बलात्कारी गुरमीत सिंह के खिलाफ विशेष जज जगदीप सिंह के सजा का 9 पन्नों वाले आदेश का संपादित अंश
सीबीआई के तरफ से पेश विशेष अभियोगपक्ष के वकील ने कोर्ट में तथ्य प्रस्तुत किया कि दोषी ने फर्यादियों (पीड़िताओं ) का यौन उत्पीड़न किया, जबकि पीड़िता उसके साथ पिता तुल्य व्यवहार करती थीं. उसे भगवान जैसा पूजती थीं. दोषी ने उन दोनों के भरोसे को तार - तार करते हुए उनका शारीरिक व मानसिक शोषण किया. दोनों फर्यादी डेरा परिसर में दोषी के बंधक थीं. दोषी का कारनामा बंधक बना कर बलात्कार करने से कहीं कम नहीं था. दोषी खुद को भगवान के तौर पर पेश कर अपने पद और अधिकार का बेजा इस्तेमाल कर मासूम युवतियों के साथ बलात्कार किया. यह कोई सामान्य अपराध नहीं, बल्कि रेयरेस्ट आॅफ रेयर मामला है, जिसका संपूर्ण समाज पर घातक प्रभाव पड़ता है. दोषी अधिकतम सजा का हकदार है. दोषी काफी प्रभावशाली व्यक्ति है, इसे अधिकतम सजा दी जाये, ताकि ऐसे दूसरे अपराधियों को भी सबक मिले. अपने पद, प्रभाव, पहुंच, रुतबा व अधिकारों का बेजा इस्तेमाल कर कई बार फर्यादियों को धमकियां दी. वहीं पंजाब सरकार बनाम गुरमीत सिंह (1996), तुलसीदास कानोलकर बनाम गोवा सरकार (2003), निर्भया मामला, धनंजय चटर्जी बनाम पश्चिम बंगाल आदि मामलों का उदाहरण भी प्रस्तुत किया गया.
सीबीआई के तरफ से पेश विशेष अभियोगपक्ष के वकील ने कोर्ट में तथ्य प्रस्तुत किया कि दोषी ने फर्यादियों (पीड़िताओं ) का यौन उत्पीड़न किया, जबकि पीड़िता उसके साथ पिता तुल्य व्यवहार करती थीं. उसे भगवान जैसा पूजती थीं. दोषी ने उन दोनों के भरोसे को तार - तार करते हुए उनका शारीरिक व मानसिक शोषण किया. दोनों फर्यादी डेरा परिसर में दोषी के बंधक थीं. दोषी का कारनामा बंधक बना कर बलात्कार करने से कहीं कम नहीं था. दोषी खुद को भगवान के तौर पर पेश कर अपने पद और अधिकार का बेजा इस्तेमाल कर मासूम युवतियों के साथ बलात्कार किया. यह कोई सामान्य अपराध नहीं, बल्कि रेयरेस्ट आॅफ रेयर मामला है, जिसका संपूर्ण समाज पर घातक प्रभाव पड़ता है. दोषी अधिकतम सजा का हकदार है. दोषी काफी प्रभावशाली व्यक्ति है, इसे अधिकतम सजा दी जाये, ताकि ऐसे दूसरे अपराधियों को भी सबक मिले. अपने पद, प्रभाव, पहुंच, रुतबा व अधिकारों का बेजा इस्तेमाल कर कई बार फर्यादियों को धमकियां दी. वहीं पंजाब सरकार बनाम गुरमीत सिंह (1996), तुलसीदास कानोलकर बनाम गोवा सरकार (2003), निर्भया मामला, धनंजय चटर्जी बनाम पश्चिम बंगाल आदि मामलों का उदाहरण भी प्रस्तुत किया गया.
दूसरी ओर दोषी ने दर्ज
बयान में कहा कि उसकी आयु
50 वर्ष है और वह
हाइपरटेंशन, एक्यूट
डाइबीटिज़ और कमर
के दर्द से पिछले 8 सालों से
ग्रसित है. उसने
सामाजिक कल्याण
के लिए कई काम किये हैं. साथ ही उसने आज अपने इलाज से जुड़े कई
दस्तावेज भी पेश किया.
