Tuesday, August 1, 2017

किसानों का दुख दूर करने आ गए प्रभु !

बड़बोले प्रभु

रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने चंद पल पहले ट्वीट करते हुए किसानों को मालामाल करने वाली सलाह दी है. अगर उनकी सलाह मानें, तो किसानों की हर समस्या छू मंतर हो जायेगी. उन्होंने ट्वीट किया है, 'किसानों को अपनी उपज सही समय पर बेचना चाहिए ताकि उन्हें अपनी कठिन परिश्रम का सर्वोत्त्म मूल्य मिल सके. किसानों की सहयता के लिए कृषि उत्पादन के भंडारण और अधिक रेल यातायात पर काम कर रहा हूं.' यानी किसानों को अपनी उपज बेचने का सही समय ही मालूम नहीं ! केंद्रीय मंत्री की बातों से तो ऐसा ही जाहीर होता है. बड़ी देर कर दी प्रभु आपने. ऐसी सलाह पहले देनी चाहिए थी. कई किसान आत्महत्या करने से बच जाते. देश के करोड़ों किसानों की माली हालात कब के सुधर गये होते. वाह प्रभुजी. प्रभुजी आप रेल मंत्री हैं. जिस ठसाठस डिब्बे में अधिकतर किसान सफर करते हैैैं, उसमें व्याप्त असुविधाओं पर भी गौर करें. किसानों की उपज को लाने- लेजाने से जुडी समस्याओं पर नजर डालिए. कुछ ही महीने पहले की बात है. जमीन अधिग्रहण के एक मामले में रेलवे की ओर से किसान को मुआवजा नहीं दिए जाने पर एक अदालत ने स्वर्ण शताब्दी एक्सप्रेस और लुधियाना स्टेशन को पीड़ित किसान संपूरण सिंह के नाम कर दिया था.  आलू, प्याज, टमाटर... का भाव नहीं मिलता. खरीदार नहीं मिलता. मजबूरन खेत में ही छोड़ना पड़ता है. कोल्ड स्टोरेज में छोड़ देना पड़ता है. क्योंकि भंडारण शुल्क बेचने के भाव से ज्यादा हो जाता है. कौन से सही समय की बात कर रहे हैं? कर्ज में डूबे हुए किसान सही समय का इंतजार करेंगे? खाद- बीज बिक्रेता, जुताई - पटवन करने वाले, खेतिहर मजदूर... किसानों के खुद की कई जरूरतें. सही समय का इंतजार करेंगे?
 देश भर में किसान आंदोलनरत हैं. देश में चीनी मिलों पर गन्ना किसानों का 19,000 हजार करोड़ से ज्यादा का बकाया है. मिल मालिकों का कहना है अब फायदा नहीं रहा. सरकार मदद करे, तभी हालात सुधरेंगे. पर सबसे बड़ा  सवाल है कि हर तरफ से मार झेल रहे किसानों को बकाया नहीं मिलने का जिम्मेदार कौन है? पंजाब में खेती करने वाले मंजीत सिंह कहते हैं, खेती लागत लगातार बढ रही है, जबकि फसलों का मूल्य उस रफ्तार से नहीं बढ रहा. पंजाब के किसानों को प्रति एकड़ 10 हजार या इससे भी अधिक का घाटा सहना पड़ रहा है. पिछले 50 सालों में लागत 300 गुना बढ़ा और फसलों के दाम में महज 22 गुना की बढोतरी हुई है.  कृषि मामलों के जानकार देवेंद्र शर्मा बीबीसी से बात करते हुए कहते हैं, दशकों से किसानों के साथ अन्याय हो रहा है. देश में किसान दुखी हैं. उनके पास सड़कों पर उतरनें के अलावा कोई चारा नहीं है. किसानों की एक ही दिक्कत है कि उन्हें उचित कीमत नहीं मिलती. वह कहते हैं, "सरकारी कर्मचारी को वेतन के अलावा 108 भत्ते मिलते हैं. लेकिन क्या किसानों की फसल के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करते समय ऐसा कभी उनकी जरुरतों के बारे में सोचा गया." देश की 70 फीसदी आबादी खेती किसानी से जुडी है लेकिन इनके पास कुल संपदा का मात्र 8 फीसदी है. देवेंद्र शर्मा दावा करते हैं कि साल 2016 के आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक भारत के 17 राज्यों में किसान परिवार की औसतन आय 20 हजार रुपये साल है. वह सवाल करते हैं, 'आधे देश में अगर 17 सौ रुपये किसान की मासिक आय है तो क्या यह शर्म की बात नहीं है. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस चुनाव के वक्त कहते थे कि सोयाबीन का भाव छह हज़ार रुपये होना चाहिए. उस वक्त भाव 3 हज़ार आठ सौ था आज जब वो मुख्यमंत्री हैं तब भाव पच्चीस सौ रुपये है.' प्रभुजी पिछले साल अरहर दाल की कीमत दो सौ रुपये प्रति किलो पार कर गयी थी. लेकिन आज किसानों को 50 रुपये भीे नहीं मिल रहे. उन्हें बेचने का सही समय बता दें.  


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