Thursday, August 31, 2017

कांग्रेस के लिए 'बिहार' आगे कुआं पीछे खाई

एक तरफ राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी एकजुटता के लिए कांग्रेस को राजद का साथ जरुरी लगता है. वहीं दूसरी ओर बिहार के कांग्रेसी अधिकतर विधायकों को लालू का साथ पसंद नहीं है. ऐसे में कांग्रेस के लिए आगे कुआं पीछे खाई वाली बात हो गई है. कांग्रेस आलाकमान विपक्षी एकजुटता की बात पर अडिग रहने के मद्देनजर पार्टी विधायक हाथ से फिसल कर जदयू का दामन  थामते नजर आ रहे हैं. पिछले कुछ दिनों की घटनाएं पार्टी में टूट की खबर को पुख्ता करने के लिए काफी हैं. मसलन, सूबे के पार्टी इकाई के सीएलपी नेता सदानंद सिंह को 'भाजपा भगाओ - देश बचाओ' रैली के लिए आमंत्रित नहीं किया गया. वहीं प्रदेश अध्यक्ष अशोक चौधरी को कम तवज्जो देते हुए पीछे की पंक्ति में बैठा दिया गया. इसी तरह राजद और कांग्रेस के सभी पूर्व मंत्रियों (महागठबंधन सरकार ) से उनका बंगला खाली करने का आदेश आ गया, लेकिन अशोक चौधरी का नाम उस फेहरिस्त में शामिल नहीं था. सृजन मामले में आपने शायद ही सूबे के किसी कांग्रेसी नेताओं का बयान सुना होगा.
कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी मुसिबत है कि सीएलपी नेता और प्रदेश अध्यक्ष हाथ छोडने वालों के साथ खड़े हैं. दोनों नेता जदयू अध्यक्ष नीतीश कुमार के संपर्क में बताये जा रहे हैं. आलाकमान को सब पता है. इसलिए तो ज्योतिरादित्य सिंधिया को पटना भेजा गया था. वहीं सदानंद सिंह को दिल्ली बुलाकर वक्त की नजाकत टटोलने की कोशिश की जा रही है. दरअसल पार्टी में चार ऐसे भी विधायक हैं जो पूर्व में जदयू में थे, लेकिन चुनाव में उन्हें कांग्रेस का टिकट दिलवा दिया गया था. पार्टी तोड़ने के लिए 27 मे से 18 विधायकों की जरुरत है.  फिलहाल अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद अशोक चौधरी ने पाला बदलने की खबर को महज कोरी अफवाह बता रहे हैं. महागठबंधन टूटने से पहले भी वह ऐसे ही बयान दिया करते थे. सूत्रों के अनुसार, सोनिया गांधी ने दो टूक में अपना निर्णय बता दिया है कि फिलहाल पार्टी राजद के साथ रहेगी. अब ऐसे में देखने वाली बात होगी इसके बाद विधायक क्या निर्णय लेते हैं. हलाकि इस तथ्य से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि तमाम दावों के बावजूद राष्ट्रपति चुनाव सूबे में क्रास वोटिंग नहीं हुई थी.


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