Saturday, October 7, 2017

अब हम समझ गए हैं, बेशर्मी में ही बरकत है.


(7 मिनट में पढ़ें )
हमें बचपन से सिखाया गया है 'शर्म करो'. हमसे कुछ भी गलत हो जाता तो बड़े- बूढ़े कहते- शर्म करो! और हम शर्म करते करते बड़े हो गए हम बड़े तो बन गए लेकिन बड़े आदमी नहीं बन पाए. बताया गया था कि शर्म- हया रखोगे तो अच्छे इंसान बनोगे. हमें भी बात जंच गई थी क्योंकि बेशर्म, बेहया, बेगैरत आदि गालियां है और गालियां अच्छी कैसे हो सकती हैं? इसलिए हम सब अच्छे बनने के लिए शर्म करते रहे. शर्म करते- करते हम अच्छे तो बन गए, लेकिन बड़े आदमी नहीं बन पाए. हमारे देश के सभी छोटे लोग शर्म करते रहे इसलिए सब अच्छे हैं. सभी छोटे किसान अच्छे हैं. दिन रात पसीना बहाते हैं. खून पसीना एक करके कर्म करते हैं और शर्म भी करते हैं. खेती के लिए गया सरकारी, सहकारी या साहूकारी कर जाना चुका पाने पर शर्मिंदगी महसूस करते हैं और शर्मसार होकर आत्महत्या करते हैं. उन की आत्म हत्या पर अच्छे लोगों को शर्म आती है लेकिन बड़े लोगों को शर्म नहीं आती.
हमारा देश बड़ा है. देश में बड़े बड़े नेता हैं. बड़े बड़े धनी व्यापारी हैं. बड़े बड़े अफसर हैं. वकील हैं, इंजीनियर हैं, डॉक्टर हैं, शिक्षाविद हैं, साहित्यकार हैं, कलाकार हैं. सभी बड़े हैं लेकिन किसी को शर्म नहीं आती. तो क्या आज बिना बेशर्म बने कोई बड़ा नहीं बन सकता? हमने राजनीति में देखा विभिन्न दलों की दलदल में कई बड़े नेता कमल से खिले हैं. अपने करकमलों से वह कई बड़ी-बड़ी योजनाओं परियोजनाओं का उद्घाटन कर रहे हैं और मुख कमलों से उन्हें खा रहे हैं. जनता से वोट की लूट कर सांसद बन रहे हैं और संसद में प्रश्न पूछने के लिए पैसा ले रहे हैं पैसा लेते हुए कैमरे में रंगे हाथ पकड़े जाने पर भी वह शर्म नहीं करते हैं बल्कि बेशर्म होकर अदालत में याचिका दायर करते हैं कि हम पर अन्याय हुआ. दल छोटा हो या बड़ा हर दल में बड़े नेता हैं और अच्छे नेता भी बड़े नेताओं की बेशर्मी पर अच्छे नेताओं को शर्म आती है. शर्म से पानी- पानी हो कर पता नहीं वह कहां बह जाते हैं.
बड़े-बड़े नेताओं के साए में बड़े बड़े अफसर हैं. बड़े अफसर हुए हैं जिन्हें तयशुदा तनख्वाह मुफ्त के भत्ते और भारी घोषणा करने में कोई शर्म नहीं आती. बाढ़ हो या सुखा भूकंप हो या दुर्घटना हर राहत कार्य में बिना कुछ पाए उन्हें कभी राहत नहीं मिलती. देश रक्षा की सामग्री हो या शहीदों के ताबूत नेताओं के नक्शे कदम पर चल कर कमीशन वसूलने में उन्हें कोई शर्म नहीं आती. उन्हें शर्म आती भी कैसे ना तो उन्हें बड़े बूढ़े ने कभी कहा ना उन की शिक्षा दीक्षा ने की शर्म करो. हमारा देश बड़ा है और हमारा प्रजातंत्र भी. बड़े प्रजातंत्र में न्याय व्यवस्था भी बड़ी है. यहां बड़े- बड़े वकील हैं जो चोर को छोड़ कर सन्यासी को फांसी देने में तनिक भी शर्म नहीं करते. उनकी कृपा छत्रछाया में बड़े - बड़े अपराधी ठाठ से घूम रहे हैं और चवन्नी चोर जेल में सर रहे हैं. बड़ी- बड़ी जेल में बड़े-बड़े जेलर हैं, जो बड़े - बड़े अपराधियों को जेल में फाइव स्टार सुविधा मुहैया कराने में कोई शर्म महसूस नहीं करते.
सरकार दरबार की बात छोड़िए साहित्य संस्कृति तथा शिक्षा के बड़े लोगों को देखकर शर्म को भी शर्म आ रही है. बड़े साहित्यकार हुए हैं जो खुद को कनक कामिनी के लिए लार टपकाते हैं लेकिन हमें सदाचार का पाठ पढ़ाते हैं. पराई थीम बाप का माल समझकर लूटते हैं और उससे अपनी मौलिक रचनाएं जनते हैं. पुरस्कारों की फिक्सिंग इनका जन्मसिद्ध अधिकार होता है. बड़े-बड़े ये लेखक बड़े- बड़े आलोचकों से सांठगांठ रखते हैं. बड़े-बड़े आलोचक वह होते हैं जो अपने लोगों की रद्दी रचना को क्लासिक और दूसरों की क्लासिक रचना को रद्दी साबित करते हैं. शिक्षा क्षेत्र में शिक्षण महर्षि वह हैं जो विद्या मंदिरों को दुकान में तब्दील करने में थोड़ी भी शर्म महसूस नहीं करते. विद्यालयों विश्वविद्यालयों में भी शिक्षक महान है जो अपनी विद्या और अध्यापन कर्म के बल पर नहीं बल्कि बेईमानी और बेशर्मी के बल सफलता की सीढ़ियां चढ़ते हैं. बड़े शिक्षाविद प्रोफ़ेसर बन ठाठ की जिंदगी जीते हैं.
अब हम समझ गए हैं, बेशर्मी में ही बरकत है. बड़ा बनना है तो बेशर्म बनना होगा. बेशर्म बनकर बेईमानी करनी होगी और बेईमानी कर के भी बेशर्म होकर ठाठ से रहना होगा. शर्म से हम पानी- पानी होते रहेंगे पानी- पानी होकर औरों की प्यास बुझाते रहेंगे, आखिर कब तक?
साभार- चमचाय तस्मै नमः.

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