Friday, September 29, 2017

सिन्हा को फूटी आंख नहीं सुहाते हैं जेटली

आठ साल पहले विरोध में दे दिया था इस्तीफा 
(3 मिनट में पढ़ें )
2009 लोकसभा चुनाव में लालकृष्ण आडवाणी पीएम इन वेटिंग थे. भाजपा चुनाव प्रबंधन का कमान अरुण जेटली के हांथों में था. चुनाव में करारी हार के बावजूद जेटली को राज्यसभा में विपक्ष का नेता बना दिया गया. फिर क्या? सिन्हा ने खुले जंग का एलान कर दिया. जेटली की नियुक्ति से नाखुश सिन्हा ने बुधवार, 10 जून, 2009 को पार्टी कोर कमिटी की बैठक में जेटली के खिलाफ जमकर भड़ास निकला. इसके बाद 12 जून, 2009 को तत्कालीन अध्यक्ष राजनाथ सिंह को चार पेज के पत्र में पार्टी के लौह पुरुष लालकृष्ण आडवाणी और अध्यक्ष पर सीधा हमला बोल दिया. इस पत्र में उन्होंने पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र के खात्मे और हराऊ रणनीति बनाने वाले पार्टी महासचिव अरुण जेतली को पुरस्कृत करने और जमीनी नेताओं की उपेक्षा के गंभीर आरोप लगाया. पत्र का मजमून कुछ ऐसा था, 'ऐसा प्रतीत होता है कि पार्टी में कुछ लोगों यह सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं कि उत्तरदायित्व का सिद्धांत प्रबल नहीं होता, ताकि उनका छोटा सा कुनबा प्रभावित न हो.इतना ही नहीं सिन्हा ने पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद, राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सदस्यता तथा कर्नाटक के प्रभारी पद से भी अपना इस्तीफा दे दिया. सिन्हा का इस्तीफा राजनाथ ने मंजूर कर लिया. इस पर सिन्हा ने कहा था, 'मुझे अहसास हो रहा है कि एक बार फिर मौन की साजिश हो रही है. हम अपनी कमजोरियों को गिनाने और जवाबदेही तय करने से बच रहे हैं'. इंडियन एक्सप्रेस में सिन्हा का हालिया लेख “I need to speak up now” में 'उनका(जेटली) अमृतसर से चुनाव हराना भी उनके वित्तमंत्री बनने के आड़े नहीं आया.' लिखना एक बार फिर आठ साल पहले का दर्द छलकता नजर आ रहा है.  यूपीए सरकार के दौरान वोडाफोन विवाद को लेकर इनकम टैक्स कानून में संसोधन पर भी जेटली और सिन्हा आमने- सामने थे. सिन्हा संसोधन के पक्ष में थे जबकि जेटली विरोध में. गौरतलब है की वर्ष 2005 में भी जिन्ना विवाद को लेकर आडवाणी के खिलाफ यशवंत सिन्हा ने बागी तेवर अपनाया था. 

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