Thursday, August 24, 2017

200 रुपये के नोट के लिए चार्ल्स साहब को शुक्रिया बोलिए

जितना बटखरा, उतना ही रुपया 
फ्रांस में एक मिलिट्री इंजीनियर हुए, चार्ल्स रेनार्ड. उन्होंने वर्ष 1870 में कुछ ऐसा किया, जिससे आज देश में पहली बार 200 रुपये का नोट प्रचलन में आया है. इसमें कोई विक्रम और बेताल वाली रहस्यमयी कहानियां व अंत में पूछे जाने वाले सवाल जैसा कुछ भी नहीं है. दरअसल, चार्ल्स रेनार्ड ने लघुगणक पैमाने पर आधारित एक नंबर सीरिज प्रणाली प्रस्तावित किया था. आम आदमी के लिए लेनदेन की सहजता, गंदे बैंकनोटों को बदलने, मुद्रास्फीति और नकली नोटों से मुकाबला करने में सहूलियत होगी.
जिसमें सीमित संख्या के इस्तेमाल से वृहद आकार को आसानी से पूरा किया जा सके. वह नंबर सीरिज था, 1-2-5 या 1ः2 या 1ः2ः5. यानी मूल्यवर्ग अपने पहले के मूल्यवर्ग से दो गुना या ढाई गुना ही होना चाहिए. कई देशों के साथ ही अपने देश ने भी रेनार्ड सीरिज को अपनाते हुए समय -समय पर नोट जारी किया.  50 पैसे, 1रुपया ( .50*2  ), 2 (1 *2 ) ,5 (2*2.5 ) ,10 ,20 ,50, 100, 200, 500, 1000...2000 रूपये नंबर सीरिज बनता है. है न संख्या में कम, लेकिन कितना बड़े मूल्यवर्ग को अपने में समेटे है. ठीक उसी प्रकार जैसे किराने की परंपरागत दुकान या फेरीवाला किसी समान को तौलने के लिए 50ग्राम, 100, 200,500 ग्राम, एक केजी, दो केजी, पांच केजी, दस केजी...आदि वाट या बटखारे का इस्तेमाल करता है. इस संख्या प्रणाली के उपयोग से दुकानदार को आसानी होती है.  मसलन, 800 या 900  ग्राम समान तौलने के लिए तीन बटखारे (500, 200 व 100  ग्राम) का इस्तेमाल. इसी तर्ज पर अभी तक 100 व 500 के नोट के बीच 1ः5 यानी काफी ज्यादा फासला था. इसी लापता फासले को दुरुस्त करने के लिए 200 रुपये का  नोट लाया गया है. वहीँ अर्थशास्त्र कहता है, ऐसे फासले महंगाई बढाती है. अभी भी 500 व 2000 नोट के बीच 1ः4 का फासला है. इसलिए ही  2000 रुपये के नोट को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की बात सामने आ रही है. कई जानकारों का सुझाव है कि अगर 1000 रुपये का नोट दोबारा प्रचलन में नहीं लाना है, तो 2000 नोट सिरदर्द पैदा करने वाला ही साबित होगा. इसके अलावा आरबीआई का 200 के नोट लाने के पीछे तर्क है कि इससे

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