Thursday, August 31, 2017

अपना समय हुआ 70 साल का

1. 3 मिनट रीड 

1 सितंबर 1947, यानी आज शुक्रवार से 70 साल पहले भारतीय मानक समय (इंडियन स्टैंडर्ड टाइम, IST) को पूरे भारत में लागू किया गया था. इसका उद्देश्य पूरे देश में एक ही मानक समय कि स्थापना करना था. इसी के आधार पर आज हमारी घड़ियां हमें हर रोज़ सहीं समय दिखाती हैं. भारतीय समय ग्रीनविच मीन टाइम(GMT) से साढ़े पांच घंटे आगे चलता है, ताकि हर दिशा में स्थित राज्यों में एक ही तरह का टाइम ज़ोन बनाया जा सके. दरअसल समस्या यह है कि भारत की पूर्व और पश्चिम सीमा की दूरी 2933 किमी है जिस वजह से पूर्व में सूर्योदय और सूर्यास्त पश्चिम से दो घंटा जल्दी होता है और दोनों ज़ोन के समय में विविधता आ जाती है. दो राज्यों के समय में अंतर होने की वजह से औपचारिक कार्यों और घटनाओें के समय को दर्ज करना बहुत मुश्किल हो जाता है. इसलिए आजादी से महज़ सोलह दिनों बाद ही भारत सरकार ने मानक समय के तौर पर इंडियन स्टैंडर्ड टाइम कि घोषणा की. इस समय को उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर स्थित शंकरगड़ किले से 82.58* E लांगिट्यूट कि दिशा पर मापा जाता है.
कोई तरोताजा तो कोई थका 
बीजू जनता दल (बीजेडी) के सांसद भतृहरि महताब ने इसी साल 19 जुलाई को लोकसभा में मुद्दा उठाया था कि देश के पूर्वी और पश्चिमी छोर के समय में लगभग दो घंटे का अंतर है. ऐसे में अलग मानक समय (टाइम जोन) होने की स्थिति में मानव श्रम के साथ अरबों यूनिट बिजली भी बचाई जा सकती है. जब भारत के बाकी हिस्सों में साल के सबसे लंबे दिन का सूरज उगता है तब यहां के उत्तर-पूर्वी हिस्से का काफी दिन गुजर चुका होता है. देश के इस हिस्से में सूरज काफी जल्दी उग आता है लेकिन इनकी दिनचर्या भारत के बाकी हिस्से की तरह ही चलती है यानी दफ्तर दस बजे और स्कूल आठ बजे ही खुलते हैं. फर्क सिर्फ इतना है कि दिल्ली में रहने वाला व्यक्ति तरोताजा होकर दफ्तर पहुंचता है, वहीं उत्तर-पूर्वी राज्यों में रहने वाले शख्स का दिन दफ्तर पहुंचने तक काफी कुछ गुजर चुका होता है. वह काम से लौटते हुए नहीं, जाते वक्त भी थका हुआ होता है. संसदीय मामलों के मंत्री अनंत कुमार का कहना था कि यह मुद्दा बेहद अहम और संवेदनशील है और सरकार इस पर गंभीरता से विचार करेगी.

कांग्रेस के लिए 'बिहार' आगे कुआं पीछे खाई

एक तरफ राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी एकजुटता के लिए कांग्रेस को राजद का साथ जरुरी लगता है. वहीं दूसरी ओर बिहार के कांग्रेसी अधिकतर विधायकों को लालू का साथ पसंद नहीं है. ऐसे में कांग्रेस के लिए आगे कुआं पीछे खाई वाली बात हो गई है. कांग्रेस आलाकमान विपक्षी एकजुटता की बात पर अडिग रहने के मद्देनजर पार्टी विधायक हाथ से फिसल कर जदयू का दामन  थामते नजर आ रहे हैं. पिछले कुछ दिनों की घटनाएं पार्टी में टूट की खबर को पुख्ता करने के लिए काफी हैं. मसलन, सूबे के पार्टी इकाई के सीएलपी नेता सदानंद सिंह को 'भाजपा भगाओ - देश बचाओ' रैली के लिए आमंत्रित नहीं किया गया. वहीं प्रदेश अध्यक्ष अशोक चौधरी को कम तवज्जो देते हुए पीछे की पंक्ति में बैठा दिया गया. इसी तरह राजद और कांग्रेस के सभी पूर्व मंत्रियों (महागठबंधन सरकार ) से उनका बंगला खाली करने का आदेश आ गया, लेकिन अशोक चौधरी का नाम उस फेहरिस्त में शामिल नहीं था. सृजन मामले में आपने शायद ही सूबे के किसी कांग्रेसी नेताओं का बयान सुना होगा.
कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी मुसिबत है कि सीएलपी नेता और प्रदेश अध्यक्ष हाथ छोडने वालों के साथ खड़े हैं. दोनों नेता जदयू अध्यक्ष नीतीश कुमार के संपर्क में बताये जा रहे हैं. आलाकमान को सब पता है. इसलिए तो ज्योतिरादित्य सिंधिया को पटना भेजा गया था. वहीं सदानंद सिंह को दिल्ली बुलाकर वक्त की नजाकत टटोलने की कोशिश की जा रही है. दरअसल पार्टी में चार ऐसे भी विधायक हैं जो पूर्व में जदयू में थे, लेकिन चुनाव में उन्हें कांग्रेस का टिकट दिलवा दिया गया था. पार्टी तोड़ने के लिए 27 मे से 18 विधायकों की जरुरत है.  फिलहाल अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद अशोक चौधरी ने पाला बदलने की खबर को महज कोरी अफवाह बता रहे हैं. महागठबंधन टूटने से पहले भी वह ऐसे ही बयान दिया करते थे. सूत्रों के अनुसार, सोनिया गांधी ने दो टूक में अपना निर्णय बता दिया है कि फिलहाल पार्टी राजद के साथ रहेगी. अब ऐसे में देखने वाली बात होगी इसके बाद विधायक क्या निर्णय लेते हैं. हलाकि इस तथ्य से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि तमाम दावों के बावजूद राष्ट्रपति चुनाव सूबे में क्रास वोटिंग नहीं हुई थी.


'बिगड़े हालात और तनाव के बीच कश्मीर घाटी से आई एक सकून भरी तस्वीर.'

थैंक यू पुलिस अंकल. सुरक्षाबल का एक जवान स्कूल जाती हुई बच्ची के लिए कंटीली तार के घेरे को हटा कर रास्ता देते हुए. 

Tuesday, August 29, 2017

बिगड़े हालात और तनाव के बीच श्रीनगर के लाल चौक से आई एक दुर्लभ तस्वीर.

'इन लिखावटों से मेरा क्या लेना-देना 
पंछी बनूँ उड़ती फिरूँ मस्त गगन में
आज मैं आज़ाद हूँ दुनिया की चमन में
हिल्लोरी हिल्लोरी ... ओ ... ओहो...

अर्ध सत्य

अडानी का नहीं था हेलीकाॅप्टर, लेकिन...
क्या रेपिस्ट गुरमीत सिंह को जेल ले जाने और 2014 चुनाव के दौरान नरेंद्र मोदी द्वारा इस्तेमाल में लाया गया हेलीकाॅप्टर एक ही था? क्या यह अडानी समूह के स्वामित्व वाला हेलीकाॅप्टर है? आपाधापी, ब्रेकिंग न्यूज व सबसे पहले एक्सक्लूजिव के दौर में फैक्ट एंड फिगर जांचे बगैर न्यूज का चलन बढ़ता ही जा रहा है. वहीं सोशल मीडिया में फेक न्यूज के चलन के बारे में कहना ही क्या. कौआ कान लेकर उड़ गया वाली बात... पिछले दिनों निजता के अधिकार मामले में केवल एक जज के फैसला आने के बाद ब्रेकिंग न्यूज चला,  गुरमीत सिंह को पहले दस साल सजा मिलने की बात कही गई. इससे भ्रम पैदा होता है.
        खैर, अब बात मुद्दे की करते हैं. गुरमीत सिंह को जेल ले जाने और 2014 मोदी के चुनावी अभियान में इस्तेमाल होने वाले हेलिकाॅप्टर 'A-139' को लाल घेरे से घेर कर बताया गया कि दोनों एक ही हेलीकाॅप्टर है. 'A - 139' अगस्ता वेस्टलैंड कंपनी के हेलीकाॅप्टर का माॅडल नंबर है. इससे दोनों हेलीकाॅप्टर का एक ही होने का कोई प्रमाण नहीं मिलता. जैसे किसी कंपनी के एक ही माॅडल के कई कार या बाइक होते हैं और उनकी अलग-अलग पहचान रजिस्ट्रेशन नंबर से होती है. उसी तरह हेलीकाॅप्टर या अन्य चॉपर का भी अलग-अलग रजिस्ट्रेशन नंबर होता है. संबंधित कंपनी का पता भी इसी आधार पर लगाया जा सकता है. न्यूज एजेंसी पीटीआई द्वारा जारी तस्वीर के अनुसार, गुरमीत सिंह को जेल ले जाने वाले हेलीकाॅप्टर का रजिस्ट्रेशन नंबर है, 'VT - TWO'. डीजीसीए द्वारा 20 जुलाई, 2017 को जारी आॅपरेटर-परमिट सूची के अनुसार 'VT - TWO'  रजिस्ट्रेशन नंबर डीएलएफ कंपनी के नाम पर दर्ज है. अडानी समूह के नाम पर अगस्ता वेस्टलैंड का कोई भी हेलीकाॅप्टर रजिस्टर्ड नहीं है. अडानी समूह के नाम पर केवल तीन एयरक्राफ्ट रजिस्टर्ड हैं. अलबत्ता पीटीआई की तस्वीर और इंडिया न्यूज के वीडियो से ली गई तस्वीर से साफ है कि गुरमीत सिंह को जेल ले जाने और 2014 चुनाव के दौरान नरेंद्र मोदी द्वारा इस्तेमाल में लाया गया हेलीकाॅप्टर एक ही था. जिसका इस्तेमाल किराये पर हरियाणा सरकार और 2014 में भाजपा द्वारा लिया गया था. यह 8 सीटर हेलीकाप्टर है, जबकि कई समाचार में 12 से 15 सीटर बताया गया. फिलहाल अगस्ता वेस्टलैंड का माॅडल नंबर  'A-139' के दस हेलीकाप्टर अलग अलग नामों पर रजिस्टर्ड हैं. कई अखबारों द्वारा ऐसे हेलीकाप्टर की संख्या 20 बताई गई. वैसे बतौर पीएम पद प्रत्याशी मोदी ने 2014 चुनावी अभियान में अडानी समूह का एयरक्राफ्ट किराये पर इस्तेमाल किया था.
संदर्भ साभार-altnews 

