Wednesday, August 9, 2017

'आलसस्य लब्धमपि रक्षितुं न शक्यते'

साल 1977 की जनता लहर में जब इंदिरा गांधी तक को हार का मुंह देखना पडा था, तब सबसे कम उम्र महज 26 साल के अहमद पटेल भरूच से जीत कर लोक सभा पहुंचने में कामयाब रहे थे. 40 साल बाद वह और उनकी पार्टी उसी जनता पार्टी का हिस्सा रही भारतीय जन संघ अब भारतीय जनता पार्टी से सबसे मुश्किल चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. एक ओर अहमद पटेल कांग्रेस के तो दूसरी ओर मौजूदा दौर में पार्टी अध्यक्ष अमित शाह भाजपा के चाणक्य माने जाते हैं. हाई वोल्टेज ड्रामे के बाद जैसे-तैसे कांग्रेस के चाणक्य अपनी राज्यसभा सीट बचाने में कामयाब रहे. दोनों चाणक्य में और उनके राजा (सोनिया/राहुल गांधी व नरेंद्र मोदी) के बीच चाणक्य सूत्र के आधार पर बड़ा फासला नजर आता है. चाणक्य कह गये, 'आलसस्य लब्धमपि रक्षितुं न शक्यते.' अर्थात आलसी प्राप्त वस्तु की भी रक्षा नहीं कर सकता. 'न आलसस्य रक्षितं विवर्धते.' यानी आलसी के बचाए गए किसी भी वस्तु की बढोतरी नहीं होती. हाल ही में मणिपुर व गोवा में सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरने के बावजूद कांग्रेस सत्ता प्राप्त करने में असफल रही. इसके लिए पार्टी भले ही अपना चेहरा बचाने के लिए भाजपा को कोसे, लेकिन असल कारण मौका गवाने ही है. वहीं बिहार सत्ता परिवर्तन पर राहुल गांधी के  बयान को याद करें, 'तीन-चार महीनों से हमें पता था कि ये प्लानिंग चल रही है.' अब गुजरात की बात करें, सूबे में पार्टी के सिरमौर शंकर सिंह वाघेला लगभग चार महीनों से विद्रोही तेवर अपनाये हुए थे. 2012 विधानसभा चुनाव में जीते 57 पार्टी विधायकों में से बड़ी मशक्कत के बाद महज 42 ही साथ में खड़े हैं. इसके लिए भी कई तरह के पापड़ बेलने पड़े. अब चाणक्य के एक दूसरे सूत्र की कसौटी पर अमित शाह को परखें. 'अलब्धलाभादि चतुष्टयं राज्यतंत्रम् ' अर्थात न प्राप्त होने वाले को प्राप्त करना, उसकी रक्षा करना तथा उसका उचित उपयोग करना, ये चार राजा के लिए आवश्यक हैं. फिलहाल अमित शाह इसी नीति पर काम करते नजर आ रहे हैं. मणिपुर, गोवा व बिहार में सफल होने के बाद गुजरात में भी. अगर, दो विधायकों के मत खारिज नहीं होते (चुनाव आयोग की नजरों में सही ) तो न प्राप्त होने वाला भी प्राप्त हो जाता. उल्लेखनीय है कि जरुरी आंकडे नहीं होने के बावजूद बलवंत सिंह राजपूत को तीसरा उम्मीदवार बनाया गया था. अहमद पटेल की जीत के बाद कांग्रेस की डूबती नैया को थोड़ा मनोवैज्ञानिक सहारा जरुर मिला है. अंत में चाणक्य के दो सूत्र-  'विक्रमध्ना राजानः' यानी राजनीति के ज्ञान से राजा का प्रभाव बढ़ता है. 'उत्साहवतां शत्रवो$पि वशीभवन्ति.' यानी उत्साही राजा अपने शत्रुओं को भी वश में कर लेता है. 

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