उसकी एक बजुर्ग मां है, जो आयु
से जुडी कई
बीमारियों से ग्रसित है. कई संस्थान जैसे स्कूल, काॅलेज उसके ट्रस्ट द्वारा चलाये जा रहे हैं. इन
सबका ख्याल रखते हुए कम से कम सजा का
एलान किया जाये. इतना ही नहीं दोषी के वकील ने कहा कि उसका अधिकतर सामाजिक कार्य हरियाणा
राज्य में संचालित हो रहा है, ऐसा तबकि
जब हरियाणा सरकार
ऐसा करने में विफल रही है. दोषी लोगों को
यौनकर्मी से विवाह के लिए जागरुक किया है और नशा मुक्ति का अभियान चलाया.
दोषी के
देखरेख में 133 कल्याण
कार्यक्रम संचालित किये जा रहे हैं.
दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अदालत इस नतीजे पर पहुंची है कि
दोषी ने किये परिणाम जानते
हुए जानबूझकर अपने अनुयायी महिला साध्वियों का यौन उत्पीड़न किया है. ऐसे मे यह व्यक्ति
हमदर्दी का पात्र नहीं हो सकता. फर्यादियों ने दोषी को भगवान का दर्जा दिया, जबकि उसने मासूम भक्तों के
साथ भयानक अत्याचार किया. दोषी के
अनुसार, वह डेरा
सच्चा सौदा व इसके मुख्यालय सिरसा का मुखिया है. डेरा के धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक विरासत को अपनी
करतूतों की वजह से कभी न सही हो पाने वाला नुकसान पहुंचाया है.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा शम सुंदर
बनाम पुरन व अन्य, श्याम नारायण्
बनाम एनसीटी
आॅफ दिल्ली आदि मामलों का उदाहरण दिया गया. राष्ट्रपिता माहत्मा
गांधी के कथन का भी हवाला दिया. ... दोषी ने कोर्ट को बताया है कि डेरा मुख्यालय में उसके
अधिन 7-8 हजार लोग काम करते
हैं. उसने अपने डायरेक्शन व
प्रोडक्शन में बनने
वाली फिल्मों के लिए कई बार इस कोर्ट से विदेश जाने की इजाजत मांगी. फिल्म निर्माण
में करोड़ों रुपये
खर्च किये गये. इससे साबित होता है कि दोषी के पास धन की कोई कमी नहीं है. लिहाजा उसे दोनों
पीड़िताओं को
मुआवजे के तौर पर रकम देने में कोई कमी नहीं है. मामले में तथ्यों के मद्देनजर, यह कोर्ट इस नतीजे पर
पहुंची है कि जब
दोषी खुद के
भक्तों को नहीं छोड़ सकता, उनके साथ जंगली जानवर जैसा
सलूक किया, लिहाजा
वह किसी तरह के दया का पात्र नहीं हो सकता. दोषी गुरमीत राम रहीम सिंह को
फर्यादी-ए (पीड़िता नंबर एक )
के आइपीसी की धारा 376,
506 के तहत बलात्कार का दोषी पाया गया है. फर्यादी-बी के मामले में भी इसी
तरह... फर्यादी- ए को 15 लाख
रुपये का जुर्माना चुकाना होगा साथ ही 10 साल का सश्रम कारावास सजा भुगतना पड़ेगा. जर्माने की रकम नहीं चुकाने
की स्थिति में उसे दो साल
का अतिरिक्त सश्रम कारावास की सजा का अनुपालन करना होगा. इसके बाद दोषी को धरा 506 के तहत अपराध करने के लिए 2 साल का सश्रम कारावास व दस
हजार रुपये फर्यादी - ए को
जुरमाना चुकाने
की सजा मुकरर्र की जाती है. अगर जर्माने की रकम चुकाने में दोषी असमर्थ
होता है, तो ऐसी
स्थिति में उसे अतिरिक्त तीन माह सश्रम कारावास की सजा भुगतना पड़ेगा. 15 लाख में से 14 लाख रुपये फर्यादी- ए को
मुआवजे के तौर पर दिया जाए, जिससे वह
अपना पुनर्वास कर सके. ये दोनों सजा साथ-साथ चलेंगी. ठीक इसी तरह की और इतनी ही
सजा फर्यादी- बी के मामले में भी सुनाई गई. तमाम सजा क्रमानुसार चलेंगी. फर्यादी -
ए के मामले में सजा पूरी होने के बाद फर्यादी -बी के मामले में सजा शुरू होनी
चाहिए. जांच वा ट्रायल के दौरान हिरासत के समय को कारावास के तहत माना जाये.
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