सीबीआई द्वारा कठोरतम सजा की मांग, रेपिस्ट गुरमीत की रहम की गुहार और जज साहब का आदेश यहां पढ़ें

बलात्कारी गुरमीत सिंह के खिलाफ विशेष जज जगदीप सिंह के सजा का पन्नों वाले आदेश का संपादित अंश   
सीबीआई के तरफ से पेश विशेष अभियोगपक्ष के वकील ने कोर्ट में तथ्य प्रस्तुत किया कि दोषी ने फर्यादियों (पीड़िताओं ) का यौन उत्पीड़न किया, जबकि पीड़िता उसके साथ पिता तुल्य व्यवहार करती थीं. उसे भगवान जैसा पूजती थीं. दोषी ने उन दोनों के भरोसे को तार - तार करते हुए उनका शारीरिक व मानसिक शोषण किया. दोनों फर्यादी डेरा परिसर में दोषी के बंधक थीं. दोषी का कारनामा बंधक बना कर बलात्कार करने से कहीं कम नहीं था. दोषी खुद को भगवान के तौर पर पेश कर अपने पद और अधिकार का बेजा इस्तेमाल कर मासूम युवतियों के साथ बलात्कार किया. यह कोई सामान्य अपराध नहीं, बल्कि रेयरेस्ट आॅफ रेयर मामला है, जिसका संपूर्ण समाज पर घातक प्रभाव पड़ता है. दोषी अधिकतम सजा का हकदार है. दोषी काफी प्रभावशाली व्यक्ति है, इसे अधिकतम सजा दी जाये, ताकि ऐसे दूसरे अपराधियों को भी सबक मिले. अपने पद, प्रभाव, पहुंच,  रुतबा व अधिकारों का बेजा इस्तेमाल कर कई बार फर्यादियों को धमकियां दी. वहीं पंजाब सरकार बनाम गुरमीत सिंह (1996), तुलसीदास कानोलकर बनाम गोवा सरकार (2003), निर्भया मामला, धनंजय चटर्जी बनाम पश्चिम बंगाल आदि मामलों का उदाहरण भी प्रस्तुत किया गया.
दूसरी ओर दोषी ने दर्ज बयान में कहा  कि उसकी आयु 50 वर्ष  है और वह हाइपरटेंशन, एक्यूट डाइबीटिज़ और कमर के दर्द से पिछले 8 सालों से ग्रसित है. उसने सामाजिक कल्याण के लिए कई काम किये हैं. साथ ही उसने आज अपने इलाज से जुड़े कई दस्तावेज भी पेश किया. उसकी एक बजुर्ग मां है, जो आयु से जुडी कई बीमारियों से ग्रसित है. कई संस्थान जैसे स्कूल, काॅलेज उसके ट्रस्ट द्वारा चलाये जा रहे हैं. इन सबका ख्याल रखते हुए कम से कम सजा का एलान किया जाये. इतना ही नहीं दोषी के वकील ने कहा कि उसका अधिकतर सामाजिक कार्य हरियाणा राज्य में संचालित हो रहा है, ऐसा तबकि जब हरियाणा सरकार ऐसा करने में विफल रही है. दोषी लोगों को यौनकर्मी से विवाह के लिए जागरुक किया है और नशा मुक्ति का अभियान चलाया. दोषी के देखरेख में 133 कल्याण कार्यक्रम संचालित किये जा रहे हैं.
दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अदालत इस नतीजे पर पहुंची  है कि दोषी ने किये परिणाम जानते हुए जानबूझकर अपने अनुयायी महिला साध्वियों का यौन उत्पीड़न किया है. ऐसे मे यह व्यक्ति हमदर्दी का पात्र नहीं हो सकता. फर्यादियों ने दोषी को भगवान का दर्जा दिया, जबकि उसने मासूम भक्तों के साथ भयानक अत्याचार किया. दोषी के अनुसार, वह डेरा सच्चा सौदा व इसके मुख्यालय सिरसा का मुखिया है. डेरा के धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक विरासत को अपनी करतूतों की वजह से कभी न सही हो पाने वाला नुकसान पहुंचाया है. सुप्रीम कोर्ट द्वारा शम सुंदर बनाम पुरन व अन्य, श्याम नारायण् बनाम एनसीटी आॅफ दिल्ली आदि मामलों का उदाहरण दिया गया. राष्ट्रपिता माहत्मा गांधी के कथन का भी हवाला दिया. ... दोषी ने कोर्ट को बताया है कि डेरा मुख्यालय में उसके अधिन 7-8 हजार लोग काम करते हैं. उसने अपने डायरेक्शन व प्रोडक्शन में बनने वाली फिल्मों के लिए कई बार इस कोर्ट से विदेश जाने की इजाजत मांगी. फिल्म निर्माण में करोड़ों रुपये खर्च किये गये. इससे साबित होता है कि दोषी के पास धन की कोई कमी नहीं है. लिहाजा उसे दोनों पीड़िताओं को मुआवजे के तौर पर रकम देने में कोई कमी नहीं है. मामले में तथ्यों के मद्देनजर, यह कोर्ट इस नतीजे पर पहुंची है कि जब दोषी खुद के भक्तों को नहीं छोड़ सकता, उनके साथ जंगली जानवर जैसा सलूक किया, लिहाजा वह किसी तरह के दया का पात्र नहीं हो सकता. दोषी गुरमीत राम रहीम सिंह को फर्यादी-ए (पीड़िता नंबर एक ) के आइपीसी की धारा 376, 506 के तहत बलात्कार का दोषी पाया गया है. फर्यादी-बी के मामले में भी इसी तरह... फर्यादी- ए को 15 लाख रुपये का जुर्माना चुकाना होगा साथ ही 10 साल का सश्रम कारावास सजा भुगतना पड़ेगा. जर्माने की रकम नहीं चुकाने की स्थिति में उसे दो साल का अतिरिक्त सश्रम कारावास की सजा का अनुपालन करना होगा. इसके बाद दोषी को धरा 506 के तहत अपराध करने के लिए 2 साल का सश्रम कारावास व दस हजार रुपये फर्यादी - ए को जुरमाना चुकाने की सजा मुकरर्र की जाती है. अगर जर्माने की रकम चुकाने में दोषी असमर्थ होता है, तो ऐसी स्थिति में उसे अतिरिक्त तीन माह सश्रम कारावास की सजा भुगतना पड़ेगा. 15 लाख में से 14 लाख रुपये फर्यादी- ए को मुआवजे के तौर पर  दिया जाएजिससे वह अपना पुनर्वास कर सके. ये दोनों सजा साथ-साथ चलेंगी. ठीक इसी तरह की और इतनी ही सजा फर्यादी- बी के मामले में भी सुनाई गई. तमाम सजा क्रमानुसार चलेंगी. फर्यादी - ए के मामले में सजा पूरी होने के बाद फर्यादी -बी के मामले में सजा शुरू होनी चाहिए. जांच वा ट्रायल के दौरान हिरासत के समय को कारावास के तहत माना जाये.


Monday, August 28, 2017

'ह्रदय विदारक'.

आज यह हेडिंग नहीं लिख पाउंगा- 'बिगड़े हालात और तनाव के बीच कश्मीर से आई एक दुर्लभ तस्वीर'.


आखिर कब थमेंगे ये आंसू ? श्रीनगर जिला पुलिस लाइन में शहीद पुलिस अधिकारी अब्दुल रशीद की बेटी श्रद्धांजलि समारोह के दौरान रोती हुई. स्कूल ड्रेस में. मासूम के हाथों में रची मेहंदी. ओह. गमगीन.
आज ही दोपहर आतंकियों ने अनंतनाग जि़ले के मेहंदी कदल इलाके में तैनात एएसआई पीर अब्दुल रशीद को नजदीक से निशाना बनाते हुए गोलियों से ताबड़तोड़ हमला कर दिया था.

जैकी चैन का करिश्मा, जानवर को भी कुंग - फू सीखा डाला

एक्टर जैकी चैन को कौन नहीं जनता. इस एक्शन हीरो को हमलोग दर्जनों फिल्मों में लड़ते - भिड़ते देखते रहे हैं. लेकिन, अब जैकी चैन एक छोटे से जानवर को कुंग फू सिखाते नजर आ रहे हैं. मार्शल आर्ट्स के धनी चैन जानवर को आत्मरक्षा और आक्रमण करने का प्रशिक्षण दे रहे हैं. और तो और जानवर इसका इस्तेमाल भी कर रहा है. दरअसल, चैन यह सब तेजी से विलुप्त हो रहे पेंगोलिन को बचाने के लिए कर रहे हैं. पेंगोलिन किसान मित्र के रुप में भी जाना जाता है, जिसका मुख्य भोजन चीटीं और दीमक है. पेंगोलिन का इस्तेमाल सेक्सुअल पावर बढाने वाली दवाइयों में किया जाता है. जानकारों के मुताबिक इसकी उपरी स्किन, जिसे स्केल्प कहते हैं का इंटरनेशनल मार्केट में कीमत 2 लाख रुपये प्रति किलो है. चीन व थाईलैंड में काफी डिमांड है. देश में पेंगोलिन वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 के शेड्यूल भाग एक में दर्ज है. इसे आप चंबल के बीहड़ों में असानी से घूमता देख सकते हैं. लेकिन बड़े पैमाने पर इसका शिकार भी किया जा रहा है. अब आप सोच रहे होंगे की जैकी चैन सनक गए हैं, क्या? जानवर भला कहीं कुंग फू सीख सकता है? ऐसा कुछ भी नहीं है. हकीकत यह है कि जैकी चैन इस खूबसूरत एशियाई जानवर के संरक्षण के लिए आगे आए हैं. जागरूकता के लिए उन्होंने एक विज्ञापन ' कुंग फू पेंगोलिन ' में अभिनय किया है. हाल ही में बीजिंग में पहली बार प्रदर्शित इस विज्ञापन को आप भी देखिए, यक़ीनन अच्छा लगेगा...

