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"जूते मात्र पैरों की सुरक्षा नहीं होते, हमारी प्रतिष्ठा के आधार होते हैं. नासमझ लोग दूसरों को पैरों की तुच्छ जूती समझते हैं. समझादार लोग जूता बनकर दूसरों के सर पर पडते हैं. राजा-महराजाओं से लेकर संतरी-मंत्रियों तक का रौब जूतों में ही समाया होता है. जूतों के स्पर्श से दरबारियों की किस्मत भी क्रीम पाॅलिश किए हुए जूतों की तरह चमक उठती है.इसलिए हर कोई जूते सर पर उठाने की जी जान से कोशिश करता है. पहले के दौर में जूते उठाकर कवि महाकवि, संतरी मंत्री बन जाता था. जूते उठाने वालों के पैरों में भी नये जूते आ जाते थे और उनके जतूे उठाने नये-नये लोग दौड पड़ते थे. कुल मिलाकर जूते उठाने की एक राष्ट्रिय सभ्यता का निर्माण हो जाया करता था. कितना सुहाना मंजर था. हर व्यक्ति अपनों से बडों के जूता उठाता था और अपने को बडा बनाता था. इसिलिए धर्माधीशों -मठाधीशों -सत्ताधीशों के जूते परम अराध्य बन गये थे. जूताय तस्मै नमः... जूताय तस्मै नमः. जूता आदि है, अनंत है, सर्व व्याप्त है, सर्वोपरि है, सर्व शक्तिमान है. जूता अविनाशी है.जूते कल भी थे, आज भी हैं और कल भी रहेंगे. जूता राजनीति का प्राण तत्व है. तंत्र चाहे कोई भी हो मंत्र हमेशा जूतों का ही चलता रहा है. जहां जूता चलें, राज उसी के पक्ष में होता रहा है. अंग्रेजों का जूता चला डेढ सौ साल तक. देशी राजा-महाराजा, सामन्त-महाजन, जो अंग्रेजी जूतों की साधना में रत रहे, सर रायबहादुरी पाते रहे. आम जन उनके जूतों की नोक पर जीते रहे. उसके बाद आजादी आयी, प्रजातंत्र आया, वोटों की राजनीति के साथ बूटों की राजनीति आयी. हर राजनीतिक दल पर जूताधारियों का कब्जा हुआ. जूताधारी सुप्रीमो हो गये, हाईकमान हो गये... अपने-अपने आकाओं के जूतों के कृपा प्रसाद पाने में लग गये ... ग्राम सभा से संसद तक की राजनीति जूतानीति में तब्दील हो गयी और प्रजातंत्र जूतातंत्र में. अपनों के जूता उठाना और गैरों पर जूते चलाना नेताओं की नैतिक और संवैधानिक दायित्व बन गया. बीसवीं सदी राजनीतिक धरातल पर देशांतगर्त जूता नीति के विस्तार की शती रही और 21वीं शती में जूतानीति वैश्विक बन गयी है. सारा विश्व एक जूते में समा गया है. जूता विश्वाकार विराट और विकराल हो गया है. सभी देश उसके सामने हाथ जोड की, भयभीत होकर प्रार्थना कर रहे हैं- जूताय तस्मैः नमः... जूताय तस्मैः नमः..." साभार - चमचाय तस्मैः नमः.
"जूते मात्र पैरों की सुरक्षा नहीं होते, हमारी प्रतिष्ठा के आधार होते हैं. नासमझ लोग दूसरों को पैरों की तुच्छ जूती समझते हैं. समझादार लोग जूता बनकर दूसरों के सर पर पडते हैं. राजा-महराजाओं से लेकर संतरी-मंत्रियों तक का रौब जूतों में ही समाया होता है. जूतों के स्पर्श से दरबारियों की किस्मत भी क्रीम पाॅलिश किए हुए जूतों की तरह चमक उठती है.इसलिए हर कोई जूते सर पर उठाने की जी जान से कोशिश करता है. पहले के दौर में जूते उठाकर कवि महाकवि, संतरी मंत्री बन जाता था. जूते उठाने वालों के पैरों में भी नये जूते आ जाते थे और उनके जतूे उठाने नये-नये लोग दौड पड़ते थे. कुल मिलाकर जूते उठाने की एक राष्ट्रिय सभ्यता का निर्माण हो जाया करता था. कितना सुहाना मंजर था. हर व्यक्ति अपनों से बडों के जूता उठाता था और अपने को बडा बनाता था. इसिलिए धर्माधीशों -मठाधीशों -सत्ताधीशों के जूते परम अराध्य बन गये थे. जूताय तस्मै नमः... जूताय तस्मै नमः. जूता आदि है, अनंत है, सर्व व्याप्त है, सर्वोपरि है, सर्व शक्तिमान है. जूता अविनाशी है.