Wednesday, September 12, 2018

यूं ही मुसकुराते रहिए...

कैसे हो... ठीक हो...(हम लोग भी मुसकुराते हुए 'हां' में सर हिला देते)... बैठोे-बैठो काम करो. दिल्ली आॅफिस में जब कभी बतौर प्रधान संपादक आते, तो हरिवंशजी और हम लोगों के बीच अधिकतर समय इतना ही संवाद होता. बातचीत से ज्यादा भावात्मक संवाद. जब पहली बार उन्हें देखा... एक छोटे कद का साधारण सा दिखने वाला आदमी अपने कंधे पर बैग टांगे मुसकुराते आॅफिस में दाखिल हुआ. सीधे कैबिन में. कौन हैं कौन हैं... हमारे ब्यूरो प्रमुख अंजनीजी- हमें भी पता नहीं चला कि कब आ गए ... इ बाॅस हैं, हरिवंशजी (हमलोगों को बताते हुए ). तब तक हम (संतोष, विनय व मैं) उन्हें चेहरे से नहीं पहचानते थे. अक्सर कुछ देर बैठते अपना काम करते और फिर मुसकुराते हुए सभी के तरफ देखते निकल जाते. एक बार आॅफिस में सभी को इकट्ठा कर बात करने लगे. कोई रुआब नहीं. बिलकुल एक सहकर्मी की तरह. बोले, तुमलोगों की खबरें पढता रहता हूं. अच्छा काम करते हो. इसके बाद उन्होंने कहा, एनपीजी (तब नरेंद्र पाल सिंह दिल्ली आॅफिस हेड कर रहे थे) जून्यर को केवल आदेश ही नहीं देना चाहिए--- इनसे भी आइडिया लेना चाहिए. बेहतरीन आइडिया होता है, इनके पास.
सांसद बनने के बाद संसद में भी मिलते तो बस मुसकुराते हुए इतना ही पूछते कैसे हो...ठीक हो... एक बार डेढ -दो बजे के आसपास संसद की पहली मंजील पर मिले. मैं, संतोष और हमारे अंजनीजी भी थे. उन्होंने अंजनीजी से कहा, कैंटिन उधर है ना . पाॅकेटे से सौ का नोट निकाल बोले कुछ साधारण खाना मिलेगा, थाली. सभी के लिए ले लो. हम चारो एक ही टेबल पर खडे-खडे खाये. कोई ताम-झाम नहीं. बोले अच्छा खाना है... फिर मुसकुराते हुए निकल गये.
जहां तक मैं जानता-समझता हूं, अगर वह चाहते तो झारखंड में किसी भी पार्टी से जुड कर कब के मंत्री पद तो बडी आसानी से पा सकते थे. लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं किया. यूं सांसद बनने से पहले सेंट्रल हाॅल में उनकी बैठकें जमती थीं... वैसे जदयू ज्वाइन करना और सांसद बनना हम लोगों के लिए कोई आश्चर्य की बात नहीं थी. क्यों संतोष... अब राज्यसभा का उपसभापति... यूं ही मुसकुराते रहिए...

बिग 'बी' बिहार

फिल्म 'मि. नटवरलाल' में बिग बी यानी अमिताभ बच्चन गांव के बच्चों को एक कथा-गीत सुनाते हैं- 'मेरे पास आओ, मेरे दोस्तो, एक किस्सा सुनो'... याद आया? गाने के अंत में अमिताभ कहते हैं - 'मुझे मार कर बेसरम खा गया.'  डरे-सहमे से बच्चे कहते हैं- 'लेकिन आप तो जिन्दा हैं.'  इस पर वह कहते हैं- "ये जीना भी कोई जीना है लल्लू." आज बिहार की स्थिति फिल्मी कथा में शेर के खाने के बाद जिन्दा हीरो जैसी है. इसमें कहानी सुनानेवाले जैसे हीरो हैं- पटना और दिल्ली पर राज करने वाले नेता, पक्ष-विपक्ष, बुद्धिजीवी, मसिजीवी, पत्रकार-सरकार-बेकार यानी अलग-अलग कई मि. नटवालाल. वे बता रहे हैं कि बिहार को फलाना-ढिकाना शेर खा गया. तो फिर वही सवाल कि बिहार तो जिन्दा है? फिर वही जवाब 'ये जीना भी कोई जीना है लल्लू.'
                                                                                         --हेमंत की पुस्तक 'बतकही बिहार की' से साभर

महंगाई हमारे जीवन स्तर को उंचा उठाती है.

