Thursday, September 14, 2017

'यह कष्ट देना का निकृष्टतम मुमकिन उपाय है'

23 साल तक डूप्लिकेट पासपोर्ट नहीं मिलने के कारण रहना पड़ा रिफ्यूजी बनकर.  
(2 मिनट में पढें)

अदालत नहीं होती तो शायद ही देश के दो नागरिकों के वतन वापस वापसी का सपना साकार हो पता. बगैर किसी कसूर के सिस्टम की लापरवाही नहीं अपराध के कारण दो भारतीयों को अपने मुल्क, लोगों, रिश्तेदारों, मित्रों ...  से 23 साल दूर रहना पड़ा. मणिपुर कीे पिंगमला 1994 में थाइलैंड गईं. वहां उनका पासपोर्ट बाजार में चोरी हो गया. तब से लेकर लाख गुजारिशों- आवेदनों के बावजूद उन्हें डुप्लीकेट पासपोर्ट बना कर नहीं दिया गया. पिंगमला के पति लूंइगम उन्हें अकेला नहीं छोड सकते थे, लिहाजा वह भी 23 साल के लंबे अंतराल तक निर्वासित जिंदगी गुजारने पर मजबूर रहे. इन सालों में एक बार इस दंपत्ति को प्रतिबंधित संगठन एनसीएन (आइ) (एम) का सदस्य बता कर डुप्लीकेट पासपोर्ट देने से मना कर दिया गया. 1995 में दंपत्ति ने दिल्ली हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. उन्हें नागा चरमपंथी के मददगार बताकर दस्तावेजों की समीक्षा करने का बहाना बना कर टालमटोल किया गया. इसके बाद 22 सिंतबर, 1995 को कोर्ट में संयुक्त् सचिव स्तर का एक अधिकारी कोर्ट में अंडरटेकिंग देते हुए वादा किया कि दंपत्ति को यात्रा अधिकार पत्र निर्गत कर दिया जायेगा. देश वापसी के बाद फिर से पासपोर्ट जारी किया जा सकेगा. लेकिन, यह अंडरटेकिंग कोर्ट में धूल फांकता रहा. बैंकॉक में वर्ष 1996 में दंपत्ति ने संयुकत राष्ट्र संघ उच्चायोग से संरक्षा प्रदान करने की गुहार लगाई. संघ ने उन्हें कनाडा भेजा और वहां की नागरिकता दिलवाई. इन सबके दौरान केंद्र पुरे प्रकरण पर सच्चाई को अदालत से छुपाता रहा. दंपत्ति ने एक बार फिर 2014 में दिल्ली हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. तब कहीं जा कर गत 23 अगस्त को उन्हें स्वदेश लाने के लिए विजा मुहैया कराने फैसला सुनाया गया. फैसले में हाइकोर्ट की कार्यकारी मुख्य न्यायाधिश की अगुवाई वाली बेंच ने कहा, यह मामला किसी के अधिकारों का अधिकतम हनन जैसा है. यह कष्ट देना का निकृष्टतम मुमकिन उपाय है. भारत के दो नागरिकों को लगभग 23 लंबे सालों तक देश से बहार निर्वासित रहना पड़ा. अपने जन्म स्थान, नजदीकी रिश्तेदारों व मित्रों से दूर विदेश में लगातार रहने पर मजबूर किया गया. दोनों को यूएन से बतौर रिफ्यूजी मदद की गुहार लगानी पडी. क्या इसका किसी भी तरीके से भरपाई किया जा सकता है?

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