Thursday, September 28, 2017

'बबूके वो रहा हूं'

(4 मिनट में पढ़ें )
पिता की उंगली छोड़ वह खेत में बैठ गया और पौधों की तरह छोटे-छोटे तिनके जमीन में गाड़ने लगा. क्या कर रहे हो बेटे, पिता ने पूछा? 'बबूके बो रहा हूं', बालक ने तुतलाते हुए बड़े भोलेपन से उत्तर दिया. दरअसल, एक दिन अपने पिता सरदार किशनसिंह और उनके मित्र के साथ खेत पर गए थे, जहां नया बाग लग रहा था. आम के पौधे रोपे जाते देख तो वे भी तिनके रोपने लगे, पर जब पिता ने पूछा तो उत्तर मिला, 'बबूके वो रहा हूं'. उम्र अभी केवल ढाई-तीन साल की ही थी. बंदूक शब्द का उच्चारण करना भी नहीं आता था उसे बंदूक से करते क्या है यह तो बात ही दूसरी थी. दोनों ने आश्चर्य से एक दूसरे की ओर देखा और फिर एक बार बालक को बड़े प्यार से निहारा. कुछ देर बाद बालक अपनी तिनके वाली बबूकें बोकर उठा और फिर अपने पिता के साथ-साथ चलने लगे. बालक भगत सिंह बड़ा हो कर क्या होने जा रहा है, इसकी घोषणा उसने स्वयं ही कर दी थी. पढकर-सुनकर आश्चर्य होता है कि इतने छोटे बालक ने बंदूक की बात सोची कैसी, जबकि बंदूक कहना भी उसे नहीं आया था. पर शायद भगत सिंह के मुख से बंदूक शब्द का निकलना कोई अनहोनी बात नहीं थी, क्योंकि यह सब तो उनको रक्त में ही मिला था. सदियों से उनका परिवार अपनी विरता के लिए प्रसिद्ध था और पिछली दो पीढियों से अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध लड़ रहा था. जिस परिवार की दो-दो पीढियां स्वतंत्रता के लिए रक्त बहा चुकीं थीं, जो टूट गए पर झुके न हों, गुलामी की जंजीरों को तोड़ फेंकने का संकल्प जिनके हर सांस में भरा था, ऐसे परिवार में जन्म लेकर यदि भगत सिंह ढाई वर्ष की उम्र में ही बंदूक बोने लगे तो क्या आश्चर्य. उसी परिवार में जहां सरदार किशन सिंह, सरदार अजीत सिंह और सरदार स्वर्ण सिंह पहले से ही क्रांतियज्ञ की वेदी सजाए बैठे थे. भगत सिंह का जन्म शनिवार 28 सितंबर 1907 प्रातः 9 बजे के लगभग बंगा गांव, जिला लायपुर में हुआ. उन दिनों भगत सिंह के पिता सरदार किशन सिंह और चाचा सरदार स्वर्ण सिंह जेल में थे. संयोगवश वे दोनों उसी दिन जेल से रिहा हुए. चारों ओर से बधाई की आवाजें गूंज उठीं. जो भी आया उसी ने बालक की दादी श्रीमती जयकौर से कहा,  'मांजी आपका पोता बड़ा भाग्यवान है, इसके आने के साथ ही आपके बेटे भी घर आए हैं.
साभार - प्रकाशन विभाग, भारत सरकार (1974)  

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