Friday, August 18, 2017

बहिष्कार नहीं इस्तेमाल करने में ही समझदारी है..

ओ.सी कुरियन 

भारत में चीनी वस्तुओं का बहिष्कार करने की मांग जोर पकड़ती जा रही है. राखी के मौके पर भी इसे लेकर काफी ढोल पिटा गया. भले ही इस तरह की अपीलें चीन निर्मित फोन का ही इस्तेमाल करते हुए सोशल मीडिया पर की जा रही हैं. जिन दवाओं के लिए भारत मशहूर है उन्हें बनाने में इस्तेमाल की जाने वाली थोक दवाओं का एक बड़ा हिस्सा चीन से ही आता है. चीन से थोक दवाओं का आयात वर्ष 2000 में लगभग 23 प्रतिशत का हुआ था, जो फिलहाल 52 प्रतिशत के स्तर पर टिका हुआ है. दिलचस्प बात यह है कि इसके बावजूद आयात के मुकाबले देश कहीं ज्यादा निर्यात करता रहा है. वर्ष 2008 में बीजिंग ओलंपिक के दौरान चीन ने पर्यावरणीय प्रदूषण को नियंत्रण में रखने के लिए कई बल्क ड्रग्स उत्पादन इकाइयों को बंद कर दिया था, जिसके चलते भारत में कीमतें लगभग 20 प्रतिशत बढ़ गई थीं. चीन पर निर्भरता का मुख्य कारण कोई और नहीं, बल्कि लागत संबंधी फायदा ही है. क्योंकि चीनी बल्क ड्रग्स भारतीय उत्पादों की तुलना में लगभग 50 से 60 प्रतिशत सस्ती बैठती हैं. तुलनात्मक रूप से दवा की कीमतें अत्यंत कम रहना ही वह प्रमुख कारक है जिससे भारत स्वास्थ्य क्षेत्र में मामूली सार्वजनिक खर्च के बावजूद अपनी आबादी के स्वास्थ्य की स्थिति में बेहतरी सुनिश्चित करने में समर्थ हो पाया है. इसके अलावा भारत में काफी तेजी से फैल रही सूचना क्रांति और डिजिटल समावेश पहल की बदौलत महज लगभग दो दशकों में ही मोबाइल फोन के आयात में चीन की हिस्सेदारी 8 प्रतिशत से ऊंची छलांग लगाकर 71 प्रतिशत के अत्यंत उच्च स्तर पर पहुंच गई है. क्या इस बारे में कोई शिकायत दर्ज करा रहा है? बेशक चीन के साथ मौजूदा संबंधों में आत्मसंतुष्टि की कोई गुंजाइश नहीं है, लेकिन चीनी वस्तुओं का एक बड़ा बाजार होने के नाते इस नजरिए को भारत द्वारा अपने फायदे के लिए चीन का इस्तेमाल करने में आड़े नहीं आना चाहिए.
साभार - आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन 

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