना चाहिए। समाचारपत्र शक्ति का विराट स्रोत होता है, लेकिन जिस प्रकार अनियंत्रित नदिया गांव को डूबा देती है, फसलों को नष्ट कर देती है, उसी प्रकार अनियंत्रित कलम निर्माण के बदले विध्वंस कर देती है. लेकिन इस पर बाहर का नियंत्रण और अधिक घातक होगा. सच्चे अर्थों में लाभ तभी होगा जब इस में आत्मानुशासन हो.
12 मार्च 1979 को पटना उच्च न्यायालय के न्यायाधीश प्रभा शंकर मिश्र तथा विनोद कुमार राय के खंडपीठ ने यह आचार संहिता प्रस्तावित की थी
1  प्रेस जनमत बनाने का मूल साधन है. इसलिए पत्रकारों को एक न्यासी के रूप में काम करना चाहिए तथा जन हित की रक्षा सेवा करनी चाहिए।
2  अपने कर्तव्यों का निर्वाह में पत्रकारों को नागरिकों के मौलिक अधिकारों और समाज के अधिकारों का ख्याल रखना तथा समाचारों को और विश्वस्त बनाना चाहिए.
3  पत्रकारों को ईमानदारी से समाचार संकलित और प्रकाशित करने तथा सिद्धांतों के आधार पर समुचित टीका टिप्पणी करने का अधिकार होना चाहिए पत्रकारों को ऐसी टिका टिप्पणी से परहेज करना चाहिए जिनके कारण तनाव और हिंसा भड़कने की संभावना हो.
5 पत्रकारों को यह प्रयास करना चाहिए की उनके द्वारा प्रेषित समाचार सर्वथा सही हो कोई तथ्य तोड़ा मरोड़ा नहीं जाए और ना ही आवश्यक सूचनाएं दबाई जाएं.
6 गलत सूचनाएं प्रकाशित नहीं करनी चाहिए. प्रकाशित समाचारों और टिप्पणियों के लिए जिम्मेदारी स्वीकार करनी चाहिए और अगर जिम्मेदारी नहीं लेनी हो तो उसका उल्लेख समाचार में स्पष्ट रुप से कर देना चाहिए.
7  अपुष्ट समाचारों के बारे में स्पष्ट लिखना चाहिए कि मुख समाचार की पुष्टि नहीं हुई है
8  पत्रकारों को गोपनीयता बरतनी चाहिए लेकिन भारतीय प्रेस परिषद और न्यायालय के समक्ष इस पर जोर नहीं देना चाहिए.
9  उन पत्रकारों को अपने व्यवसाय के हितों पर आंच नहीं आने देना चाहिए साथ ही व्यक्तिगत स्वार्थों के लिए सामाजिक हितों को तिलांजलि नहीं देनी चाहिए.
10 समाचार को सुधारना चाहिए.
11 पत्रकारों को अपने व्यवसाय की गरिमा बनाए रखनी चाहिए और अपने व्यवसाय का दुरुपयोग नहीं होने देना चाहिए.  पत्रकारों द्वारा घूस लेने से कोई और बुरी बात नहीं हो सकती.
13 पारस्परिक विवादों को जिसका कोई ताल्लुक नहीं हो जारी रखना पत्रकारिता के सिद्धांतों के विरुद्ध है.

Sunday, November 12, 2017

किसान का दम खेतों में घुट रहा है...

