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छठ की गहरी जड़ें हमारी कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था से जुड़ती हैं. उसके बिंब लोकगीत में देखने हों तो छठ के गीत गुनगुनाए जिसमें 'बांस की बहंगिया' तो है ही 'केरवा के घवद, भी है, 'कांचे ही बांस के बहंगिया बहंगी लचकत जाए'... बांस का सूप, टोकरी, हल्दी के पौधे, चावल, गेहूं, कद्दू, अदरख, नारियल, नींबू, ईंख और न जाने क्या क्या... यह सारी वस्तुएं अपनी शुद्ध प्राकृतिक रूप में ही मान्य है. ना पैकेट वाला आटा चलेगा और ना बाजार पर कब्जा करती कोई डिब्बा बंद वस्तु. छठ एक संक्षिप्त स्वदेशी आंदोलन धर्म है और स्त्री की मंगल कामना का पर्व भी....
छठ की गहरी जड़ें हमारी कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था से जुड़ती हैं. उसके बिंब लोकगीत में देखने हों तो छठ के गीत गुनगुनाए जिसमें 'बांस की बहंगिया' तो है ही 'केरवा के घवद, भी है, 'कांचे ही बांस के बहंगिया बहंगी लचकत जाए'... बांस का सूप, टोकरी, हल्दी के पौधे, चावल, गेहूं, कद्दू, अदरख, नारियल, नींबू, ईंख और न जाने क्या क्या... यह सारी वस्तुएं अपनी शुद्ध प्राकृतिक रूप में ही मान्य है. ना पैकेट वाला आटा चलेगा और ना बाजार पर कब्जा करती कोई डिब्बा बंद वस्तु. छठ एक संक्षिप्त स्वदेशी आंदोलन धर्म है और स्त्री की मंगल कामना का पर्व भी....
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