Monday, September 4, 2017

अनीता का दोषी कौन ? हकीकत यहां पढ़िए ...

अनीता प्रकरण भाग- 2
(3 मिनट रीड )
एस कुरुतिका बनाम तमिलनाडू व अन्य मामले में जज एन किरुबकरन के फैसले के आईने में अनीता के आत्महत्या के कारणों को आसानी से समझा जा सकता है. फैसले पर एक नजर -
एस कुरुतिका को तमिलनाडू प्लस टू एग्जाम में 1200 अंकों में से 1184 अंक प्राप्त हुए. मेडिकल प्रवेश परीक्षा में 200 अंकों में 199.25 , लेकिन नीट एग्जाम में 720 में से महज 154 अंक ही हांसिल हो सके. इतने बेहतर अंक लाने के लिए वह कितना परिश्रम की होगी? सुप्रीम कोर्ट द्वारा ही नीट एग्जाम के जरिए मेडिकल काॅलेजों में दाखिला का फैसला सुनाया गया. सीबीएसइ छात्रों ने एमसीआइ सिलेबस के आधार पर पढाई कर नीट का एग्जाम दिया. स्टेट बोर्ड का सिलेबस अलग था. यह सीबीएसइ व स्टेट बोर्ड के बीच सिलेबस की खाई है. 23 अगस्त को जारी नीट रिजल्ट को लेकर मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, सीबीएसइ के छात्रों को 1310 मेडिकल सीटें प्राप्त होंगी, जबकि स्टेट बोर्ड के विद्यार्थियों को महज 2220 सीटें. 20 टाॅप छात्रों में 15 सीबीएसई के थे. 2220 में से 1281 पहली बार जबकि 942 पुराने छात्रों ने एग्जाम दिया. पुराने छात्र साल भर नीट एग्जाम के सिलेबस के आधार पर तैयारी की. रिजल्ट से यह भी पता चलता है कि अधिकतर चयनित छात्र शहरों से संबंधित थे. जबकि इस तुलना में आवश्यक सुविधाओं व गाइडेंस की कमी के कारण काफी कम गांवों के छात्र सफल हो सके. राज्य सरकार की विफलता व उपेक्षा के कारण् एमसीआई द्वारा निर्धारित नीट एग्जाम के आधार पर स्टेट बोर्ड के सिलेबस में बदलाव नहीं किये गये. योग्य व बेहतर ढंग से प्रशिक्षित शिक्षकों की नियुक्ति नहीं की गई. केंद्र सरकार नीट एग्जाम के लिए सीबीएसइ को नियुक्त करने से परहेज कर सकती थी. जबकि उसके छात्र नीट का एग्जाम दे रहे थे. पक्षपात जैसे आरोप से बचने के लिए किसी तटस्थ एजेंसी को नियुक्त किया जाना चाहिए था. राज्य के प्राइवेट स्कूल लगातार दो साल केवल 12वीं पर ज्यादा ध्यान देते हैं, ताकि हायर सेकेंड्री में बेहतर अंक प्राप्त हो सके. जानबूझकर 11वीं के सिलेबस को नजरंदाज किया जाता है . नीट में 11वीं के सवाल होने के कारण राज्य के छात्रों के लिए असफलता का बडा कारण बना. लेकिन सरकार और व्यवस्था इनफार्मेशन बुलेटिन देखने के बावजूद भी नहीं जागी. कमियों को दूर करना चाहिए था. राज्य सरकार को 2016-17 सत्र के शुरुआत में ही सचेत हो जाना चाहिए था. केवल तमिलनाडू सरकार ही नीट से छूट चाहती थी, जबकि सूबा हाइली लिटरेट और काफी हायर एजुकेशन संस्थानों वाला है. आर्थिक व शैक्षणिक तौर पर कमजोर राज्य झारख्ंड, ओडिशा, बिहार व उत्तर पूर्व के राज्यों ने ऐसी मांग नहीं की. राज्य सरकार ने अपने स्तर पर ऐसा प्रयास करते हुए दिखी कि लगा इस बार भी नीट के जरिए मेडिकल प्रवेश से छूट मिल ही जाएगी. इस कारण् भी छात्रों ने उस स्तर की तैयारी नहीं की. केंद्र सरकार ने भी 22 अगस्त से पहले अपने रुख का खुलासा नहीं किया, जब तक कि सुप्रीम कोर्ट में जवाब दाखिल नहीं किया. ऐसे में तब तक छात्रों को लगा कि नीट से छूट मिल जाएगी. केंद्र सरकार को भी जिम्मेवारीपूर्ण रवैया अपनाना चाहिए था. इन तमाम के बावजूद राज्य सरकार इन सब के लिए सबसे ज्यादा दोषी है.




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