Saturday, August 26, 2017

लाल के भरोसे लालू की रैली

पहली रैली में दुधमुंहे अब मुख्य कर्ता - धर्ता 
जब पहली बार सीएम बनने के बाद लालू प्रसाद पटना के  गांधी मैदान में गरीब महारैला आयोजित की थी, तब उनके पुत्र पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव दुधमुहे बच्चे थे. आज वही तेजस्वी यादव रैली के मुख्य कर्ता - धर्ता हैं. राजद प्रमुख की दूसरी पीढ़ी अगुआई कर रही है. अब साफ जाहिर सी बात है कि राजद प्रमुख लालू प्रसाद अपनी सियासत की विरासत पुत्र तेजस्वी यादव को सौंप चुके हैं. डिप्टी सीएम बना कर व 'जनादेश अपमान यात्रा' का कमान देकर. इसके साथ ही 'भाजपा भगाओ, देश बचाओ रैली एक मायने में सियासी शक्ति प्रदर्शन से ज्यादा राजद के नेतृत्व परिवर्तन का संदेश देने का जरिया भी है. इन सब के बावजूद, लालू व तेजस्वी में फर्क है. एक तरफ हैं लोगों को पुचकारने, डांटने वाले लालू, तो दूसरी तरफ हैं सौम्य स्वभाव वाले तेजस्वी. एक तरफ हैं ठेठ, गंवई अंदाज में लोगों को लुभाने वाले लालू तो दूसरी ओर हैं तकनीकी और सोशल मीडिया को अपना मंत्र बताने वाले तेजस्वी. खैर, लालू अपनी पार्टी को पुराने अंदाज से निकालकर मॉर्डन लुक दे रहे हैं. खुद भी सोशल मीडिया में सक्रिय हैं.
इस बार जब से राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने 27 अगस्त की 'भाजपा भगाओ-देश बचाओ' रैली का आह्वान किया. तब से वह रांची अदालती कार्यवाही में ही ज्यादा उलझे रहे. मां राबड़ी  देवी ने दोनों भाईयों तेजस्वी और तेज प्रताप को तिलक लगा कर सियासी रणक्षेत्र में भेजा. कहने को तो यह जनादेश अपमान यात्रा थी, लेकिन यह रैली के लिए आमंत्रण सभा ज्यादा लगी. खुद लालू सोनपुर जैसे नजदिकी क्षेत्र का ही दौरा कर पाये. तेजस्वी फर्राटे से बोलने लगे हैं. हालांकि कई बार अनुभव की कमी भी झलकती है. इसके बावजूद समर्थकों के बीच अपनी जगह बनाने में सफल दिखते हैं. इस रैली की तुलना लालू की पिछली रैलियों से होना स्वभाविक है. 80 विधायकों की फौज वाली राजद अगर पिछली रैलियों की तुलना में भीड़ जुटाने में सफल हो गई, तो तेजस्वी पार्टी के लिए फ्रंट फेस बन जायेंगे. और लालू कोच की भूमिका में. अगर इसके विपरित कुछ भी हुआ तो यकीं मानिए यहां से लालू की पहली से चली आ रही मुसिबत चैगुनी हो जाएगी. 2001 से आयोजित रैलियों में लालू अपने दोनों पुत्रों तेजस्वी व तेज प्रताप को मंच पर बैठाते रहे हैं. दोनों तब चुप-चाप सब कुछ होते देखते-सुनते रहते थे. अब दोनों के कंधों पर रैली की सफलता की जिम्मेवारी है.
लालू की ब्रांड रैलियां
पहली बार मुख्यमंत्री बनने के बाद लालू प्रसाद ने पटना के गांधी मैदान में रैली आयोजित की थी. नाम दिया था, गरीब महारैला. उसके बाद से उनके नेतृत्व में लगभग 13 बड़ी रैलियां आयोजित हुई हैं. 30 अप्रैल, 2003 को लाठी रैली. नारा था, तेल पिलावन, लाठी घुमावन रैली. इसी तरह भंडाफोड़ रैली, देश बचाओ रैली, भाजपा-बुश भगाओ रैली, गांव बचाओ-देश बचाओ रैली. लेकिन, इन रैलियों के दौरान राजद सत्तसीन थी. वहीं 2013 में परिवर्तन रैली. जो 2007 की चेतावनी रैली से बड़ी थी. जबकि इस बीच 2009 लोकसभा  व 2010 विधानसभा चुनावों में करारी हार मिली थी. पहले की रैलियों में मंच पर एक मुख्य कुर्सी केवल लालू के लिए रखी होती थी. मंत्रियों व पार्टी के बडे पदाधिकारियों को या तो नीचे मैदान में रखी कुर्सियों पर जगह मिलती थी या लालू के पीछे नीचेे जमीन पर बिछी सफेद चादरों पर. लौंडा नाच से लेकर ठेठ गंवई अंदाज में अन्य संस्कृतिक कार्यक्रम. अन्य कहानियां भी प्रचलित हैं.  लेकिन, अब यह तस्वीर बदल गयी है.
रैली अब यात्रा में तब्दील
जब से नीतीश सत्ता में आये तब सेे सूबे की सियासी रैली की जगह यात्रा ने ले ली. समय-समय पर सीएम नीतीश कुमार एक खास उद्देश्य के साथ यात्रा पर निकलते हैं और लोगों के बीच जाते हैं. भाजपा के साथ सत्ता में आने के बाद पहली बार उन्होंने अधिकार रैली आयोजित की थी.

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