Saturday, August 26, 2017

लाल के भरोसे लालू की रैली

पहली रैली में दुधमुंहे अब मुख्य कर्ता - धर्ता 
जब पहली बार सीएम बनने के बाद लालू प्रसाद पटना के  गांधी मैदान में गरीब महारैला आयोजित की थी, तब उनके पुत्र पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव दुधमुहे बच्चे थे. आज वही तेजस्वी यादव रैली के मुख्य कर्ता - धर्ता हैं. राजद प्रमुख की दूसरी पीढ़ी अगुआई कर रही है. अब साफ जाहिर सी बात है कि राजद प्रमुख लालू प्रसाद अपनी सियासत की विरासत पुत्र तेजस्वी यादव को सौंप चुके हैं. डिप्टी सीएम बना कर व 'जनादेश अपमान यात्रा' का कमान देकर. इसके साथ ही 'भाजपा भगाओ, देश बचाओ रैली एक मायने में सियासी शक्ति प्रदर्शन से ज्यादा राजद के नेतृत्व परिवर्तन का संदेश देने का जरिया भी है. इन सब के बावजूद, लालू व तेजस्वी में फर्क है. एक तरफ हैं लोगों को पुचकारने, डांटने वाले लालू, तो दूसरी तरफ हैं सौम्य स्वभाव वाले तेजस्वी. एक तरफ हैं ठेठ, गंवई अंदाज में लोगों को लुभाने वाले लालू तो दूसरी ओर हैं तकनीकी और सोशल मीडिया को अपना मंत्र बताने वाले तेजस्वी. खैर, लालू अपनी पार्टी को पुराने अंदाज से निकालकर मॉर्डन लुक दे रहे हैं. खुद भी सोशल मीडिया में सक्रिय हैं.
इस बार जब से राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने 27 अगस्त की 'भाजपा भगाओ-देश बचाओ' रैली का आह्वान किया. तब से वह रांची अदालती कार्यवाही में ही ज्यादा उलझे रहे. मां राबड़ी  देवी ने दोनों भाईयों तेजस्वी और तेज प्रताप को तिलक लगा कर सियासी रणक्षेत्र में भेजा. कहने को तो यह जनादेश अपमान यात्रा थी, लेकिन यह रैली के लिए आमंत्रण सभा ज्यादा लगी. खुद लालू सोनपुर जैसे नजदिकी क्षेत्र का ही दौरा कर पाये. तेजस्वी फर्राटे से बोलने लगे हैं. हालांकि कई बार अनुभव की कमी भी झलकती है. इसके बावजूद समर्थकों के बीच अपनी जगह बनाने में सफल दिखते हैं. इस रैली की तुलना लालू की पिछली रैलियों से होना स्वभाविक है. 80 विधायकों की फौज वाली राजद अगर पिछली रैलियों की तुलना में भीड़ जुटाने में सफल हो गई, तो तेजस्वी पार्टी के लिए फ्रंट फेस बन जायेंगे. और लालू कोच की भूमिका में. अगर इसके विपरित कुछ भी हुआ तो यकीं मानिए यहां से लालू की पहली से चली आ रही मुसिबत चैगुनी हो जाएगी. 2001 से आयोजित रैलियों में लालू अपने दोनों पुत्रों तेजस्वी व तेज प्रताप को मंच पर बैठाते रहे हैं. दोनों तब चुप-चाप सब कुछ होते देखते-सुनते रहते थे. अब दोनों के कंधों पर रैली की सफलता की जिम्मेवारी है.
लालू की ब्रांड रैलियां
पहली बार मुख्यमंत्री बनने के बाद लालू प्रसाद ने पटना के गांधी मैदान में रैली आयोजित की थी. नाम दिया था, गरीब महारैला. उसके बाद से उनके नेतृत्व में लगभग 13 बड़ी रैलियां आयोजित हुई हैं. 30 अप्रैल, 2003 को लाठी रैली. नारा था, तेल पिलावन, लाठी घुमावन रैली. इसी तरह भंडाफोड़ रैली, देश बचाओ रैली, भाजपा-बुश भगाओ रैली, गांव बचाओ-देश बचाओ रैली. लेकिन, इन रैलियों के दौरान राजद सत्तसीन थी. वहीं 2013 में परिवर्तन रैली. जो 2007 की चेतावनी रैली से बड़ी थी. जबकि इस बीच 2009 लोकसभा  व 2010 विधानसभा चुनावों में करारी हार मिली थी. पहले की रैलियों में मंच पर एक मुख्य कुर्सी केवल लालू के लिए रखी होती थी. मंत्रियों व पार्टी के बडे पदाधिकारियों को या तो नीचे मैदान में रखी कुर्सियों पर जगह मिलती थी या लालू के पीछे नीचेे जमीन पर बिछी सफेद चादरों पर. लौंडा नाच से लेकर ठेठ गंवई अंदाज में अन्य संस्कृतिक कार्यक्रम. अन्य कहानियां भी प्रचलित हैं.  लेकिन, अब यह तस्वीर बदल गयी है.
रैली अब यात्रा में तब्दील
जब से नीतीश सत्ता में आये तब सेे सूबे की सियासी रैली की जगह यात्रा ने ले ली. समय-समय पर सीएम नीतीश कुमार एक खास उद्देश्य के साथ यात्रा पर निकलते हैं और लोगों के बीच जाते हैं. भाजपा के साथ सत्ता में आने के बाद पहली बार उन्होंने अधिकार रैली आयोजित की थी.

शर्मनाक. बलात्कारी बाबा को सलाखों के पीछे पहुंचाने वाले अधिकारी को पैसे के लिए तरसाया गया

जिसे मिलना चाहिए सम्मान, उसे नहीं मिला भुगतान 

मई, 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी की थी, सीबीआई पिंजरे में बंद तोते की तरह है. लेकिन, कई मामलों में यह जांच एजेंसी फीनिक्स पक्षी की तरह लगती है. मान्यता है कि फीनिक्स एक अमर पक्षी है और वह अपनी राख से दोबारा जिंदा हो जाता है. बलात्कारी बाबा गुरमीत राम रहीम मामले में भी ऐसा ही कुछ उभर कर सामने आया. सीबीआई को फीनिक्स पक्षी बनाते हैं उसके नेकनीयती वाले अधिकारी. पीड़ित साध्वी को न्याय दिलाने वाले फैसले में रिटायर्ड सीबीआई संयुक्त निदेशक मुलिंजा नारायणन की उल्लेखनीय भूमिका रही. मुुलिंजा नारायणन ने 39 सालों तक सीबीआई को अपनी सेवाएं दीं. उन्होंने पूर्व पीएम राजीव गांधी की हत्या से लेकर अयोध्या मंदिर, कंधार विमान अपहरण और बलात्कारी बाबा राम रहीम आदि कई मामलों से जुड़ी जांच में उल्लेखनीय भूमिका निभाई. 2009 में रिटायर्ड हुए. अप्रैल, 2011 में सीबीआई ने उन्हें बतौर सलाहकार प्रति माह 50 हजार रुपये पर नियुक्त किया. लेकिन, अक्तूबर 2013 से अप्रैल 2014 के बीच उनके बकाये 3.5 लाख रुपये देने में तरसाया. खोजबीन के बाद पता चला कि इससे संबंधित फाइल डिपार्टमेंट आॅफ पर्सनल एंड ट्रेनिंग यानी डीओपीटी के पास लटका पडा रहा. मुलिंजा ने पीएमओ को 15 जून, 2014 को इस बारे में लिखा. कोई जवाब नहीं मिला. उल्लेखनीय है कि सीबीआई निदेशक के पास 10 लाख रुपये तक भुगतान करने का विशेषाधिकार है. लेकिन उन्होंने भी नारायणन का भुगतान नहीं किया. फेसबुक और ट्विटर पर उनका दर्द महसूस किया जा सकता है. 06 अक्तूबर, 2014 को वह फेसबुक पर लिखते हैं, आशा है कि पीएम जिन्हें चार पत्र व मिलने के एक आग्रह के बाद 6 महीने बतौर सीबीआई सलाहकार के सेवा के बदले भुगतान की स्वीकृति प्रदान करेंगे....अक्तूबर, 2013 से लंबित है... मेरा क्या... मुझे क्या... चलता है... व्यवस्था बदलनी चाहिए. गुड गवर्नेंस... फाइल 32 धाम की यात्रा कर रही है...मैं सितंबर, 2013 को पीएम से मिला था. 09 अक्तूबर 2014 को वह फिर लिखते हैं, 39 सालों की सेवा के दौरान कई बार मैं इस संदेह के ख्याल से गुजरा कि ईमानदारी, नेकनीयती क्या कमजोरी, नौकरी की असुरक्षा, डर की मनोविकृति, असहायता... आदि के लक्षण हैं. लेकिन कई बार यह ख्याल आता है कि यह वक्तिगत लक्षण हैं. लेकिन अंत में यह भुगतान करता है. हालांकि आप पीड़ित हैं... 20 अक्तूबर को नरायणन एक बार फिर अपना दर्द बयां करते हैं, हैप्पी दिवाली पीएमओ स्टाफ. आशा है कि उन्होंने पीएम को मेरे तीन पत्रों सौंप दिए होंगे. सीबीआई के लिए छह महीने काम करने के एवज में भुगतान नहीं. .... लेकिन सिस्टम अब भी उतना ही पुराना है, जहां से यह शुरू हुआ था. कोई बदलाव नहीं. नो गुड गवर्नेंस... निदेशक, सीबीआई के आग्रह को गृह मंत्रालय के एक कलर्क द्वारा खारिज कर दिया गया. अधिकारी अपना दिमाग अप्लाई नहीं करते.    

Thursday, August 24, 2017

अगर ये धर्म है तो अधर्म क्या है?

