Tuesday, September 26, 2017

बिग बी, हर बार 'नो' का मतलब 'नो' नहीं होता

(3 मिनट में पढ़ें )
 वकील दीपक सहगल अदालत में दमदार बहस पेश करते हैं, ‘ना सिर्फ एक शब्द’ नहीं है, एक पूरा वाक्य है अपने आप में...इसे किसी व्याख्या की जरूरत नहीं है. नो मीन्स नो...परिचित, फ्रेंड, गर्लफ्रेंड, सेक्स वर्कर या आपकी अपनी बीवी ही क्यों न हो...नो मीन्स नो‘. इसी ‘ना’ को आधार बना कर दीपक सहगल अपने तर्क गढ़ते हैं और सरकारी वकील के सारे आरोपों को निरस्तर करते हैं. वकील भी नकली. अदालत भी नकली. असल नहीं फ़िल्मी जिंदगी. और डायलॉग? फिल्म 'पिंक' में दीपक सहगल के किरदार में महानायक अमिताभ बच्चन का यह संजीदा डायलॉग लोगों के जेहन में घर कर गया था. इसके बाद अमिताभ बच्‍चन ने कई कार्यक्रम में दोहराया कि जब भी कोई महिला ना कहती है तो उसका मतलब ना ही होता है. लेकिन क्या वाकई असल जिंदगी, असली अदालत, असली जज, असली वकील, असली फैसला में 'नो' का मतलब हमेशा 'नो' ही होता है? कम से कम विदेशी छात्रा से रेप के आरोपी पिपली लाइव फिल्म के सह-निर्देशक महमूद फारूकी को बरी करने के मामले में तो नहीं. इस मामले में फैसला सुनते हुए दिल्ली हाइ कोर्ट के जज आशुतोष ने बेहद अहम टिप्पणी करते हुए कहा, 'हर बार 'नो' का मतलब 'नो' नहीं होता. महिला का 'नो' फारूकी के लिए स्पष्ट नहीं था. हर बार 'नो' का मतलब 'नो' नहीं होता है. ऐसे भी कई उदाहरण हैं, जब महिला द्वारा एक कमजोर 'नो' का मतलब 'यस' भी हो सकता है. निर्भया केस के बाद कानून में हुए संशोधन में किसी की सहमति में 'हां' और 'ना' का बहुत बड़ा स्थान हो गया है. इसलिए किसी की 'ना' को हमेशा ही 'ना' नहीं माना जा सकता. कई बार 'ना' में 'हां' भी होता है. साथ ही हाईकोर्ट ने फारूकी की यह दलील भी माना कि वह बाईपोलर डिसऑर्डर (जल्द फैसला लेने में अक्षम ) नामक मानसिक रोग से ग्रसित है. वह यह नहीं समझ पाया कि छात्रा की सहमति थी या नहीं. इस बीमारी से ग्रसित लोग जरूरी नहीं है कि सामने वाले की बात उस संदर्भ में ही लें जिस संदर्भ में वह कह रहा है.

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