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1 सितंबर 1947, यानी आज शुक्रवार से 70 साल पहले भारतीय मानक समय (इंडियन स्टैंडर्ड टाइम, IST) को पूरे भारत में लागू किया गया था. इसका उद्देश्य पूरे देश में एक ही मानक समय कि स्थापना करना था. इसी के आधार पर आज हमारी घड़ियां हमें हर रोज़ सहीं समय दिखाती हैं. भारतीय समय ग्रीनविच मीन टाइम(GMT) से साढ़े पांच घंटे आगे चलता है, ताकि हर दिशा में स्थित राज्यों में एक ही तरह का टाइम ज़ोन बनाया जा सके. दरअसल समस्या यह है कि भारत की पूर्व और पश्चिम सीमा की दूरी 2933 किमी है जिस वजह से पूर्व में सूर्योदय और सूर्यास्त पश्चिम से दो घंटा जल्दी होता है और दोनों ज़ोन के समय में विविधता आ जाती है. दो राज्यों के समय में अंतर होने की वजह से औपचारिक कार्यों और घटनाओें के समय को दर्ज करना बहुत मुश्किल हो जाता है. इसलिए आजादी से महज़ सोलह दिनों बाद ही भारत सरकार ने मानक समय के तौर पर इंडियन स्टैंडर्ड टाइम कि घोषणा की. इस समय को उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर स्थित शंकरगड़ किले से 82.58* E लांगिट्यूट कि दिशा पर मापा जाता है.
कोई तरोताजा तो कोई थका
बीजू जनता दल (बीजेडी) के सांसद भतृहरि महताब ने इसी साल 19 जुलाई को लोकसभा में मुद्दा उठाया था कि देश के पूर्वी और पश्चिमी छोर के समय में लगभग दो घंटे का अंतर है. ऐसे में अलग मानक समय (टाइम जोन) होने की स्थिति में मानव श्रम के साथ अरबों यूनिट बिजली भी बचाई जा सकती है. जब भारत के बाकी हिस्सों में साल के सबसे लंबे दिन का सूरज उगता है तब यहां के उत्तर-पूर्वी हिस्से का काफी दिन गुजर चुका होता है. देश के इस हिस्से में सूरज काफी जल्दी उग आता है लेकिन इनकी दिनचर्या भारत के बाकी हिस्से की तरह ही चलती है यानी दफ्तर दस बजे और स्कूल आठ बजे ही खुलते हैं. फर्क सिर्फ इतना है कि दिल्ली में रहने वाला व्यक्ति तरोताजा होकर दफ्तर पहुंचता है, वहीं उत्तर-पूर्वी राज्यों में रहने वाले शख्स का दिन दफ्तर पहुंचने तक काफी कुछ गुजर चुका होता है. वह काम से लौटते हुए नहीं, जाते वक्त भी थका हुआ होता है. संसदीय मामलों के मंत्री अनंत कुमार का कहना था कि यह मुद्दा बेहद अहम और संवेदनशील है और सरकार इस पर गंभीरता से विचार करेगी.