Wednesday, August 16, 2017

माई नेम इज खान, बट आइ एम नाॅट ए ...

बीआरडी काॅलेज के सेंटर पाइप लाइन आॅपरेटर ने प्रिंसिपल, एसआईसी, एचओडी एनेस्थिसिया, इंसेफलाइटिस वार्ड के नोडल अधिकारी को गुरूवार, 10 अगस्त को पत्र भेज कर आॅक्सीजन खत्म होने की जानकारी दे दी थी. उस समय लिक्विड आॅक्सीजन प्लांट की रडिंग 900 बता रही थी. इस बाबत स्थानीय अखबारों (आइनेक्स्ट में भी ) में 11 अगस्त को खबर भी प्रकाशित हुई. दो साल पहले बीआरडी (बाबा राघव दास ) काॅलेज में लिक्विड आॅक्सीजन प्लांट लगाया गया. इसके जरिए वार्ड 6,10,12,14 और इंसेफेलाइटिस वार्ड में मरीजों के लिए ऑक्सीजन सप्लाई होती है. प्रकाशित खबर में अगर समय से आॅक्सीजन नहीं मंगाया गया तो भर्ती मरीजों पर संकट मंडराने की बात भी कही गई थी. इस पर प्रिंसिपल डाॅ राजीव मिश्रा की प्रतिक्रिया थी, 'आॅक्सीजन गैस सिलेंडर पर्याप्त मात्रा में है'. उसी रात 8 बजे से आॅक्सीजन सप्लाई ठप होने का सिलसिला शुरू  हुआ. इस वक्त इंसेफेलाइटिस वार्ड में सप्लाई बंद हुई. इसके बाद वार्ड को लिक्विड आॅक्सीजन से जोड़ा गया. रात के करीब साढे ग्यारह बजे यह भी बंद हो गया. इस बीच रात डेढ़ बजे तक सप्लाई बंद रहा. इसके बाद एक ट्रक से आॅक्सीजन सिलेंडर लाया गया और उसे पाईप लाइन से जोड़ा गया. सुबह 7 बजे फिर सिलेंडर खत्म हो गया. इसके बाद एंबू बैग से मरीजों को आॅक्सीजन दिया जा रहा था. इस दौरान मौतों का सिलसिला जारी रहा. इस दौरान इंसेफेलाइटिस वार्ड में 54 बच्चे वेंटीलेटर पर थे. वार्ड के स्टाफ से बात करें तो वे दबी जुबान में सिलेंडर की कमी के लिए तत्कालीन प्रिसिंपल को दोषी मानते हैं. उनका कहना है कि अगर प्रिंसिपल साहब समय पर सिलेंडर मंगवा लेते, तो इतने बच्चे नहीं मरते. लेकिन, प्रिंसिपल तो कहने भर थे, सच्चाई है कि सब काम उनकी पत्नी के कहने से होता था.
इन सब के बीच इंसेफलाइटिस वार्ड के नोडल अधिकारी डाॅ कफील खान का नाम पहले बतौर हीरा के तौर पर उभरा. उसके बाद सोशल मीडिया में कई आरोप भी उछले. हालाकि फिलहाल उन्हें पद मुक्त कर दिया गया है. 
सिलेंडर के लिए की जद्दोजहद? 
ऑक्सीजन सिलेंडर की कमी को दूर करने के मामले में उनके प्रयास को लेकर एसएसबी यानी सशस्त्र सीमा बल के पीआरओ ओपी साहू का बयान सामने आया है. उनके अनुसार, 10 अगस्त को बीआरडी मेडिकल काॅलेज में संकट था. खान ने डीआइजी एसएसबी से ट्रक की सेवा प्रदान करने की मांग की ताकि विभिन्न जगहों से ऑक्सीजन सिलेंडर लाई जा सके. डीआइजी ने न सिर्फ ट्रक बल्कि 11 जवानों की सहायता प्रदान की. इन्ही  एसएसबी जवानों द्वारा रात डेढ बजे ट्रक से सिलेंडर लाया गया था. दैनिक भास्कर की एक खबर  का अंश- रुस्तमपुर में नहर रोड स्थित अस्पताल में रविवार सुबह 10.30 बजे जब डॉ. कफील के बारे में पूछा गया तो वहां वर्कर्स ने कहा, ''हां, यह डाॅ. कफील खान का है. यहीं से रात में वह सिलेंडर ले गए थे."  
सिलेंडर व उपकरण का निजी इस्तेमाल?
इस संबंध में फिलहाल कोई ठोस प्रमाण नहीं मिल सके हैं.  लेकिन, पुराने जानकर सवाल खड़ा करते हैं कि संकट के समय डॉ को मरीजों की तीमारदारी में लगे रहना चाहिए था. उस वक्त बाहर निकलना संदेह पैदा करता है. कहीं सिलेंडर की गिनती में कमी को पूरा करने की तो यह कवायद नहीं थी?   
सीएम को क्यों नहीं बताया?
9 अगस्त को सीएम योगी के वार्ड नीरिक्षण के दौरान डाॅ काफील ने उन्हें कई मशीनों की जानकारी देते हुए देखे गए थे. लेकिन, आॅक्सीजन आपूर्तीकर्ता कंपनी से भेजे गये पत्र (डाॅ कफील को भी) की जानकारी क्यों नहीं दी?
प्राइवेट प्रैक्टिस करते हैं?
चार फरवरी को आइनेक्स्ट अखबार के द्वारा एक स्टिंग कराया गया. इससे संबंधित 6 फरवरी को प्रकाशित खबर के अनुसार, 4 फरवरी शाम को डाॅ कफील  मेडिस्प्रिंग हाॅस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर (पत्नी का) में मरीज देखते पाए गए. उन्होंने अपने इस नर्सिंग होम का कलेंडर भी बीआरडी के बाल रोग विभाग में टांग रखा था. 
यौन उत्पीड़न का मामला?
सोशल मीडिया में इससे संबंधित आरोप निराधार है. पुलिस आरोपों को असत्य एवं बेबुनियाद बताते हुए क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर चुकी है.
अनाप-शनाप ट्वीट? 
जिस टवीटर एकाउंट का हवाला दिया जा रहा है, उसके तार डाॅ काफील से जोड़ने का फिलहाल कोई ठोस प्रमाण नहीं है.

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