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जेल में कौन रहना चाहता है? जाहिर है कोई नहीं, क्योंकि हरेक को आजादी पसंद है. लेकिन एक ऐसा कैदी है जो जमानत लेने को तैयार नहीं है. क्योंकि प्राचीन हथियारों पर शोध करने एवं पुस्तकें लिखने के लिए उसे जेल से ज्यादा उपयुक्त जगह दूसरी नहीं लगती. जमानत की बात पर वह कहते हैं, जो काम वह कर रहे हैं, उसे करने के लिए जेल जैसी शांति उन्हें बाहर नहीं मिल पाएगी. 50 वर्षीय राकेश धावडे नौ साल पहले 2008 को नासिक के मालेगांव कस्बे में हुए विस्फोटकांड में आरोपी हैं. इसके कुछ दिन बाद ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था. वह तभी से जेल में हैं. इस मामले में अन्य आरोपी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और लेफ्टीनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित सहित अनेक आरोपियों को एक के बाद एक जमानत मिल चुकी है. लेकिन धावडे जमानत लेने को तैयार नहीं हैं. क्योंकि वह जेल में प्राचीन हथियारों पर किताब लिख रहे हैं. जेल में रहते हुए अलग-अलग विषयों पर उन्होंने करीब 15 पुस्तकें लिखी हैं. जमानत के लिए परिजनों के आग्रह करने पर वह कहते हैं कि जो काम वह कर रहे हैं, उसे करने के लिए जेल जैसी शांति उन्हें बाहर नहीं मिल पाएगी. पेशे से वकील उनकी छोटी बहन नीता धाबडे बताती हैं कि स्वभाव से गंभीर प्रकृति के राकेश की प्राचीन हथियारों पर शोध की अभिरुचि वंशानुगत है. उनके पूर्वज छत्रपति शिवाजी महाराज की सेना में हथियार तैयार करने का काम करते थे. उन्हें शिवाजी की तरफ से धावडे-सरपाटिल की उपाधि भी मिली थी. शिक्षा पूरी करने के बाद राकेश ने नौकरी भी पुणे के राजा केलकर दिनकर म्यूजियम में की. लेकिन कुछ वर्ष बाद ही वहां से अलग होकर उन्होंने ‘इंस्टीट्यूट ऑफ रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑफ ओरियंटल आर्म्स एंड आर्मरी’ नामक संस्था बना ली. यह संस्था जगह-जगह बच्चों के लिए प्राचीन हथियारों की प्रदर्शनी लगाती थी. नीता कहती हैं कि लोग तलवार को सिर्फ एक हथियार के रूप में देखते होंगे. लेकिन राकेश उस तलवार को देखकर उसकी बनावट, उसके इतिहास, उसमें प्रयुक्त धातु इत्यादि पर घंटों बोल सकते हैं. 2005 में बनी फिल्म ‘मंगल पांडेः द राइजिंग’ में प्राचीन हथियारों का प्रयोग राकेश की सलाह पर ही किया गया था. राकेश की इसी रुचि के कारण उन्हें सन् 2000 में इंग्लैंड के एक संग्रहालय के निमंत्रण पर दो बार न सिर्फ वहां जाने का मौका मिला, बल्कि वह रॉयल आर्म्स एंड आर्मर सोसायटी के सदस्य बननेवाला पहला भारतीय होने का सम्मान भी हासिल हुआ. कई मामलों में अब वह बरी भी हो चुके हैं. 2003 के परभानी ब्लास्ट मामले में उन्हें बरी किया जा चूका है. नीता कहती हैं कि जेल में रहकर पुस्तकें प्रकाशित करवाने के लिए भी राकेश को जेल में लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी. आखिरकार विशेष जज एस.डी.टेकाले ने न सिर्फ उन्हें पुस्तकें प्रकाशित करवाने की अनुमति दी, बल्कि उनके द्वारा किए जा रहे शोधकार्य की प्रशंसा भी की है. हालांकि आर्थिक तंगी के कारण अभी तक उनकी कोई पुस्तक प्रकाशित नहीं हो सकी है.
