एक शॉल और पांच रूपये लेकर लौटाया था शास्त्रीजी को
(4 मिनट में पढ़ें )
वर्ष 1905 में माघ मेला के दौरान 14 फरवरी को संक्राति पर्व मनाया जा रहा था. धार्मिक शहर प्रयाग में गंगा किनारे हजारो लोगों का हूजूम डूबकी लगाने जुटा था. लोगों की भीड़ इस कदर कि लोगों को अपने पैरों पर खड़े होने तक के लिए संघर्ष करना पड़ रहा था. इस भीड़ का हिस्सा एक दंपत्ति शारदा प्रसाद और उनकी पत्नी राम दुलारी देवी भी थे. रामदुलारी देवी की गोद में एक चार महीने का दूधमुंहा बच्चा भी था. लोगों के सैलाब के बीच अचानक लगे धक्के के कारण रामदुलारी देवी गिर पड़ीं. बच्चा कहीं दूर जा गिरा. जैसे ही वह जैसे-तैसे खुद को संभाली और उठ खड़ी हुईं. आस-पास जमीन पर अपने नन्हे/बचवा को न देख कर विचलित हो उठीं. रामदुलारी देवी अपने बच्चे को इन्हीं दो नामों से पुचकारती थीं. किसी ने उनके बचवा को तो उठा न ले गया! इस भय से वह व्याकुल हो गईं. दौड़ी - दौड़ी अपने पति के पास पहुंची और रोते हुए बचवा की गुमशुदगी के बारे में बताया. शारदा प्रसाद बचवा की खोज में जुट गये. और मां गंगा किनारे बैठ चित्कार करने लगीं. गंगा में कई नाविक अपने नाव के साथ श्रद्धालुओं को संगम तक ला-ले जा रहे थे. अचानक इन्हीं में से एक ग्वाला नाविक ने अपनी नाव में दूध से भरे हांडा के पीछे रखी टोकरी में कुछ गिरने की आहट सुनी. मुड़ कर देखा तो उसे कपड़े में लिपटा एक बच्चा दिखा. ठंडी बयार के कारण बच्चा असहज होता जा रहा था. ग्वाले ने अपना गर्म कुर्ता उतार बच्चे को अच्छी तरह लपेट दिया. इसके बाद एक कपडे के टुकडे को दूध से भरे हांडा में डूबा कर उसे बच्चे के मुंह में कुछ बूंदे निचोरा. कंठ भीगते ही बच्चा सहज हो गया. इन सब के बीच बिलखते रामदुलारी देवी और शारदा प्रसाद श्रद्धालुओं की सदभावना से घिरे थे. तमाम खोजबीन के बावजूद बचवा नहीं मिला. हारकर पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई गई. पिता का मन नहीं माना और फिर से तलाश में जुट गये. करीब घंटे भर बाद शारदा प्रसाद को एक नाव में उनका बचवा दिख गया. उन्होंने नाव में कूद कर बचवा को उठा लिया. लेकिन ग्वाले ने झटके से बचवा को झटक लिया. भीड जमा हो गई. पुलिस भी आ गई. धमकाने के बावजूद ग्वाला बच्चा देने को तैयार नहीं. मां भी कहां मानने वाली उसने भी मौका मिलते ही अपने बचवा को झटक कर गोद में ले लिया. दंड और लोगों के कडे होते तेवर को भांप कर आखिरकार ग्वाला मान गया. कुर्ता के बदले शॉल और कुछ बूंदे दूध के बदले पांच रुपये ले कर. शारदा प्रसाद ने बचवा को अच्छी तरह संभालने के लिए ग्वाले को धन्यवाद दिया. और मां ने गंगा मैया को. यह नन्हे / बचवा कोई और नहीं बल्कि लाल बहादुर शास्त्री थे.
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वर्ष 1905 में माघ मेला के दौरान 14 फरवरी को संक्राति पर्व मनाया जा रहा था. धार्मिक शहर प्रयाग में गंगा किनारे हजारो लोगों का हूजूम डूबकी लगाने जुटा था. लोगों की भीड़ इस कदर कि लोगों को अपने पैरों पर खड़े होने तक के लिए संघर्ष करना पड़ रहा था. इस भीड़ का हिस्सा एक दंपत्ति शारदा प्रसाद और उनकी पत्नी राम दुलारी देवी भी थे. रामदुलारी देवी की गोद में एक चार महीने का दूधमुंहा बच्चा भी था. लोगों के सैलाब के बीच अचानक लगे धक्के के कारण रामदुलारी देवी गिर पड़ीं. बच्चा कहीं दूर जा गिरा. जैसे ही वह जैसे-तैसे खुद को संभाली और उठ खड़ी हुईं. आस-पास जमीन पर अपने नन्हे/बचवा को न देख कर विचलित हो उठीं. रामदुलारी देवी अपने बच्चे को इन्हीं दो नामों से पुचकारती थीं. किसी ने उनके बचवा को तो उठा न ले गया! इस भय से वह व्याकुल हो गईं. दौड़ी - दौड़ी अपने पति के पास पहुंची और रोते हुए बचवा की गुमशुदगी के बारे में बताया. शारदा प्रसाद बचवा की खोज में जुट गये. और मां गंगा किनारे बैठ चित्कार करने लगीं. गंगा में कई नाविक अपने नाव के साथ श्रद्धालुओं को संगम तक ला-ले जा रहे थे. अचानक इन्हीं में से एक ग्वाला नाविक ने अपनी नाव में दूध से भरे हांडा के पीछे रखी टोकरी में कुछ गिरने की आहट सुनी. मुड़ कर देखा तो उसे कपड़े में लिपटा एक बच्चा दिखा. ठंडी बयार के कारण बच्चा असहज होता जा रहा था. ग्वाले ने अपना गर्म कुर्ता उतार बच्चे को अच्छी तरह लपेट दिया. इसके बाद एक कपडे के टुकडे को दूध से भरे हांडा में डूबा कर उसे बच्चे के मुंह में कुछ बूंदे निचोरा. कंठ भीगते ही बच्चा सहज हो गया. इन सब के बीच बिलखते रामदुलारी देवी और शारदा प्रसाद श्रद्धालुओं की सदभावना से घिरे थे. तमाम खोजबीन के बावजूद बचवा नहीं मिला. हारकर पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई गई. पिता का मन नहीं माना और फिर से तलाश में जुट गये. करीब घंटे भर बाद शारदा प्रसाद को एक नाव में उनका बचवा दिख गया. उन्होंने नाव में कूद कर बचवा को उठा लिया. लेकिन ग्वाले ने झटके से बचवा को झटक लिया. भीड जमा हो गई. पुलिस भी आ गई. धमकाने के बावजूद ग्वाला बच्चा देने को तैयार नहीं. मां भी कहां मानने वाली उसने भी मौका मिलते ही अपने बचवा को झटक कर गोद में ले लिया. दंड और लोगों के कडे होते तेवर को भांप कर आखिरकार ग्वाला मान गया. कुर्ता के बदले शॉल और कुछ बूंदे दूध के बदले पांच रुपये ले कर. शारदा प्रसाद ने बचवा को अच्छी तरह संभालने के लिए ग्वाले को धन्यवाद दिया. और मां ने गंगा मैया को. यह नन्हे / बचवा कोई और नहीं बल्कि लाल बहादुर शास्त्री थे.
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