(2.5 मिनट में पढ़ें)  
भारत कृषि प्रधान देश है. इसका सबसे बड़ा लाभ यह है कि किसान रैली कोई भी आयोजित करें लगभग हमेशा सफल होती है. चरण सिंह ने जब की थी तब भीड़ हमेशा रही. श्रीमती गांधी ने की तो भीड़ हुई. आजकल भी कई नेता, सामाजिक कार्यकर्त्ता करते हैं तो भी भीड़ होती है. कल से मैं या आप करें तो भी ताजुब नहीं की भीड़ हो जाए. असली समस्या यह है कि किसान का दम खेतों में घुट रहा है. वह कहीं जाना चाहता है. उसके खेत के करीब से बस गुजरती है. सुपरफास्ट रेल निकल जाती है. ऊपर से हवाई जहाज गुजर जाता है. जिन्हें देखो किसान बरसों से एक ही बात सोचता है, यार हम भी मनुष्य हैं इतना भी हमारे भाग्य में नहीं कि दिल्ली तक जा सके. अरे जिसे हम वोट का टुकड़ा डालते हैं वह दिल्ली हो आता है. तो हम खुद नहीं जा सकते? इसलिए जब कोई कार्यकर्ता खेत के पास आकर उस से पूछते हैं, क्यों रे घाटी दिल्ली चलेगा? तो खुशी में किसान की आंखें चमक जाती है फिर वह उन्हें शक की निगाह से देखता है.... कहीं यह देवदूत तो नहीं! और लपककर किसान रैली की बस में चढ़ जाता है....  अधिकतर किसान को यह तो उसे बहुत दूर जाकर पता चलता है की रैली में उसे किसने बुलाया है. मैंने भी एक बार रैली में आए एक किसान से साफ - साफ पूछा, आपके यहां आने से खेती को नुकसान नहीं होगा? वह बोला उसकी चिंता मत कीजिए आज खेती की चिंता करने वाले बहुत हैं....  सरकार का कृषि विभाग है, बीडीओ है, स्टेट बैंक है, बीज निगम है, खाद्य निगम है, कई योजनाएं हैं, विश्व बैंक है, कई संस्थान है, कृषि की यूनिवर्सिटी हैं....  फिर भी उत्पादन कम हुआ तो हम विदेश से अनाज मंगा लेंगे मगर किसान रैली के लिए किसान तो देश से ही जुटेंगे...    

Saturday, November 4, 2017

मूर्ख बनने... ठगे जाने पर मजा आ रहा है. मन मस्त हुआ जा रहा है...

(3.5 मिनट में पढ़ें ) 
घोटालों से भरी इस घनघोर दुनिया में मूर्ख बनने का मजा ही कुछ और है. वैसे हर चालाक आदमी दूसरे को मूर्ख बनाने पर आमादा है. तरह- तरह की शिक्षा के प्रचार-प्रसार के साथ चालाक लोगों की तादाद बढ़ने लगी है. कहते हैं हर एक को कभी न कभी कहीं न कहीं महाठग मिल जाता है, लेकिन आजकल ठगों में आपसी भाईचारा बन गया है. मिल- जुलकर आपसी सद्भाव से चलने की क्रिया भाईचारे को बढ़ा रही है. गांव, कस्बों, नगरों महानगरो... में संभ्रांत ठगों का बसेरा है. हर गली कूचे में विस्तृत भव्य भवनों में ऊंची- ऊंची इमारतों में बसे ऊंचे- ऊंचे दफ्तरों में, थाना- कोतवाली में छोटी- बरी अदालतों में, ग्राम- सभा से लेकर सचिवालय, संसद भवन में, मंदिरों, मस्जिदों में खेलों के मैदानों से खेत- खलिहानों तक ठगों का सम्राज्य है.
हम तो जेन्युइन पैदाइशी खानदानी मूर्ख हैं. क्योंकि, हम जनता है. जनता को मूर्ख होना अनिवार्य है. मूर्खता के सभी लक्षण हम में मौजूद हैं. हम सभी पर विश्वास करते हैं. सभी के सब बातों पर घोर विश्वास करते हैं. आज से नहीं बहुत पहले से सन 47 से भी बहुत पहले से. विश्वास के कीटाणु हमारे खून में ही है और यह खून हमें अपने पुरखों से मिला है. ठगों की दुनिया में कई बार ठगे गाए, बार-बार ठगे गए, लेकिन विश्वास करने से बाज नहीं आए. हर बार ठगे जाने पर कसम खाते हैं कि फिर कभी किसी पर विश्वास नहीं करेंगे, लेकिन रेणु के 'हीरामन' की तरह कई बार कसम खाते हैं और भूल जाते हैं. फिर विश्वास करते हैं और ठगे जाते हैं. बार-बार ठगे जाना हमारी नियति है और ठगे जाना ही अपनी नियति है. तो ठगे जाने का अफसोस कैसा? अब तो ठगे जाने पर मजा आ रहा है. मन मस्त हुआ जा रहा है. कोई दोस्त बनकर ठग रहा है, तो कोई हमदर्द बन कर कोई हमराही बनकर ठग रहा है.... तो कोई रहनुमा बन कर.... हम घर में ठगे जा रहे हैं और घर के बाहर भी. हर द्वार हर बार, बार- बार ठगे जा रहे हैं, लेकिन हमारे भीतर बसा हीरामन अभी भी संभल नहीं पा रहा है....
साभार - चमचाय तस्मै नमः

