Wednesday, August 22, 2018

आज खबरों से एक और सच दूर चला गया.

आज खबरों से एक और सच दूर चला गया. 'कलम के सिपाही' कुलदीप नैयर सर को विनम्र श्रद्धांजलि... वह ज्ञान देने में नहीं ज्ञान को साझा करने में यकीन रखते थे. पत्रकारिता जगत में मेरा पहला कदम उन्हीं से बातचीत पर आधारित प्रकाशित लेख (लगभग 12 साल पहले AUG 2006) के साथ शुरु हुआ था.... और यह सिलसिला जारी रहा. सर आप हमेशा यादों में बने रहेंगे ...शत शत नमन....

Friday, August 3, 2018

जरा इस मोहल्ले से गुजर के देख लें

मुझे भी पुण्य प्रसुन्न वाजपेयी के साथ हमदर्दी है. नौकरी छूटी है. लेकिन कुछ सवाल हैं? पिछले आठ साल में कितने चैनल बदल चुके हैं? एनडीटीवी में केवल 14 महीने ही क्यों टिके ? सहारा समय क्यों छोड़ना पड़ा ? ज़ी न्यूज़ क्यों गए थे ?2014 में एक नेता को क्या पाठ पढ़ा रहे थे? एक मित्र  अभिषेक पराशर लिखते हैं , आज पत्रकारिता छोड़ चुके या फिर अपेक्षाकृत सुरक्षित लोकेशन पर खड़े ''क्रांतिकारी'' कह रहे हैं कि सन्नाटा है. सन्नाटा तो है लेकिन यह नहीं होता अगर छंटनी और महीनों इंटर्न से मुफ्त काम कराए जाने या फिर न्यूनतम मेहनताना नहीं दिए जाने के मामले में वरिष्ठ इस्तीफा दे देते और मृतप्राय पत्रकारों का संगठन इस मामले को लेकर सड़कों पर कूद पड़ता. फिर आज यह कहने की जरूरत ही नहीं पड़ती कि जब गिने-चुने वरिष्ठों को टारगेट कर बाहर निकाला गया तो लोग सड़कों पर क्यों नहीं उतरे, सामूहिक इस्तीफा क्यों नहीं दिया? आज आपके पीछे कोई नहीं है, कल हमारे पीछे कोई नहीं होगा. इस स्थिति के लिए अगर कोई जिम्मेदार है तो वह यहीं वरिष्ठ हैं. आपको याद आता है कि किसी वरिष्ठ ने न्यूनतम मेहनताना को लेकर लड़ना तो दूर एक पोस्ट तक भी लिखा हो. बिलकुल सही लिखा है अभिषेक भाई। 
वहीं केशव सुमन सिंह लिखते हैं --जब IBN ने 350 लोगों को निकाला तो किसी ने नहीं बोला... Facebook पर एक भी पोस्ट नहीं लिखा गया। जागरण ने 360 से ज्यादा लोगों को निकाला ....किसी ने नहीं बोला... एनडीटीवी ने भी बहुतों को बाहर का रास्ता दिखाया... किसी ने नहीं बोला.. हिंदुस्तान के 275 लोगों को बाहर निकाल चुका है... कुछ पागल होकर मरे...कई के चप्पल कोर्ट के दरवाजे पर जाते-जाते घिस गए। तब किसी ने नहीं बोला... कभी इन निकाले गये लोगों का हाल जाना है??? किसी मक्कार फेसबोकिया क्रांतिकारी ने??? आज अभिसार और पुण्य प्रसून वाजपेई को बाहर निकाले जाने की आधी अधूरी सूचना पर ट्रोल गैंग बड़ा तेजी से सक्रिय हो गया, क्या बात है ??? ..तब मुंह में आवाज नहीं थी??? या उगलियों में को ढ़ हो गया था...एक भी शब्द नहीं लिखा गया??? मुंह में बांस घुसा था! या इंटरनेट कनेक्शन काट दिए गए थे?? या दिमाग में पोलियो हो गया??? 
जागरण कर्मचारी सड़क पर तख्तियां लपेटकर नंगे बदन घूम रहे थे तब किसी क्रांतिकारी की निगाह नहीं गई... ना किसी सो कॉल्ड बड़े भारी बुद्धिजीवी टाइप पत्रकार की निगाह गई... आईबीएन से निकाले गए लोगों पर भी किसी के कान में जूं नहीं रेंगी.. तवायफ मीडिया के सामने अधिकार मानवता, बच्चे, परिवार, बूढ़े माबाप, उनकी दवाओं, बच्चों की फीस आदि आदि बोल कर लोगों को चुटिया बनने वाले सो कॉल्ड बुद्धिजीवियों तब क्या अपना श्राद्ध करवा रहे थे ?? तब किसी के मुंह से बकारा नहीं निकलता ।
दोगले लोगों बकवास बंद करो। आज तुमको पत्रकारिता की चिंता हो रही है?!?!??? अबे पत्रकारिता को खत्म हुए तो अरसा बीत चुका है। यह जितने संस्थान जितने चैनेल और जितने भी सो कॉल्ड सच दिखाने बताने वाली वेबसाइट है ना... सब पैरोकारीता कि दुकान है सब की गोटी सेट है। जिस किसी के अंदर पत्रकारिता को समझने का कीड़ा काटे वह जरा इस मोहल्ले से गुजर के देख ले। स्कूल से तो फिर भी पत्रकार निकलते हैं... संस्थानों में काम पत्रकार नहीं करते...

मंत्रीजी, होम क्वरंटाइन में घुमे जा रहे हैं

 बतौर केंद्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री कोरोनाकाल में अश्वनी चैबे की जिम्मेवारियां काफी बढ जानी चाहिए। क्योंकि आम लोग उनकी हरेक गतिविधियों खासक...