योगेंद्र यादव 
जब भी मैं डेरा सच्चा सौदा के बारे में सुनता हूँ, मुझे 20 अक्टूबर 2002 की याद आ जाती है। उस दिन मैं हरियाणा के शहर सिरसा में था, जो डेरे के मुख्यालय के नज़दीक है। मुझे वहां के अखबार "पूरा सच" के संपादक रामचंद्र छत्रपति जी ने "वैकल्पिक राजनीती और मीडिया की भूमिका" विषय पर व्याख्यान देने के लिए बुलाया था। एक ईमानदार और साहसी पत्रकार के रूप में छत्रपति जी की ख्याति और सिरसा शहर की पंजाबी और हिंदी की साहित्यिक मण्डली ने मुझे अभिभूत किया था। भाषण के बाद छत्रपति जी मुझे दूध-जलेबी खिलाने ले गए। वहीँ सड़क के किनारे बैठकर मैं उनसे डेरा सच्चा सौदा के बारे में सुनने लगा। उन्होंने मुझे पहली बार एक साध्वी द्वारा बाबा के खिलाफ यौन शोषण के आरोप के बारे में बताया। डेरे के अंदर की बहुत ऐसी बातें बतायीं जो मैं यहाँ लिख नहीं सकता। यह सुनकर मैंने कहा "अगर ये धर्म है तो अधर्म क्या है?"
छत्रपति जी मुस्कुराये, बोले ये बोलने की किसी में हिम्मत नहीं है। कोई वोट के लालच में चुप है, कोई पैसे के लालच में चुप है। लेकिन "पूरा सच" में हमने साध्वी की चिठ्ठी छाप दी है। उससे बाबा बौखलाए हुए हैं। चिठ्ठी छपने के महीने के अंदर उसे लीक करने के शक में भाई रंजीत सिंह की हत्या कर दी गयी। सुनकर मैं सिहर गया। पूछा "रामचंद्र जी, आपको खतरा नहीं है"? बोले "हाँ कई बार धमकियाँ मिल चुकी हैं, क्या होगा कोई पता नहीं। लेकिन कभी न कभी तो हम सबको जाना है।"
चार दिन बाद खबर आयी कि रामचंद्र छत्रपति के घर पर हमलावरों ने उन्हें पांच गोलियां मारी। कुछ दिन के बाद छत्रपति जी चल बसे। हरियाणा सरकार (उन दिनों चौटाला जी की लोक दल की सरकार थी) ने हत्या की ढंग से जांच तक नहीं करवाई, पूरे प्रदेश के पत्रकारों के विरोध के बाद मामला सीबीआई को सौंपा गया। बाबा के नजदीकी लोग इस क़त्ल के मुख्य आरोपी हैं, फैसला आना बाकी है। जब भी बाबा का कोई केस कोर्ट में लगता है, उनके हज़ारों अनुयायी कोर्ट को घेर लेते हैं (वैसे अभी तक किसी जज पर हमले की खबर नहीं है) उसके बाद आयी कांग्रेस और बीजेपी दोनों सरकारें डेरे के सामने नतमस्तक रही हैं। डेरे के लोग हर चुनाव से पहले खुल्लमखुल्ला पार्टियों से वोट की डील करते हैं। 2014 के हरियाणा विधान सभा चुनाव में डेरे ने बीजेपी को समर्थन दिया था। चुनाव जीतने के बाद खट्टर जी तो अपनी पूरी कैबिनेट को सिरसा लेकर बाबा का धन्यवाद करने गए थे!
आज पंचकुला में साध्वी के यौन शोषण वाले मामले का फैसला आना है। लेकिन इतना जरूर जान लें कि कटघरे में बाबा राम रहीम नहीं, बल्कि हमारी न्याय व्यवस्था है।
courtesy- facebook.com/YogendraYY/

200 रुपये के नोट के लिए चार्ल्स साहब को शुक्रिया बोलिए

जितना बटखरा, उतना ही रुपया 
फ्रांस में एक मिलिट्री इंजीनियर हुए, चार्ल्स रेनार्ड. उन्होंने वर्ष 1870 में कुछ ऐसा किया, जिससे आज देश में पहली बार 200 रुपये का नोट प्रचलन में आया है. इसमें कोई विक्रम और बेताल वाली रहस्यमयी कहानियां व अंत में पूछे जाने वाले सवाल जैसा कुछ भी नहीं है. दरअसल, चार्ल्स रेनार्ड ने लघुगणक पैमाने पर आधारित एक नंबर सीरिज प्रणाली प्रस्तावित किया था. आम आदमी के लिए लेनदेन की सहजता, गंदे बैंकनोटों को बदलने, मुद्रास्फीति और नकली नोटों से मुकाबला करने में सहूलियत होगी.
जिसमें सीमित संख्या के इस्तेमाल से वृहद आकार को आसानी से पूरा किया जा सके. वह नंबर सीरिज था, 1-2-5 या 1ः2 या 1ः2ः5. यानी मूल्यवर्ग अपने पहले के मूल्यवर्ग से दो गुना या ढाई गुना ही होना चाहिए. कई देशों के साथ ही अपने देश ने भी रेनार्ड सीरिज को अपनाते हुए समय -समय पर नोट जारी किया.  50 पैसे, 1रुपया ( .50*2  ), 2 (1 *2 ) ,5 (2*2.5 ) ,10 ,20 ,50, 100, 200, 500, 1000...2000 रूपये नंबर सीरिज बनता है. है न संख्या में कम, लेकिन कितना बड़े मूल्यवर्ग को अपने में समेटे है. ठीक उसी प्रकार जैसे किराने की परंपरागत दुकान या फेरीवाला किसी समान को तौलने के लिए 50ग्राम, 100, 200,500 ग्राम, एक केजी, दो केजी, पांच केजी, दस केजी...आदि वाट या बटखारे का इस्तेमाल करता है. इस संख्या प्रणाली के उपयोग से दुकानदार को आसानी होती है.  मसलन, 800 या 900  ग्राम समान तौलने के लिए तीन बटखारे (500, 200 व 100  ग्राम) का इस्तेमाल. इसी तर्ज पर अभी तक 100 व 500 के नोट के बीच 1ः5 यानी काफी ज्यादा फासला था. इसी लापता फासले को दुरुस्त करने के लिए 200 रुपये का  नोट लाया गया है. वहीँ अर्थशास्त्र कहता है, ऐसे फासले महंगाई बढाती है. अभी भी 500 व 2000 नोट के बीच 1ः4 का फासला है. इसलिए ही  2000 रुपये के नोट को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की बात सामने आ रही है. कई जानकारों का सुझाव है कि अगर 1000 रुपये का नोट दोबारा प्रचलन में नहीं लाना है, तो 2000 नोट सिरदर्द पैदा करने वाला ही साबित होगा. इसके अलावा आरबीआई का 200 के नोट लाने के पीछे तर्क है कि इससे

बेटा ने बाप के फैसले को पलट दिया

निजता का अधिकार मौलिक अधिकार
आज मुख्य न्यायाधीश खेहर की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की पीठ ने सर्वसम्मति से अनुच्छेद 21 के तहत निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार वाला फैसला सुनाया. यह फैसला एक पुत्र द्वारा पूर्व में दिए गये अपने पिता के फैसले को पलटने वाला जैसा भी रहा. दरअसल, इस नौ जजों की खंडपीठ में एक जज डीवाइ चंद्रचूड़ भी शामिल रहे. उनके पिता वाइवी चंद्रचूड़ भी सुप्रीम कोर्ट के जज रहते हुए विख्यात एडीएम जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला मामले (1976) में फैसला सुनाने वाली पांच जजों की खंडपीठ में एक जज थे. उस पीठ अन्य सदस्य जज थे तत्कालीन चीफ जस्टिस ए एन राय, जस्टिस एच आर खन्ना, एम एच बेग और पी एन भगवती. इस पीठ का फैसला था कि 27 जून, 1975 को राष्ट्रपति की ओर से जारी आदेश के अनुसार प्रतिबंधात्मक कानून मीसा के तहत हिरासत में लिया गया कोई व्यक्ति संविधान के अनुच्छेद- 226 के अंतर्गत कोई याचिका दाखिल नहीं कर सकता. वर्ष 2011 में एक मामले पर सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति आफताब आलम और न्यायमूर्ति अशोक कुमार गांगुली ने कहा था कि वर्ष 1976 में जबलपुर के एडीएम वी शिवकांत शुक्ला के मामले में उच्चतम न्यायालय की पांच न्यायधीशों की पीठ द्वारा मौलिक अधिकारों का निलंबन बरकरार रखने का फैसला सही नहीं था. इस मामले में न्यायालय के बहुमत के फैसले से देश की जनता के मौलिक अधिकारों का हनन हुआ था. आखिरकार, पिता के मौलिक अधिकारों के हनन वाले फैसले को पुत्र द्वारा पलट ही दिया गया.

मुबारक हो. पाॅकेट पर्स की हो गई होली

गुलाबी, हरा, नीला के बाद अब पीला
मुबारक हो. अब आपके पाॅकेट व पर्स की हर दिन होली मनेगी. अरे, होली मूलतः गुलाबी, हरा, नीला व पीले रंग से ही तो खेली जाती है. फिल्म 'आप बीती' का वह पसंदीदा गाना नीला-पीला हरा-गुलाबी कच्चा-पक्का रंग, रंग डाला याद है न. इसी तर्ज पर गुलाबी(2000), हरा (500 ), नीला (50 ) के बाद अब चमकीले पीले रंग का 200 रुपये नोट का आगमन होने जा रहा है. कल से, यानी 25 अगस्त से. इसकी पुष्टि रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया यानी आरबीआई ने एक प्रेस रिलिज जारी कर की. नोट पर बापू अपनी जगह बचाने में एक बार फिर सफल रहे हैं. आरबीआई गवर्नर उर्जित के पटेल के हस्ताक्षर वाले इस नोट के पीछे सांची स्तूप छपा है. इससे पहले नोटबंदी के बाद  जारी तीन नोटों में मंगल यान, लाल किला और हम्पी छापा गया है. अन्य नोटों की तरह देवनागरी में २००, बारीक अक्षर में भारत, India व RBI छपा दिखेगा. जब नोट को तिरक्षा देखेंगे तो सुरक्षा धागा  व रूपया का प्रतिक व 200 लिखा हरा से बदलकर नीला दिखेगा. दांयी आरे अशोक स्तंभ का राज्य चिहन मजबूती से चिपका है. अन्य नोट की तरह इस नोट का नंबर भी  छोटे से बड़े  होते दिखेंगे. स्वच्छ भारत का नारा एक कदम स्वच्छता की ओर छपा देखना न भूलें. नोट की चौड़ाई  66एमएम व लंबाई 146 एमएम है. हां, अंत में सबसे बड़ी बात छुट्टे पर किचकिच से राहत भी मिल जाएगी. रुकिए, रुकिए. बस आखिरी में एक सवाल. आरबीआई की घोषणा से पहले नोटों की तसवीर मीडिया में कई दिन पहले कैसे आ जाती है?
 

बिगड़े हालात और तनाव के बीच कश्मीर से आई दुर्लभ तस्वीर

बंद के दौरान श्रीनगर के नऊहट्टा इलाके में सीआरपीएफ जवान के साथ खेलता हुआ एक बच्चा.
Photo Abid Bhat


Tuesday, August 22, 2017

जुल्मी वीडियो

जुलूम कर देंगे - सांसद रमा देवी (शिवहर, बिहार)  
सीतामढ़ी जिले के बैरगनिया प्रखंड अंतर्गत रामपुर कंठ गांव पहुंचीं सांसद रामा देवी ने तटबंध के कटाव निरोधी कार्य में लगे इंजीनियर को जमकर फटकार लगते हुए खरी-खोटी सुनाई और अपशब्द तक कह डाली. 

