पहले 20 हजार रुपये जुर्माना चुकाना की मिली सजा
दिल्ली हाई कोर्ट ने बिहार के सीएम नीतीश कुमार पर 20 हजार रुपये जुर्माना चुकाने की सजा दी है. यह जुर्माना उनके नाम से लिखित बुक 'स्पेशल कैटगोरी स्टेटस : ए केस आॅफ बिहार' के प्रकाशन में काॅपीराइट उल्लंघन मामले में लगाया गया है. नीतीश कुमार ने हाई कोर्ट में इस मामले में उनसे संबंधित आरोपों को निरस्त करने का आवेदन दिया था. इसके पीछे उनका तर्क था कि उन्हें द्वेषपूर्ण मंशा से शर्मिंदा करने के लिए पक्षकार बनाया गया है. लेकिन, हाई कोर्ट ने सीएम की दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि उनपर मुकदमा चलने के पर्याप्त आधार हैं. नीतीश ने वर्तमान अंतरिम आवेदन कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग किया है, लिहाजा इसे 20 हजार रुपये जुर्माने के साथ खारिज किया जाता है. आइए, अब जानते हैं कि दरअसल यह पूरा मामला है क्या-
साल 2006 में एक छात्र अतुल कुमार सिंह पीएचडी के लिए जेएनयू में दाखिला लेते हैं. गृह राज्य बिहार को अपने शोध पत्र का विषय तय करते हैं. थीसिस का शीर्षक देते हैं, 'रोल आॅफ स्टेट इन ईकनामिक ट्रैन्स्फर्मेशन : ए केस स्टडी आॅफ कन्टेम्परेरी बिहार'. खूब वाहवाही मिली. आइए अब चलते हैं, साल 2009 में. दिनांक-15 मई (शुक्रवार), 2009. स्थान- मौर्या होटल का कौटिल्य हाॅल, पटना. समय- सुबह के 10ः30 बजे. इसके कुछ चंद पल बाद सीएम नीतीश कुमार की उपस्थिति में एक बुक का विमोचन होता है. विख्यात अर्थशास्त्री व लेखक लाॅर्ड मेघनाद देसाई द्वारा नीतीश कुमार के नाम से लिखित 'स्पेशल कैटेग्री स्टेटस : ए केस आॅफ बिहार' का. उस दौरान राज्य को विशेष दर्जा देने की मांग जोर - शोर से उठाई जा रही थी. लिहाजा सीएम की बुक की चर्चा भी खूब हुई. बुक के प्रस्तावना में लिखा गया था, "This book is the outcome of a rigorous academic exercise, under the overall
guidance and stewardship of Shree Nitish Kumar, justifying the grant of special
category status for Bihar.” अतुल कुमार ने अपने शोध पत्र के समान विषय वस्तु को किसी दूसरे की बुक में प्रकाशित करने को लेकर आपत्ति आपत्ती दर्ज कराई. तब बुक के प्रकाशक एशिया डेवल्पमेंट रिसर्च इंस्टिटयूट यानी आद्री ने उलट उन्हीं पर राज्य के दस्तावेज चोरी कर खुद के कार्य के लिए इस्तेमाल करने का आरोप लगा दिया. इतना ही नहीं अतुल पर दो संस्थनों से अलग - अलग वेतन या भत्ता लेने का भी आरोप लगाया गया. जेएनयू प्रशासन ने जांच के बाद 10 मई, 2010 को अतुल पर लगे आरोपों को गलत बताते हुए खारिज कर दिया. इसके बाद अतुल ने सीएम और आद्री पर काॅपीराइट उल्लंघन और 25 लाख रुपये क्षतिपूर्ति मामले का दावा ठोक दिया. दरअसल, आद्री पटना के निदेशक शैबाल गुप्ता ने ही अतुल को शोध पत्र के लिए ऐसा विषय वस्तु चुनने का सुझाव दिया था. हालांकि बाद में बुक का नया संस्करण लाया गया, जिसमें सीएम नीतीश कुमार का नाम बतौर लेखक से हटाकर अनुमोदनकर्ता के तौर पर पेश किया गया. वहीं आद्री ने नीतीश कुमार के बतौर लेखक होने को लिपिकीय त्रुटि करार दिया. साथ ही तर्क दिया गया कि अगर कोई बिहार के आर्थिक सर्वेक्षण का एक अध्याय लिखता है तो क्या उसे इसका लेखक कहलाया जायेगा. बुक के पहले संस्करण में प्रकाशित प्रस्तावना के दो पैराग्राफ अतुल के शोध पत्र के विषय वस्तु के थे. एक सूबे के मुखिया होने के नाते नीतीश कुमार ने बगैर जांचे परखे किसी बुक के बतौर लेखक अपना नाम कैसे दे दिया?
तस्वीर व संदर्भ साभार - www.outlookindia.com/magazine
क्या खूब तहक़ीक़ात कर खबर की है
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