जूते कल भी थे, आज भी हैं और कल भी रहेंगे. जूता राजनीति का प्राण तत्व है. तंत्र चाहे कोई भी हो मंत्र हमेशा जूतों का ही चलता रहा है. जहां जूता चलें, राज उसी के पक्ष में होता रहा है. अंग्रेजों का जूता चला डेढ सौ साल तक. देशी राजा-महाराजा, सामन्त-महाजन, जो अंग्रेजी जूतों की साधना में रत रहे, सर रायबहादुरी पाते रहे. आम जन उनके जूतों की नोक पर जीते रहे. उसके बाद आजादी आयी, प्रजातंत्र आया, वोटों की राजनीति के साथ बूटों की राजनीति आयी. हर राजनीतिक दल पर जूताधारियों का कब्जा हुआ. जूताधारी सुप्रीमो हो गये, हाईकमान हो गये... अपने-अपने आकाओं के जूतों के कृपा प्रसाद पाने में लग गये ... ग्राम सभा से संसद तक की राजनीति जूतानीति में तब्दील हो गयी और प्रजातंत्र जूतातंत्र में. अपनों के जूता उठाना और गैरों पर जूते चलाना नेताओं की नैतिक और संवैधानिक दायित्व बन गया. बीसवीं सदी राजनीतिक धरातल पर देशांतगर्त जूता नीति के विस्तार की शती रही और 21वीं शती में जूतानीति वैश्विक बन गयी है. सारा विश्व एक जूते में समा गया है. जूता विश्वाकार विराट और विकराल हो गया है. सभी देश उसके सामने हाथ जोड की, भयभीत होकर प्रार्थना कर रहे हैं- जूताय तस्मैः नमः... जूताय तस्मैः नमः..." साभार - चमचाय तस्मैः नमः.
---नामी-गिरामी शख्यिसतों के जूते-चप्पल उनके सुरक्षाकर्मियों द्वारा उतारे जाने की घटना की कड़ी----
इस साल 5 जनवरी को भाजपा के एक प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सुरक्षाकर्मी उनके जूते उठाए दिखे. बात छः साल पहले की है उत्तर प्रदेश सरकार ने तब स्पष्ट किया था कि मुख्यमंत्री मायावती की जूतियों को साफ करना उनके मुख्य सुरक्षा अधिकारी का कर्तव्य है. उस समय औरैया जिले में मुख्यमंत्री के मुख्य सुरक्षा अधिकारी पद्म सिंह का मुख्यमंत्री की जूतियों को साफ करते देखा गया था. वर्ष 2003 में मुख्यमंत्री के तत्कालीन प्रमुख सचिव और अब कांग्रेस के नेता पी एल पुनिया ने बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक व मुख्यमंत्री कांशी राम को भी जूता पहनाया था. इसी तरह 2013 में तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के जूते उनके निजी सुरक्षाकर्मी ने सार्वजनिक जगह पर उतारे थे. वहीं बाढ़ प्रभावित पुड्डुचेरी के दौरे पर गए कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को नारायणसामी हाथ में चप्पल लेकर देते हुए नजर आये थे. राहुल ने बिना किसी झिझक के उनके द्वारा 'परोसी' गई चप्पल को पहन भी लिया था. गृह मंत्री राजनाथ सिंह भी हल ही में जवानों से जूता पहनवाते दिखे थे. इस कड़ी में अब एक और नाम जुड़ गया है, रामेश्वर डूडी का.
इस साल 5 जनवरी को भाजपा के एक प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सुरक्षाकर्मी उनके जूते उठाए दिखे. बात छः साल पहले की है उत्तर प्रदेश सरकार ने तब स्पष्ट किया था कि मुख्यमंत्री मायावती की जूतियों को साफ करना उनके मुख्य सुरक्षा अधिकारी का कर्तव्य है. उस समय औरैया जिले में मुख्यमंत्री के मुख्य सुरक्षा अधिकारी पद्म सिंह का मुख्यमंत्री की जूतियों को साफ करते देखा गया था. वर्ष 2003 में मुख्यमंत्री के तत्कालीन प्रमुख सचिव और अब कांग्रेस के नेता पी एल पुनिया ने बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक व मुख्यमंत्री कांशी राम को भी जूता पहनाया था. इसी तरह 2013 में तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के जूते उनके निजी सुरक्षाकर्मी ने सार्वजनिक जगह पर उतारे थे. वहीं बाढ़ प्रभावित पुड्डुचेरी के दौरे पर गए कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को नारायणसामी हाथ में चप्पल लेकर देते हुए नजर आये थे. राहुल ने बिना किसी झिझक के उनके द्वारा 'परोसी' गई चप्पल को पहन भी लिया था. गृह मंत्री राजनाथ सिंह भी हल ही में जवानों से जूता पहनवाते दिखे थे. इस कड़ी में अब एक और नाम जुड़ गया है, रामेश्वर डूडी का.
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