महिला अधिकारों के लिए सजग प्रहरी रहा है सुप्रीम कोर्ट

सीमा कुमारी 
तीन तलाक़ को असंवैधानिक करार दे कर सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर साबित कर दिया है की वह महिला अधिकारों के लिए सजग प्रहरी के तौर पर खड़ा है. आजादी के बाद से अब तक कई मामलों में सुप्रीम कोर्ट सामाजिक सुधार खास तौर पर महिलाओं से जुड़े मामलों में प्रभावी व प्रमाणिक भूमिका अदा की है. चाहे वह किसी मजहब से जुड़ा मामला हो या लैंगिक आधार पर भेदभाव का. वी तुलसम्मा बनाम वी शेषा रेड्डी मामले में गुजारा भत्ता के लिए हिन्दू महिलाओं का अधिकार को परिभाषित किया. इसी तरह क्रिश्चन महिलाओं को अपने पिता की संपत्ति पर समान अधिकार सुप्रीम कोर्ट के दखल (मेरी रॉय बनाम केरल) के बाद ही संभव हो पाया. इससे पहले एक चैथाई हिस्से पर ही मालिकाना हक का प्रावधान था. शाहबानो ने गुजारा भत्ता पाने के लिए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटया था. अदालत ने शाहबानो को निराश भी नहीं किया. आखिरकार आज का ऐतिहासिक फैसला की नींव इस मामले को भी माना जा सकता है. यह वही सुप्रीम कोर्ट है जो शमीम आरा बनाम यूपी मामले में तलाक को लेकर आदेश पारित किया था. तलाक का उचित कारण होना चाहिए. तलाक से पहले पति और पत्नी के बीच दो मध्यस्थों के बीच सुलह करने की कोशिश होनी चाहिए. दोनों अपने अपने परिवार से एक-एक सदस्य को चुन सकते हैं. सुलह के प्रयास विफल होने के बाद ही तलाक प्रभावी माने जायेंगे. वहीं विशाखा एवं अन्य बनाम राजस्थान एवं अन्य मामले में कार्यस्थल पर महिलाओं के खिलाफ होने वाले यौन शोषण को रोकने संबंधी प्रावधान को भी सुप्रीम कोर्ट ने ही पारित किया. अंतर जातीय विवाह को लेकर लता सिंह बनाम यूपी सरकार मामले में भी कई अहम आदेश दिये. इसके तहत बालिग युवतियों को उसके पसंद के अनुसार शादी करने पर किसी तरह की धमकी या हिंसा पर पुलिस को सख्त निर्देश शामिल हैं. लिव इन रिलेशनशिप, तलाक़ के मामलों में पांच साल से छोटे बच्चे की कस्टडी मां के पास (रोक्साना शर्मा बनाम अरुण शर्मा), सीमा बनाम अश्वनी कुमार के मामले में केंद्र सहित सभी राज्य सरकारों को सभी धर्म के विवाह को पंजीकृत करने का आदेश जैसे कई उदाहरण हमारे सामने है. वहीँ सुप्रीम कोर्ट ने देश भर में एसिड अटैक के पीड़ितों के लिए राहत भरा आदेश देते हुए पीडितों के इलाज और सुविधाओं के लिए कई तरह के प्रावधान जारी किये. राज्य में तेजाब की खुली बिक्री पर रोक जैसे सख्त प्रावधान. महिलाओं को उनके अधिकारों और आगे बढ़ाने वाले अनेकों फैसलों के लिए सुप्रीम कोर्ट को सलाम.
08 फरवरी 2016 को एके सिकरी और अभय मनोहर सप्रे की खंडपीठ ने एक मामले पर फैसला में कहा था, इस दुनिया में और विशेष तौर पर भारत में महिलाएं विभिन्न प्रकार के लैंगिक भेदभाव का सामना करती हैं. यह इस तथ्य के बावजूद है कि भारत के संविधान के अंतर्गत, महिलाओं को पुरुषों के साथ समानता का एक अनूठा दर्जा प्राप्त है. वास्तव में, इस संवैधानिक स्थिति को हासिल करने के लिए अभी उनको एक लंबा रास्ता तय करना बाकी है.

कश्मीरी नौनिहालों के बुलंद हौसलें

कश्मीरी बच्चे डर के साये में स्कूल जाते हैं और इसी डर के साये में घर वापस आते हैं. पहली तस्वीर शायद यही बोलती नजर आ रही है 'डर के आगे जीत है'. आज फिर स्कूल बंद. अच्छा कल फिर आउंगी.
सौजन्य- मेरा कश्मीर

Monday, August 21, 2017

फेसबुक सब जानता है, आप दक्षिणपंथी हैं या वामपंथी!

इसमें कोई शक नहीं कि मौजूदा दौर में फेसबुक संवाद या विचारों के आदान-प्रदान का एक सुलभ प्लेटफार्म बन चुका है. जहां उदारवादी, रुढिवादी, आरजकतावादी, दक्षिणपंथी, वामपंथी आदि यानी सभी विचारधारा के लोग अपना नजरिया पेश करते हैं. चुनावों से लेकर, आतंकवाद यानी सभी प्रकार के मुद्दों पर. मौजूदा दौर में आप लाख कोशिश कर लें लेकिन, न चाहते हुए भी इस सोशल मीडिया से दूर नहीं जा सकते. आप जब मोदी के बारे में, किसी चुनाव या सरकार व राजनीतिक दल संबंधित कोई पोस्ट डाल रहे होते हैं, तो क्या आप जानते हैं कि उस दौरान फेसबुक क्या कर रहा होता है? डाटा संग्रह. काफी. बहुत. इतना ज्यादा कि वह लगभग आपके राजनीतिक झुकाव का सटिक अंदाज लगा सके. कि आपका रुझाान किस विचारधारा के पक्ष में है या खिलाफ में. कि आप उदारवादी, मध्यम या रुढिवादी सोच के हैं. विश्वास नहीं होता. चलिए मिनट में आप कैसे इसे एक हद तक सही मान लेंगे, इसका आसान तरीका बताते हैं. सबसे पहले अपने फेसबुक एकाउंट को लाॅगइन किजिए. सेटिंग विकल्प को चटकाइए. बांयी तरफ की सूची में एक adverts विकल्प दिखेगा, उसे चटकाइए. Your interests के नीचे तमाम विकल्प दिखेंगे. मसलन,  Business and industry, People, News and entertainment, Travel, places and events, technology, Sports and Outdoors आदि. ये विकल्प आपके विभिन्न रुझानों को प्रदर्शित करते हैं. people व life style and culture आपके विचारधारा को इंगित करने के लिए काफी है. यानी आपके फेसबुकिया व्यवहार से आपके पसंदीदा विकल्प को पेश कर देगा.

अगर हैं बुद्धिमान तो जरा ढूंढ निकालिए इस तस्‍वीर में छिपे एक राज

एक जैसी दिखने वाली तस्वीरों में अंतर ढूंढना बहुत पुराना खेल है और काफी मजेदार भी. इसमें न सिर्फ नजर की, बल्कि दिमाग की भी परीक्षा हो जाती है. जब कंप्यूटर इन्टरनेट आदि कुछ नहीं थे, तब भी पत्र-पत्रिकाओं में इस तरह की पहेलियाँ छपा करतीं थीं जिन्हें बच्चों से लेकर बूढ़े तक सभी बड़े उत्साह से हल करने में जुटे रहते थे. इस पोस्ट में भी हम आपके लिए 5 तस्वीरें लेकर आये हैं, जो दिखने में कुछ - कुछ एक जैसी लगती हैं, लेकिन एक तस्वीर अलग है. कोशिश करके देखिये कि आप उस अलग तस्वीर को ढूंढ सकते हैं –

Sunday, August 20, 2017

रेलवे - ए सीरियल किलर !

एक अप्रैल  2016 से 31 मार्च 2017 तक की अवधि के दौरान भारतीय रेल पर घटी 104 दुर्घटनाओं में से 66 रेल कर्मचारियों की गलती के कारण हुई. संरक्षा कोटि में एक लाख 24 हजार 201 पद रिक्त हैं. 2013-14 में कुल 152, 2014-15 में 292, 2015-16 में 122 और चालू साल में 235 यात्री मारे गये हैं. विशेष जानकारी के लिए फोटो चटकाइए


Saturday, August 19, 2017

कहानीवाली नानी

नानी-दादी से कहानी सुनते-सुनते स्वप्न  लोक में खो जाना. बीच-बीच में उत्सुकता बस कुछ-कुछ पूछना. सोने से पहले का वैसा सुखद आनंद अबके बच्चों को शायद ही नसीब होता हो. एकल परिवार, घर से दूर...कई कारण हैं. लेकिन, अब फिर से वह सुनहरा दौर लौटता दिख रहा है. तकनीक के माध्यम से. नानी-दादी सी आवाज. कहानीवाली नानी यानी  बेंगलुरु की 61 वर्षीय सरला मिन्नी. अब आगे की कहानी उन्हीं की जुबानी. 'कहानी देखने-सुनने, खेलने आदि के लिए स्क्रीन (टीवी/मोबाइल)से चिपके बच्चों को देख पीड़ा होती थी. कई को कहानी सुनाने के लिए नानी-दादी नहीं होती हैं. इसलिए नानी-दादी वाली कहानी सुनने की बेशकीमती सौगात हर बच्चे तक पहुंचाने की इच्छा हुई. भतीजी पारुल रामपुरिया ने रिकार्डेड कहानी व्हाट्सएप ऑडियो जरिए भेजने का आइडिया दिया. पहले पहल कहानी रिकार्ड की गई. उसे दोस्तों व सगे-संबंधियों को भेजा गया. सकारात्मक प्रतिक्रिया के बाद 21 मार्च, 2017 को 'कहानीवाली नानी' की शुरुआत हुई. ज्यादातर लोक कहानी. एक ही कहानी के अलग-अलग वर्जन को पढना. कहानी की कई किताबें पढीं. इंप्रोवाइज कर बच्चों के लिए पसंदीदा बनाया. मानो जैसे उनकी नानी सामने बैठकर कहानी सुना रही हों. अभी तक देश सहित अमेरिका, ब्रिटेन, यूएइ, हांगकांग, थाईलैंड, आॅस्ट्रेलिया, जापान आदि में कहानीवाली नानी के लगभग तीन हजार सब्सक्राइबर हो चुके हैं. यह बिल्कुल फ्री सेवा है. कहानी वाली ऑडियो क्लिप 8-9 मिनट की होती है. कहानी बच्चों का अधिकार है.' 
कहानीवाली नानी से अपने बच्चों को कहानी सुनवाने के लिए उनके व्हाट्सएप नंबर +91 8867615400 पर बच्चे का नाम, जन्म तिथि, भाषा (हिंदी/अंग्रेजी) सेंड करें. फिलहाल सप्ताह में एक बार कहानी भेजने की व्यवस्था है. या www.kahaniwalinani.com इस लिंक पर जाकर भी सब्सक्राइब कर सकते हैं.  



