Monday, October 9, 2017

मंत्रीजी. किस मुंह से बिहारियों को भगा देने की बात करते हैं?

(3 मिनट में पढ़ें ) 

'बिहार के लोग एक छोटी सी बिमारी होने पर भी दिल्ली एम्स इलाज करवाने पहुंच जाते हैं. जिसकी वजह से एम्स में इतनी भीड़ लग जाती है. एम्स के अधिकारियों को कहा है कि ऐसे लोगों का बिना इलाज किये उन्हें वापस बिहार भेज दें.'-अश्विनी चौबे,  केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री. राज ठाकरे की तरह बोलने से पहले अपने सूबे के स्वास्थ्य का नब्ज तो टटोल लेते. आपको पता होगा. आप भी तो सूबे के स्वास्थ्य मंत्री रह चुके हैं. आंकड़ों और सैकडों उदाहरण से बेहतर है, आपको एक हाल की खबर याद करा दें. बात इसी साल जून महीने की है. पीएमसीएच में ऑपरेशन थियेटर नंबर चार में मरीज को बेहोश किया जा चुका था. लेकिन, ऑपरेशन टेबल का हाइड्रोलिक सिस्टम खराब हो गया. जिससे ऑपरेशन के लिए मरीज को सही स्थिति में रख पाना मुश्किल था. खैर, जैसे तैसे ऑपरेशन किया गया. इसके बाद के दो ऑपरेशन रद्द कर देना पड़ा. अधिकतर ऑपरेशन टेबल पिछले तीन या अधिक सालों से खराब पड़े हैं. वहीं सर्जिकल इंस्ट्रूमेंट 15 सालों से भी पुराने हैं. ऑपरेशन टेबल पर लकड़ी के तख्ते रखकर किसी भी तरह काम चलाया जाता है. कई बार ऑपरेशन के दौरान मरीज के रिश्तेदारों से रेंट पर बाहर से इंस्ट्रूमेंट मंगाया जाता है. देश का औसत प्रति व्यक्ति स्वास्थ्य पर खर्च 724 रुपये है, जबकि बिहार में महज 348 ही है. जहां 81 प्रतिशत कम्यूनिटी हेल्थ सेंटर की कमी हो, सीएचसी में 93 प्रतिशत स्पेशलिस्ट की कमी हो, सूबे में प्रति 9000 लोगों पर एक अस्पताल बेड हो,  91 प्रतिशत सीएचसी और 40 प्रतिशत पीएचसी 40 फीसदी की कमी हो... उस सूबे के होकर भी ऐसे बिगड़े बोल! और हां, कोई शौक से दिल्ली घूमने नहीं जाता मज़बूरी में ही जाता है. कभी फुर्सत मिले तो रात में एम्स के अहाते में टहल लिजिएगा. पता चल जायेगा कौन और कैसे लोग एम्स जाते हैं. अंत में छोटी बीमारी के इलाज के लिए क्या एम्स के दरवाजे बंद हैं? मंत्रीजी लिस्ट जारी करवा दें की अमुक बीमारी होने पर ही बिहारी दिल्ली एम्स आ सकते हैं?  

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