Tuesday, August 22, 2017

महिला अधिकारों के लिए सजग प्रहरी रहा है सुप्रीम कोर्ट

सीमा कुमारी 
तीन तलाक़ को असंवैधानिक करार दे कर सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर साबित कर दिया है की वह महिला अधिकारों के लिए सजग प्रहरी के तौर पर खड़ा है. आजादी के बाद से अब तक कई मामलों में सुप्रीम कोर्ट सामाजिक सुधार खास तौर पर महिलाओं से जुड़े मामलों में प्रभावी व प्रमाणिक भूमिका अदा की है. चाहे वह किसी मजहब से जुड़ा मामला हो या लैंगिक आधार पर भेदभाव का. वी तुलसम्मा बनाम वी शेषा रेड्डी मामले में गुजारा भत्ता के लिए हिन्दू महिलाओं का अधिकार को परिभाषित किया. इसी तरह क्रिश्चन महिलाओं को अपने पिता की संपत्ति पर समान अधिकार सुप्रीम कोर्ट के दखल (मेरी रॉय बनाम केरल) के बाद ही संभव हो पाया. इससे पहले एक चैथाई हिस्से पर ही मालिकाना हक का प्रावधान था. शाहबानो ने गुजारा भत्ता पाने के लिए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटया था. अदालत ने शाहबानो को निराश भी नहीं किया. आखिरकार आज का ऐतिहासिक फैसला की नींव इस मामले को भी माना जा सकता है. यह वही सुप्रीम कोर्ट है जो शमीम आरा बनाम यूपी मामले में तलाक को लेकर आदेश पारित किया था. तलाक का उचित कारण होना चाहिए. तलाक से पहले पति और पत्नी के बीच दो मध्यस्थों के बीच सुलह करने की कोशिश होनी चाहिए. दोनों अपने अपने परिवार से एक-एक सदस्य को चुन सकते हैं. सुलह के प्रयास विफल होने के बाद ही तलाक प्रभावी माने जायेंगे. वहीं विशाखा एवं अन्य बनाम राजस्थान एवं अन्य मामले में कार्यस्थल पर महिलाओं के खिलाफ होने वाले यौन शोषण को रोकने संबंधी प्रावधान को भी सुप्रीम कोर्ट ने ही पारित किया. अंतर जातीय विवाह को लेकर लता सिंह बनाम यूपी सरकार मामले में भी कई अहम आदेश दिये. इसके तहत बालिग युवतियों को उसके पसंद के अनुसार शादी करने पर किसी तरह की धमकी या हिंसा पर पुलिस को सख्त निर्देश शामिल हैं. लिव इन रिलेशनशिप, तलाक़ के मामलों में पांच साल से छोटे बच्चे की कस्टडी मां के पास (रोक्साना शर्मा बनाम अरुण शर्मा), सीमा बनाम अश्वनी कुमार के मामले में केंद्र सहित सभी राज्य सरकारों को सभी धर्म के विवाह को पंजीकृत करने का आदेश जैसे कई उदाहरण हमारे सामने है. वहीँ सुप्रीम कोर्ट ने देश भर में एसिड अटैक के पीड़ितों के लिए राहत भरा आदेश देते हुए पीडितों के इलाज और सुविधाओं के लिए कई तरह के प्रावधान जारी किये. राज्य में तेजाब की खुली बिक्री पर रोक जैसे सख्त प्रावधान. महिलाओं को उनके अधिकारों और आगे बढ़ाने वाले अनेकों फैसलों के लिए सुप्रीम कोर्ट को सलाम.
08 फरवरी 2016 को एके सिकरी और अभय मनोहर सप्रे की खंडपीठ ने एक मामले पर फैसला में कहा था, इस दुनिया में और विशेष तौर पर भारत में महिलाएं विभिन्न प्रकार के लैंगिक भेदभाव का सामना करती हैं. यह इस तथ्य के बावजूद है कि भारत के संविधान के अंतर्गत, महिलाओं को पुरुषों के साथ समानता का एक अनूठा दर्जा प्राप्त है. वास्तव में, इस संवैधानिक स्थिति को हासिल करने के लिए अभी उनको एक लंबा रास्ता तय करना बाकी है.

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