कश्मीर से आई सकून भरी तस्वीरें

एक कश्मीरी परिवार अपने बच्चे को जम्मू कश्मीर लाइट इंफेंट्री रेजिमेंट में भर्ती की खुशी में चूमते हुए.
कश्मीर के अवंतीपुरा चौक पर जे.एंड.के पुलिसकर्मी एक बुजुर्ग महिला को सड़क पार कराते हुए. पुलिसवाले को सलाम.

देखो मगर हंस मत देना...

Friday, August 18, 2017

तलाक वाले वकील शादी बचाए

गुड़ न्यूज़ 
वकीलों की भलमनसी के किस्से अब लुप्त से हो गए हैं. आमतौर पर अब वकील की छवी ऐसी बन गई है कि जब झगड़े होते हैं तब वे खुश होते हैं. लेकिन हर दौर और महकमे में अपवाद मिल ही जाते हैं. तलाक कराने वाले एक वकील विवाह बंधन को बचाने में जुट गया है. भले इससे उसकी रोजी-रोटी प्रभावित हो रही हो, लेकिन उसे गम के बदले ज्यादा खुशी हैै. ब्राजील के एक छोटे शहर साओ सेबस्टियाओ ड परसियाओ के एक वकील राॅफेल गाॅनक्लेवस अपने साधारण सवालों से विवाह बंधन को टूटने से बचा रहे हैं. जब कोई दंपति उनके पास तलाक के लिए आता है, तो वह सबसे पहले उन दोनों में बचे प्यार को तलाशते हैं. इसके बाद तलाक के लिए जरुरी दस्तावेज की एक सूची बनाते हैं और आखिरी में कुछ सवाल भी लिखते हैं. दंपति को अगली बार आने से पहले उन सवालों के जवाब देने होते हैं. वकील साहब के सवाल-
1 क्या हमने हर वह प्रयास किया है, जिससे यह शादी कायम रहे?
2 क्या अब तलाक ही एक मात्र विकल्प है?
3 मेरे निर्णय को कौन प्रभावित कर रहा है?
4 साथ रहते हुए कितनी समस्याओं से उबरे हैं?
इन सवालों के बाद अधिकतर दंपति तलाक की अर्जी को आगे बढाने की मर्जी को त्याग रहे हैं. गाॅनक्लेवस कहते हैं, ऐसा कर मैं क्लाइंट और पैसा दोनों से हाथ धो देता हूं. लेकिन परिणाम मुझे संतुष्टि प्रदान करते हैं. काॅलेज में हमने सिखा है कि अदालत का दरवाजा खटखटाने से पहले अपने स्तर पर मनभेद-मतभेद झगड़े को यथा संभव सुलझाया जाये. वाकई में गाॅनक्लेवस का यह प्रयास सराहनीय है. क्या देश के मुवक्किलों के लिए वकीलों को भी ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए?
goodnewsnetwork





बहिष्कार नहीं इस्तेमाल करने में ही समझदारी है..

ओ.सी कुरियन 

भारत में चीनी वस्तुओं का बहिष्कार करने की मांग जोर पकड़ती जा रही है. राखी के मौके पर भी इसे लेकर काफी ढोल पिटा गया. भले ही इस तरह की अपीलें चीन निर्मित फोन का ही इस्तेमाल करते हुए सोशल मीडिया पर की जा रही हैं. जिन दवाओं के लिए भारत मशहूर है उन्हें बनाने में इस्तेमाल की जाने वाली थोक दवाओं का एक बड़ा हिस्सा चीन से ही आता है. चीन से थोक दवाओं का आयात वर्ष 2000 में लगभग 23 प्रतिशत का हुआ था, जो फिलहाल 52 प्रतिशत के स्तर पर टिका हुआ है. दिलचस्प बात यह है कि इसके बावजूद आयात के मुकाबले देश कहीं ज्यादा निर्यात करता रहा है. वर्ष 2008 में बीजिंग ओलंपिक के दौरान चीन ने पर्यावरणीय प्रदूषण को नियंत्रण में रखने के लिए कई बल्क ड्रग्स उत्पादन इकाइयों को बंद कर दिया था, जिसके चलते भारत में कीमतें लगभग 20 प्रतिशत बढ़ गई थीं. चीन पर निर्भरता का मुख्य कारण कोई और नहीं, बल्कि लागत संबंधी फायदा ही है. क्योंकि चीनी बल्क ड्रग्स भारतीय उत्पादों की तुलना में लगभग 50 से 60 प्रतिशत सस्ती बैठती हैं. तुलनात्मक रूप से दवा की कीमतें अत्यंत कम रहना ही वह प्रमुख कारक है जिससे भारत स्वास्थ्य क्षेत्र में मामूली सार्वजनिक खर्च के बावजूद अपनी आबादी के स्वास्थ्य की स्थिति में बेहतरी सुनिश्चित करने में समर्थ हो पाया है. इसके अलावा भारत में काफी तेजी से फैल रही सूचना क्रांति और डिजिटल समावेश पहल की बदौलत महज लगभग दो दशकों में ही मोबाइल फोन के आयात में चीन की हिस्सेदारी 8 प्रतिशत से ऊंची छलांग लगाकर 71 प्रतिशत के अत्यंत उच्च स्तर पर पहुंच गई है. क्या इस बारे में कोई शिकायत दर्ज करा रहा है? बेशक चीन के साथ मौजूदा संबंधों में आत्मसंतुष्टि की कोई गुंजाइश नहीं है, लेकिन चीनी वस्तुओं का एक बड़ा बाजार होने के नाते इस नजरिए को भारत द्वारा अपने फायदे के लिए चीन का इस्तेमाल करने में आड़े नहीं आना चाहिए.
साभार - आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन 

Wednesday, August 16, 2017

माई नेम इज खान, बट आइ एम नाॅट ए ...

बीआरडी काॅलेज के सेंटर पाइप लाइन आॅपरेटर ने प्रिंसिपल, एसआईसी, एचओडी एनेस्थिसिया, इंसेफलाइटिस वार्ड के नोडल अधिकारी को गुरूवार, 10 अगस्त को पत्र भेज कर आॅक्सीजन खत्म होने की जानकारी दे दी थी. उस समय लिक्विड आॅक्सीजन प्लांट की रडिंग 900 बता रही थी. इस बाबत स्थानीय अखबारों (आइनेक्स्ट में भी ) में 11 अगस्त को खबर भी प्रकाशित हुई. दो साल पहले बीआरडी (बाबा राघव दास ) काॅलेज में लिक्विड आॅक्सीजन प्लांट लगाया गया. इसके जरिए वार्ड 6,10,12,14 और इंसेफेलाइटिस वार्ड में मरीजों के लिए ऑक्सीजन सप्लाई होती है. प्रकाशित खबर में अगर समय से आॅक्सीजन नहीं मंगाया गया तो भर्ती मरीजों पर संकट मंडराने की बात भी कही गई थी. इस पर प्रिंसिपल डाॅ राजीव मिश्रा की प्रतिक्रिया थी, 'आॅक्सीजन गैस सिलेंडर पर्याप्त मात्रा में है'. उसी रात 8 बजे से आॅक्सीजन सप्लाई ठप होने का सिलसिला शुरू  हुआ. इस वक्त इंसेफेलाइटिस वार्ड में सप्लाई बंद हुई. इसके बाद वार्ड को लिक्विड आॅक्सीजन से जोड़ा गया. रात के करीब साढे ग्यारह बजे यह भी बंद हो गया. इस बीच रात डेढ़ बजे तक सप्लाई बंद रहा. इसके बाद एक ट्रक से आॅक्सीजन सिलेंडर लाया गया और उसे पाईप लाइन से जोड़ा गया. सुबह 7 बजे फिर सिलेंडर खत्म हो गया. इसके बाद एंबू बैग से मरीजों को आॅक्सीजन दिया जा रहा था. इस दौरान मौतों का सिलसिला जारी रहा. इस दौरान इंसेफेलाइटिस वार्ड में 54 बच्चे वेंटीलेटर पर थे. वार्ड के स्टाफ से बात करें तो वे दबी जुबान में सिलेंडर की कमी के लिए तत्कालीन प्रिसिंपल को दोषी मानते हैं. उनका कहना है कि अगर प्रिंसिपल साहब समय पर सिलेंडर मंगवा लेते, तो इतने बच्चे नहीं मरते. लेकिन, प्रिंसिपल तो कहने भर थे, सच्चाई है कि सब काम उनकी पत्नी के कहने से होता था.
इन सब के बीच इंसेफलाइटिस वार्ड के नोडल अधिकारी डाॅ कफील खान का नाम पहले बतौर हीरा के तौर पर उभरा. उसके बाद सोशल मीडिया में कई आरोप भी उछले. हालाकि फिलहाल उन्हें पद मुक्त कर दिया गया है. 
सिलेंडर के लिए की जद्दोजहद? 
ऑक्सीजन सिलेंडर की कमी को दूर करने के मामले में उनके प्रयास को लेकर एसएसबी यानी सशस्त्र सीमा बल के पीआरओ ओपी साहू का बयान सामने आया है. उनके अनुसार, 10 अगस्त को बीआरडी मेडिकल काॅलेज में संकट था. खान ने डीआइजी एसएसबी से ट्रक की सेवा प्रदान करने की मांग की ताकि विभिन्न जगहों से ऑक्सीजन सिलेंडर लाई जा सके. डीआइजी ने न सिर्फ ट्रक बल्कि 11 जवानों की सहायता प्रदान की. इन्ही  एसएसबी जवानों द्वारा रात डेढ बजे ट्रक से सिलेंडर लाया गया था. दैनिक भास्कर की एक खबर  का अंश- रुस्तमपुर में नहर रोड स्थित अस्पताल में रविवार सुबह 10.30 बजे जब डॉ. कफील के बारे में पूछा गया तो वहां वर्कर्स ने कहा, ''हां, यह डाॅ. कफील खान का है. यहीं से रात में वह सिलेंडर ले गए थे."  
सिलेंडर व उपकरण का निजी इस्तेमाल?
इस संबंध में फिलहाल कोई ठोस प्रमाण नहीं मिल सके हैं.  लेकिन, पुराने जानकर सवाल खड़ा करते हैं कि संकट के समय डॉ को मरीजों की तीमारदारी में लगे रहना चाहिए था. उस वक्त बाहर निकलना संदेह पैदा करता है. कहीं सिलेंडर की गिनती में कमी को पूरा करने की तो यह कवायद नहीं थी?   
सीएम को क्यों नहीं बताया?
9 अगस्त को सीएम योगी के वार्ड नीरिक्षण के दौरान डाॅ काफील ने उन्हें कई मशीनों की जानकारी देते हुए देखे गए थे. लेकिन, आॅक्सीजन आपूर्तीकर्ता कंपनी से भेजे गये पत्र (डाॅ कफील को भी) की जानकारी क्यों नहीं दी?
प्राइवेट प्रैक्टिस करते हैं?
चार फरवरी को आइनेक्स्ट अखबार के द्वारा एक स्टिंग कराया गया. इससे संबंधित 6 फरवरी को प्रकाशित खबर के अनुसार, 4 फरवरी शाम को डाॅ कफील  मेडिस्प्रिंग हाॅस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर (पत्नी का) में मरीज देखते पाए गए. उन्होंने अपने इस नर्सिंग होम का कलेंडर भी बीआरडी के बाल रोग विभाग में टांग रखा था. 
यौन उत्पीड़न का मामला?
सोशल मीडिया में इससे संबंधित आरोप निराधार है. पुलिस आरोपों को असत्य एवं बेबुनियाद बताते हुए क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर चुकी है.
अनाप-शनाप ट्वीट? 
जिस टवीटर एकाउंट का हवाला दिया जा रहा है, उसके तार डाॅ काफील से जोड़ने का फिलहाल कोई ठोस प्रमाण नहीं है.