गरीब आदमी भी ऊँची महंगी चीजें खरीदने लगता है. मसलन, आटा, दाल, नमक, मिर्च आदि. देश की एकता और धर्मनिरपेक्षता के लिए भी महंगाई आवश्यक है. क्योंकि, यह जाति-धर्म, भाषा-क्षेत्र, अमीरी गरीबी में कोई भेद नहीं करती. महंगाई को अमीर और गरीब कभी बुरा-भला नहीं कहते. अमीरों के पास समय नहीं होता और गरीबों के पास न तो समय होता है और ना ही शब्द वह तो रोटी में खोया रहता है. केवल मध्यवर्ग ही उसे कोसता रहता है. घर में, बस में, रेल में, आॅफिस में... हर जगह.

'उजाला' हो गया फ्यूज, ।।ठग बुद्धि।। ...

शायद ही कोई ऐसा घर हो जिसमे पांच-दस फ्यूज 'उजाला' एलईडी बल्ब ना पड़े हुए हैं. लेकिन पिछले छह माह या कहीं कहीं तो एक साल से फ्यूज बल्बों को बदला नहीं जा रहा है. उपभोक्ताओं को पसीने छूट रहे हैं. मै भी भुक्तभोगी हूं. शायद आप भी होंगे. लोग प्रत्येक दिन फ्यूज बल्बों को बदलने के लिए विद्युत कार्यालय और पोस्ट ऑफिस का चक्कर लगा रहे हैं. तीन साल के रिप्लेसमेंट गारंटी के दावे के साथ वितरित किए गए एलईडी बल्ब साल भर से पहले दम तोड़ रहे हैं. यानी तीन साल के अंदर फ्यूज होने पर बल्ब बदल दिया दिया जाना था. उजाला (उन्नत ज्योति बाई एफोर्डेबल एलईडी बल्ब फार आल) कार्यक्रम के तहत 30 करोड़ से अधिक एलईडी बल्ब वितरित किए गए हैं. और बिजली ऑफिस में सुचना चस्पा कर दिया गया है- "एलईडी बल्ब के बारे में पूछ-ताछ न करें।"

कामेडी शो-

 50 रुपये/ली. डीजल...55रुपये/ली. पेट्रोल मिलेगा.।
Petroleum Ministry is setting up 5 ethanol-making plants in country. Ethanol will be produced from wood products&segregated municipal waste. Diesel will be available at Rs.50 per litre & petrol alternative at Rs.55 per litre: Union Minister Nitin Gadkari in Durg

वायरल सच

इन दिनों मुजफ्फरपुर (बिहार) की तेजतर्रार एसएसपी हरप्रीत कौर अपने कर्त्तव्य निर्वहन और बेबाक अंदाज के लिए सुर्ख़ियों में हैं. वहीं उनका एक गाना "आ लौट के आजा मेरे मीत" वीडियो काफी वायरल हो रहा है. उनके नाम से जारी वायरल वीडियो फेक है. यह वीडियो 'रेखा रावल' (वडोदरा, गुजरात ) नाम की एक गायका का है

नेता-जनता का अनुपात कितना होना चाहिए ?

जैसे- टीचर: स्टूडेंट. डाॅक्टर: आबादी. पुलिस: अवाम
फर्ज कीजिए....एक दिन ऐसा आए कि देश में नेता ज्यादा हो जाए, जनता कम रह जाए. स्थिति यहां तक विकट हो जाए कि हर मोहल्ले में दस में से नौ नेता हो जाएं और सिर्फ एक जनता रह जाये. इससे एक तरफ नेता परेशान, तो दूसरी तरफ जनता. नेताओं को जनता नहीं मिले. सडक पर जनता को आवारा कुत्तों से उतनी परेशानी नहीं हो, जितनी कि नेताओं से. किसी को कतई अंदाजा नहीं रहा कि स्थिति इतनी बिगड जाएगी. नेताओं का विकास जनता के दम पर होता है इसलिए जब जनता नहीं रही तो नेताओं का विकास भी रुक जाएगा. अंतत सरकार को मजबूर होकर खुला लाइसेंस नीति के तहत विदेंशों से जनता का आयात करना पडेगा. तब नेता-जनता संतुलन कुछ संभलेगा और नेताओं का धंधा फिर से चमक उठेगा.

मंत्रीजी, होम क्वरंटाइन में घुमे जा रहे हैं

 बतौर केंद्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री कोरोनाकाल में अश्वनी चैबे की जिम्मेवारियां काफी बढ जानी चाहिए। क्योंकि आम लोग उनकी हरेक गतिविधियों खासक...