जेल में कौन रहना चाहता है? जाहिर है कोई नहीं, क्योंकि हरेक को आजादी पसंद है. लेकिन एक ऐसा कैदी है जो जमानत लेने को तैयार नहीं है. क्योंकि प्राचीन हथियारों पर शोध करने एवं पुस्तकें लिखने के लिए उसे जेल से ज्यादा उपयुक्त जगह दूसरी नहीं लगती. जमानत की बात पर वह कहते हैं, जो काम वह कर रहे हैं, उसे करने के लिए जेल जैसी शांति उन्हें बाहर नहीं मिल पाएगी. 50 वर्षीय राकेश धावडे नौ साल पहले 2008 को नासिक के मालेगांव कस्बे में हुए विस्फोटकांड में आरोपी हैं. इसके कुछ दिन बाद ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था. वह तभी से जेल में हैं. इस मामले में अन्य आरोपी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और लेफ्टीनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित सहित अनेक आरोपियों को एक के बाद एक जमानत मिल चुकी है. लेकिन धावडे जमानत लेने को तैयार नहीं हैं. क्योंकि वह जेल में प्राचीन हथियारों पर किताब लिख रहे हैं. जेल में रहते हुए अलग-अलग विषयों पर उन्होंने करीब 15 पुस्तकें लिखी हैं. जमानत के लिए परिजनों के आग्रह करने पर वह कहते हैं कि जो काम वह कर रहे हैं, उसे करने के लिए जेल जैसी शांति उन्हें बाहर नहीं मिल पाएगी. पेशे से वकील उनकी छोटी बहन नीता धाबडे बताती हैं कि स्वभाव से गंभीर प्रकृति के राकेश की प्राचीन हथियारों पर शोध की अभिरुचि वंशानुगत है. उनके पूर्वज छत्रपति शिवाजी महाराज की सेना में हथियार तैयार करने का काम करते थे. उन्हें शिवाजी की तरफ से धावडे-सरपाटिल की उपाधि भी मिली थी. शिक्षा पूरी करने के बाद राकेश ने नौकरी भी पुणे के राजा केलकर दिनकर म्यूजियम में की. लेकिन कुछ वर्ष बाद ही वहां से अलग होकर उन्होंने ‘इंस्टीट्यूट ऑफ रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑफ ओरियंटल आर्म्स एंड आर्मरी’ नामक संस्था बना ली. यह संस्था जगह-जगह बच्चों के लिए प्राचीन हथियारों की प्रदर्शनी लगाती थी. नीता कहती हैं कि लोग तलवार को सिर्फ एक हथियार के रूप में देखते होंगे. लेकिन राकेश उस तलवार को देखकर उसकी बनावट, उसके इतिहास, उसमें प्रयुक्त धातु इत्यादि पर घंटों बोल सकते हैं. 2005 में बनी फिल्म ‘मंगल पांडेः द राइजिंग’ में प्राचीन हथियारों का प्रयोग राकेश की सलाह पर ही किया गया था. राकेश की इसी रुचि के कारण उन्हें सन् 2000 में इंग्लैंड के एक संग्रहालय के निमंत्रण पर दो बार न सिर्फ वहां जाने का मौका मिला, बल्कि वह रॉयल आर्म्स एंड आर्मर सोसायटी के सदस्य बननेवाला पहला भारतीय होने का सम्मान भी हासिल हुआ. कई मामलों में अब वह बरी भी हो चुके हैं. 2003 के परभानी ब्लास्ट मामले में उन्हें बरी किया जा चूका है. नीता कहती हैं कि जेल में रहकर पुस्तकें प्रकाशित करवाने के लिए भी राकेश को जेल में लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी. आखिरकार विशेष जज एस.डी.टेकाले ने न सिर्फ उन्हें पुस्तकें प्रकाशित करवाने की अनुमति दी, बल्कि उनके द्वारा किए जा रहे शोधकार्य की प्रशंसा भी की है. हालांकि आर्थिक तंगी के कारण अभी तक उनकी कोई पुस्तक प्रकाशित नहीं हो सकी है.
संदर्भ साभार- दैनिक जागरण
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