Monday, August 14, 2017

बाढ़ विनाश लीला

यह मानवीय वेदना को झकझोड़ देने वाली तस्वीरें नेपाल के सतपारी जिले के कुलारी गांव की है. यूरोपियन प्रेसफोटो एजेंसी के फोटोग्राफर नरेंद्र श्रेष्ठ ने यह तस्वीरें गत 13 अगस्त को अपने कैमरे में कैद की थी. नरेंद्र श्रेष्ठ के अनुसार, दुधमुंहा कमल सदा निमोनिया से ग्रसित था. उसका परिवार उसे चार दिनों से हो रही बारिश व बाढ़ के कारण अस्पताल ले जाने में असमर्थ था. आख़िरकार, ठंड और लगातार बारिश की वजह से उसकी मृत्यु हो गई. स्थानीय रीति के अनुसार, उसे दफनाया जाना था, लेकिन बाढ़ के कारण ऐसा कर पाना असंभव था. इस वजह से कमल के चाचा देव कुमार सदा ने निर्णय लिया कि उसे कोशी नदी में प्रवाह कर दिया जाये. कमल के पिता रोजी-रोटी के लिए भारत में हैं. श्रेष्ठ को कमल के चाचा ने बताया कि उन्हें ऐसा करने के पीछे एक उम्मीद है.  नदी के प्रवाह उसे धरती नसीब करा देगी. तस्वीर में देव कुमार सदा अपने भतीजे कमल सदा के पार्थिव शरीर को कोशी नदी में प्रवाहित करते हुए. 
courtesy - http://www.epa.eu/

Sunday, August 13, 2017


थांबा थांबा प्रभुजी, पहिले सौ रूपये दंड दया

1996 में जब महराष्ट्र में बीजेपी-सेना पहली बार सरकार में आई, तो दोपहिया वाहन चालकों के लिए हेलमेट न पहनने की छूट प्रदान कर दी. इस बार सत्ता में आते ही हेलमेट पहनने की अनिवार्यता को सख्ती से पालन कराने के लिए कई नये नियम बना डाली. मसलन, दोपहिया खरीदने वक्त डीलर से दो हेलमेट खरीदने का प्रावधान, नये लाइसेंस के लिए हेलमेट पहनने संबंधी बॉन्ड भरवाना, नो हेलमेट, नो पेट्रोल आदि. वहीं बाॅम्बे हाईकोर्ट ने चालक के साथ ही पिछली सीट पर बैठे सवारी को भी हेलमेट पहनने की अनिवार्यता लागू करने के लिए प्रदेश सरकार को आदेश दिया. मुंबई ट्राफिक पुलिस बगैर हेलमेट पिछली सीट पर बैठी सवारी के मामले में सौ रूपये जुर्माने की रकम वसूल रही है. इस जुर्माने के अलावा आरटीओ के पास दो घंटे की लेक्चर क्लास के लिए भेजे जाने का प्रावधान शामिल है.

किसने खींची रामदेव की दाढ़ी ?


Saturday, August 12, 2017

बतकही

मोदी बाबूभाई का याराना !
शरद यूपीए के नीतीश एनडीए के संयोजक बनेंगे !

बतौर एनडीए के पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने मई, 2014 में डीडी न्यूज को एक इंटरव्यू दिया था. एक अखबार में छपी खबर के मुताबिक इंटरव्यू के एक हिस्से में नरेंद्र मोदी ने अहमद पटेल को अपना अच्छा दोस्त बताया था. हालांकि यह हिस्सा प्रसारित नहीं किया गया था. इस हिस्से में नरेंद्र मोदी कथित तौर पर कहा था, कांग्रेस में हमारे कई अच्छे दोस्त हैं. अहमद पटेल उनमें से एक हैं. अहमद पटेल के साथ अच्छे निजी संबंध थे. मैं उनके घर खाने जाता था. आजकल ही उनको बात करने में कठिनाई हो गई है. फोन भी नहीं उठाते. हम उन्हें पहले बाबूभाई बुलाते थे. लेकिन पब्लिक में तो ऐसा नहीं बुला सकते. हलांकि तब अहमद पटेल ऐसी बातों को ख़ारिज करते हुए कहा था, 1980 के दशक में एक बार मोदी के साथ खाना खाया था. अब कहा जा रहा है कि अगर भाजपा सही मायने में अहमद पटेल को हराना चाहती तो किसी धुरंदर राजनीतिज्ञ जैसे शंकर सिंह वाघेला को मैदान में उतारती न कि उनके समधी को. वहीं इस चुनवा में शरद यादव की भूमिका को काफी अहम मानी जा रही है. जदयू के एक मात्र विधायक छोटू वसावा ने अहमद पटेल को वोट दिया. एक वोट से जीत दिलाने में शरद यादव के नजदीकी माने जाने वाले इस विधायक का सबसे अहम किरदार रहा. इसके बाद चर्चा का बाजार गर्म है कि जदयू के संसदीय दल के नेता के तौर पर निष्काषित शरद यादव को यूपीए का संयोजक बनाया जायेगा. वहीं दूसरी ओर सीएम नीतीश कुमार को एनडीए के संयोजक बनाये जाने की चर्चा है. ऐसे में आने वाले दिनों में नीतीश बनाम शरद की अदावत देखना दिलचस्प होगा.

'... मासूम बच्चे गिनी पिग हो गए हैं '


Thursday, August 10, 2017

चोर - झपटमार छोड़ देंगे मोबाइल की चोरी - झपटमारी

गुड न्यूज

जल्द ही हम सभी मोबाइल की चोरी या झपटमारी के भय से मुक्त होने वाले हैं. दरअसल, अभी तक चोर मोबाइल हैंडसेट चोरी कर उसके आईएमईआई नंबर बदल कर उसे बेच रहे हैं. खरीदार भी बड़े मजे से कम कीमत पर मिले हैंडसेट का धरल्ले से इस्तेमाल कर रहे हैं. आईएमईआई नंबर बदल जाने के कारण चोरी के हैंडसेट बरामद करना पुलिस के लिए टेढी खीर साबित होती है. लेकिन, अब सरकार एक साथ दो उपाय करके हैंडसेट की चोरी पर पूरी तरह नकेल कसने की तैयारी में हैं. यह गुड न्यूज लोकसभा में कांग्रेस के सांसद ज्योतिरादित्य माधवराव सिंधया के सवाल पर संचार राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार मनोज सिन्हा के लिखित जवाब से सामने आई. मंत्री के अनुसार, मोबाइल आईएमईआई यानी अंतरराश्ट्रीय मोबाइल उपकरण पहचान संख्या में छेड़छाड़ को रोकने के लिए इसे दंडात्मक अपराध की श्रेणी में लाने संबंधी नियमावली 2017 तैयार करने की प्रक्रिया चल रही है. इससे आईएमईआई को जानबूझ कर हटा कर, मिटा कर, परिवर्तन करके या उसमें अदल-बदल करना नामुमकिन हो जाएगा. दरअसल, फर्जी आईएमईआई वाले मोबाइल फोन खोए या चुराए हुए हैंडसेटों को ढूंढने में कठिनाई उत्पन्न करते हैं. इसके अलावा सरकार आईएमईआई के केंद्रीकृत डाटाबेस में शामिल नंबरों वाले हैंडसेट को ही सर्विस प्रोवाइडर कंपनियों द्वारा सेवा मुहैया कराने पर सख्ती बरतेगी. सभी कंपनियों के हरेक हैंडसेट के आईएमईआई नंबर डेटाबेस में शामिल किये जे रहे हैं. इस सेंट्रल डाटाबेस से सभी सर्विस प्रोवाइडर जुड़े हैं. काली सूची में डाले गये आईएमईआई नंबर या डाटाबेस में अनुउपलब्ध नंबर वाले हैंडसेट पर सेवा मुहैया नहीं कराया जा सकता. यानी सिम कार्ड बदलने पर भी हैंडसेट काम नहीं करेगा. ऐसे में चोरी के हैंडसेट खोजने में भी पहले की तुलना में बेहद आसानी होगी. वहीं देश में फर्जी/डुप्लिकेट आईएमईआई वाले मोबाइल हैंडसेटों के प्रवेश को रोकने पर भी सख्त कदम उठाये जा रहे हैं. ऐसे में चोरी - झपटमारी के मोबाइल हैंडसेट का कोई इस्तेमाल ही नहीं हो पायेगा.  

