आज मुख्य न्यायाधीश खेहर की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की पीठ ने सर्वसम्मति से अनुच्छेद 21 के तहत निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार वाला फैसला सुनाया. यह फैसला एक पुत्र द्वारा पूर्व में दिए गये अपने पिता के फैसले को पलटने वाला जैसा भी रहा. दरअसल, इस नौ जजों की खंडपीठ में एक जज डीवाइ चंद्रचूड़ भी शामिल रहे. उनके पिता वाइवी चंद्रचूड़ भी सुप्रीम कोर्ट के जज रहते हुए विख्यात एडीएम जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला मामले (1976) में फैसला सुनाने वाली पांच जजों की खंडपीठ में एक जज थे. उस पीठ अन्य सदस्य जज थे तत्कालीन चीफ जस्टिस ए एन राय, जस्टिस एच आर खन्ना, एम एच बेग और पी एन भगवती. इस पीठ का फैसला था कि 27 जून, 1975 को राष्ट्रपति की ओर से जारी आदेश के अनुसार प्रतिबंधात्मक कानून मीसा के तहत हिरासत में लिया गया कोई व्यक्ति संविधान के अनुच्छेद- 226 के अंतर्गत कोई याचिका दाखिल नहीं कर सकता. वर्ष 2011 में एक मामले पर सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति आफताब आलम और न्यायमूर्ति अशोक कुमार गांगुली ने कहा था कि वर्ष 1976 में जबलपुर के एडीएम वी शिवकांत शुक्ला के मामले में उच्चतम न्यायालय की पांच न्यायधीशों की पीठ द्वारा मौलिक अधिकारों का निलंबन बरकरार रखने का फैसला सही नहीं था. इस मामले में न्यायालय के बहुमत के फैसले से देश की जनता के मौलिक अधिकारों का हनन हुआ था. आखिरकार, पिता के मौलिक अधिकारों के हनन वाले फैसले को पुत्र द्वारा पलट ही दिया गया.
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