Friday, November 3, 2017

टूटे हाथ से 7 गुना ज्यादा शत्रुओं से भिड़ कर कश्मीर को बचाया था

---प्रथम परमवीर चक्र विजेता मेजर सोमनाथ शर्मा को श्रद्धांजलि-- 
---पहले उन्हें विक्टोरिया क्रॉस देना तय किया गया था--- 
(4 मिनट में पढ़ें ) 
आज ही के दिन(3 नवंबर ) अगर 1947 में बडगाम में मेजर सोमनाथ शर्मा के नेतृत्व वाली भारतीय सेना ने वह साहसी लड़ाई ना लड़ी होती, तो कश्मीर का इतिहास कुछ और ही होता. फौज ने पाकिस्तानी हमलावरों के एयरपोर्ट को कब्जाने के प्रयास विफल कर दिए थे. अगर एयरपोर्ट उनके कब्जे में चला गया होता तो ना सेना मजबूत हो पाती और न कश्मीर को बचा पाती. मेजर सोमनाथ शर्मा टूटे हुए हाथ से मुकाबला किया और दुश्मन की गोलियों की बौछार के आगे डटे रहे. शत्रु की संख्या लगभग 700 और मेजर सोमनाथ के साथ महज 80 की संख्या में सैनिक. लेकिन इसके बावजूद भी भारतीय सिपाही मेजर सोमनाथ शर्मा के निर्देशन में निरंतर संघर्ष करते रहे 6 घंटे तक युद्ध चलता रहा. मेजर शर्मा ने सैनिकों से कहा कि शत्रु की संख्या अधिक होने से भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है. युद्ध का जीतना संख्या के आधार नहीं होता युद्ध जीतने के लिए उत्साह और मातृभूमि पर मर मिटने की पवित्र भावना की जरूरत होती है. वह कमी पाकिस्तान फोन द्वारा भेजे गए कबाइलियों के अंदर है किस कमी का लाभ हमें उठाना चाहिए. इसलिए साथियों युद्ध जारी रखो जीत हमारी होगी. तभी अचानक एक गोला बारूद आकर गिरा चारों और धुआं ही धुआं था मेजर सोमनाथ शर्मा अपने एक सहयोगी के साथ शहीद हो गए. मरते हुए भी मेजर शर्मा अपने साथियों से कह रहे थे, 'आत्मा अमर है शरीर नश्वर है इसकी चिंता नहीं करनी चाहिए.' शत्रुओं की भारी संख्या के कारण ब्रिगेड हेड क्वार्टर में वायरस से मेजर सोमनाथ शर्मा को आदेश दिया, सामरिक दृष्टि से पीछे हट कर मोर्चा लगा लो. 'मैं 1 इंच भी पीछे नहीं हटूंगा और अंतिम सैनिक को अंतिम गोली तक बराबर पाकिस्तानी दरिंदों से जूझता रहूंगा, शर्मा ने उत्तर दिया था. इस तरह 3 नवंबर 1947 की तारीख इतिहास में दर्ज हो गई.
बडगाम की उल्लेखनीय वीरता के लिए मेजर सोमनाथ को विक्टोरिया क्रॉस देना तय किया गया था क्योंकि तब तक भारतीय सम्मान चक्रों की श्रृंखला शुरु नहीं हुई थी. लेकिन यह भी एक संशय की बात थी कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद ब्रिटिश सम्मान दिए जाने का कोई औचित्य नहीं था. 1951 में भारतीय चक्र सम्मान की शुरुआत हुई और इस क्रम का पहला परमवीर चक्र मरणोपरांत मेजर सोमनाथ शर्मा को प्रदान किया गया. 

मंत्रीजी, होम क्वरंटाइन में घुमे जा रहे हैं

 बतौर केंद्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री कोरोनाकाल में अश्वनी चैबे की जिम्मेवारियां काफी बढ जानी चाहिए। क्योंकि आम लोग उनकी हरेक गतिविधियों खासक...