डांट - फटकार का कोई फर्क नहीं पड़ता


x

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गत 9 मई को छत्तीसगढ़ के बस्तर गए थे. यहां डीएम अमित कटारिया पीएम  की अगवानी के समय धूप का चश्मा और रंगीन ड्रेस पहने हुए थे. इस पर कटारिया को नोटिस भेजा गया था, 'यह कृत्य ऑल इंडिया सर्विस (कंडक्ट) रूल्स 1968 के क्लॉज 3(1) के विपरीत और अशोभनीय भी है.' इस रूल्स  के प्रावधानों के तहत आईएएस अधिकारियों के लिए ड्रेस कोड तय किये गये हैं. ट्रेनिंग के अलावा गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस, राज्यपाल, राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री के आगमन, अदालतों में उपस्थिति सहित विभिन्न अवसरों पर कौन सी पोशाक पहनना है, यह निर्धारित किया गया है. ठीक इसके एक दिन बाद यानी 10 मई को झारखंड हाइकोर्ट में सूबे की मुख्य सचिव राजबाला वर्मा रंगीन साड़ी पहन कर उपस्थित हो गईं. इस पर मुख्य न्यायाधीश प्रदीप कुमार मोहंती की अगुवाई वाली पीठ ने फटकार लगाते हुए कहा था, 'क्या यही आपका ड्रेस कोड है. अदालत का सम्मान करें.' साथ ही एडवोकेट जनरल को हिदायत दी थी कि कोर्ट में उपस्थिती को लेकर ट्रेनिंग के दौरान सिखाये गये ड्रेस कोड का पालन सुनिश्चित कराएं. नया मामला बिहार के मुख्य सचिव अंजनी कुमार सिंह का समाने आया है. दरअसल, गत मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस जे चेलेमेश्वर और जस्टिस एस अब्दुल नजीर की पीठ में एक मामले की सुनवाई के दौरान अंजनी कुमार सिंह अनौपचारिक पहनावे में उपस्थित हो गये. मुख्य सचिव के काले रंग का पैंट और बंद गला शर्ट पहने होने के कारण पीठ ने मामले की सुनवाई स्थगित करते हुए उन्हें कड़ी फटकार लगाई. 'क्या आप बता सकते हैं कि आप सीएम के सामने कैसे पेश आते हैं. क्या आप सीएम के साथ बैठक में अनौपचारिक पहनावे में उपस्थित होते हैं. अगर ऐसा नहीं, तो कैसे अनौपचारिक पहनावे में अदालत में उपस्थित हुए.' देश की शीर्ष अदालत में इस तरह आना सही नहीं है. इसके बाद मुख्य सचिव ने तुरंत अपने पहनावे को लेकर माफी मांग ली.

Wednesday, August 9, 2017

अधिकांश ट्रेनें समय पर

पिछले 3 साल 4 महीने (2014 से 2017 जुलाई) से औसतन 
86 प्रतिशत ट्रेनें नियत समय से खुल रहीं हैं.
78 प्रतिशत ट्रेनें बिना किसी देरी के गंतव्य पर पहुंच रहीं हैं.
भरोसा नहीं होता? तस्वीर टिकटिकाइए---

'आलसस्य लब्धमपि रक्षितुं न शक्यते'

साल 1977 की जनता लहर में जब इंदिरा गांधी तक को हार का मुंह देखना पडा था, तब सबसे कम उम्र महज 26 साल के अहमद पटेल भरूच से जीत कर लोक सभा पहुंचने में कामयाब रहे थे. 40 साल बाद वह और उनकी पार्टी उसी जनता पार्टी का हिस्सा रही भारतीय जन संघ अब भारतीय जनता पार्टी से सबसे मुश्किल चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. एक ओर अहमद पटेल कांग्रेस के तो दूसरी ओर मौजूदा दौर में पार्टी अध्यक्ष अमित शाह भाजपा के चाणक्य माने जाते हैं. हाई वोल्टेज ड्रामे के बाद जैसे-तैसे कांग्रेस के चाणक्य अपनी राज्यसभा सीट बचाने में कामयाब रहे. दोनों चाणक्य में और उनके राजा (सोनिया/राहुल गांधी व नरेंद्र मोदी) के बीच चाणक्य सूत्र के आधार पर बड़ा फासला नजर आता है. चाणक्य कह गये, 'आलसस्य लब्धमपि रक्षितुं न शक्यते.' अर्थात आलसी प्राप्त वस्तु की भी रक्षा नहीं कर सकता. 'न आलसस्य रक्षितं विवर्धते.' यानी आलसी के बचाए गए किसी भी वस्तु की बढोतरी नहीं होती. हाल ही में मणिपुर व गोवा में सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरने के बावजूद कांग्रेस सत्ता प्राप्त करने में असफल रही. इसके लिए पार्टी भले ही अपना चेहरा बचाने के लिए भाजपा को कोसे, लेकिन असल कारण मौका गवाने ही है. वहीं बिहार सत्ता परिवर्तन पर राहुल गांधी के  बयान को याद करें, 'तीन-चार महीनों से हमें पता था कि ये प्लानिंग चल रही है.' अब गुजरात की बात करें, सूबे में पार्टी के सिरमौर शंकर सिंह वाघेला लगभग चार महीनों से विद्रोही तेवर अपनाये हुए थे. 2012 विधानसभा चुनाव में जीते 57 पार्टी विधायकों में से बड़ी मशक्कत के बाद महज 42 ही साथ में खड़े हैं. इसके लिए भी कई तरह के पापड़ बेलने पड़े. अब चाणक्य के एक दूसरे सूत्र की कसौटी पर अमित शाह को परखें. 'अलब्धलाभादि चतुष्टयं राज्यतंत्रम् ' अर्थात न प्राप्त होने वाले को प्राप्त करना, उसकी रक्षा करना तथा उसका उचित उपयोग करना, ये चार राजा के लिए आवश्यक हैं. फिलहाल अमित शाह इसी नीति पर काम करते नजर आ रहे हैं. मणिपुर, गोवा व बिहार में सफल होने के बाद गुजरात में भी. अगर, दो विधायकों के मत खारिज नहीं होते (चुनाव आयोग की नजरों में सही ) तो न प्राप्त होने वाला भी प्राप्त हो जाता. उल्लेखनीय है कि जरुरी आंकडे नहीं होने के बावजूद बलवंत सिंह राजपूत को तीसरा उम्मीदवार बनाया गया था. अहमद पटेल की जीत के बाद कांग्रेस की डूबती नैया को थोड़ा मनोवैज्ञानिक सहारा जरुर मिला है. अंत में चाणक्य के दो सूत्र-  'विक्रमध्ना राजानः' यानी राजनीति के ज्ञान से राजा का प्रभाव बढ़ता है. 'उत्साहवतां शत्रवो$पि वशीभवन्ति.' यानी उत्साही राजा अपने शत्रुओं को भी वश में कर लेता है. 

Monday, August 7, 2017

कैसे बचे बेटी, कैसे बढ़े बेटी, जब 85 फीसदी बेटी हो असुरक्षित


सीमा कुमारी 

इसी साल बीते मई महीने में हरियाणा के रेवाड़ी में आमरण अनशन पर छात्राएं बैठी थी. यह खबर याद है न आपको ! रेवाड़ी के खोल ब्लॉक के गांव गोठड़ा टप्पा डहिना की करीब 80 से ज्यादा छात्राएं 8 दिनों तक धरने पर बैठी हई थीं. इनकी मांग थी कि गांव के 10वीं तक के स्कूल का दर्जा बढ़ा कर सीनियर सेकेंडरी किया जाए जिससे कि वहां 12वीं तक पढ़ाई हो सके. छात्राओं को 10वीं से आगे की पढ़ाई के लिए कनवली स्थित स्कूल जाना पड़ता है. यह स्कूल इनके गांव से करीब 3 किलोमीटर दूर है. छात्राओं के मुताबिक उन्हें रोज स्कूल आने-जाने में छेड़खानी का शिकार होना पड़ता है.   
इसी दौरान मई महीने में ही महिलाओं को सुरक्षा देने और यौन अपराधों पर नकेल कसने के लिए हरियाणा पुलिस ने एक आॅनलाइन मुहीम चलायी थी. इस मुहीम को नाम दिया गया था, यश (यूथ अंगेस्ट सेक्सुअल हरासमेंट). तब सूबे के डीजीपी बीएस संधु ने कहा था, पुलिस राज्य भर में महिलाओं के लिए घरों, सडकों व काम के जगहों को सुरक्षित बनाने की योजना पर काम कर रही है. इस मुहिम के तहत छेडखानी से बचाव के लिए चेतावनी, सीसीटीवी, सादी वर्दी में पुलिसबलों की तैनाती और सबसे ज्यादा माइंडसैट और व्यवहार में बदलाव के लिए व्यापक जागरुकता जैसे उद्देश्य निहित हैं. उस समय जनवरी से मार्च तक का अपराध ब्योरा देते हुए कहा गया था, उत्पीड़न के 118, यौन उत्पीड़न के 148, 3 निःवस्त्र, 51 पीछा करने, 26 छेड़छाड़ के मामले दर्ज किये गये. एडीजीपी ओपी सिंह ने कहा था, वास्तविक स्थिति इससे भी खराब हो सकती हैं. क्योंकि महिला उत्पीड़न मामले दर्ज कराने का प्रथा बेहद कम प्रचलित है. पुलिस के इस सर्वे में 85 फीसदी युवतियों ने छेड़छाड़ की संभावनाओं से खुद को आशंकित बताया. जिसमें 24.4 फीसदी ने हमेशा, 38 फीसदी अधिकतर समय, 23 फीसदी कभी - कभार छेडछाड होने का भय जताया. 64 फीसदी युवतियों ने स्कूल, काॅलेज व कार्यालय से आते-जाते वक्त छेड़छाड़ होने की बात कही. वहीं 22 फीसदी ने पार्क, बाजार और कोचिंग सेंटर में छेडछाड की बात. अब जहां 85 फीसदी युवतियां खुद को असुरक्षित महसूस करे, वहां तो हजारों वर्णिका कुंडू होंगी. लेकिन हां उन्हें वर्णिका कुंडू की तरह आगे आना पड़ेगा. 

मंत्रीजी, होम क्वरंटाइन में घुमे जा रहे हैं

 बतौर केंद्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री कोरोनाकाल में अश्वनी चैबे की जिम्मेवारियां काफी बढ जानी चाहिए। क्योंकि आम लोग उनकी हरेक गतिविधियों खासक...