Wednesday, October 11, 2017

बाप को नहीं, ससुर को तो चुन सकते हैं...

(3 मिनट में पढ़ें )
राम मनोहर लोहिया पुण्य -
'दूसरे देशों में जहां विज्ञान की तरक्की हुई है, वहां पहले वैज्ञानिक, फिर औजार, फिर इमारत रही है. हमारे देश में पहले इमारत, फिर औजार फिर वैज्ञानिक. वैज्ञानिक के दिमाग क्या सोच रहे? उसके दिमाग  में तो सिर्फ कूड़ा भरा है. आजकल जितने वैज्ञानिक हैं, जानते हैं उनकी क्या इच्छा रहती है? अपने बाप को तो वे चुन नहीं सकते, कोई नहीं चुन सकता, लेकिन कम से कम अपने ससुर को तो चुन सकते हैं. अगर ऐसा बढ़िया ससुर चुन लिया जाए, जिसका सरकार पर कुछ असर हो तो फिर विज्ञान की वैसी ही तरक्की हो जाएगी. खोज करने की जरूरत नहीं, सारा मामला वैसे ही ठीक हो जायेगा.'
--यह हिंदुस्तान इतना बेमतलब हो गया है--
'हिन्दुस्तान की आबादी बेहताशा बढ़ती जा रही है, किसी गड्ढे की तरफ या किसी चट्ठान से चकनाचूर होने.  इस गाड़ी को चलाने की जिन पर जिम्मेवारी है, उन्होंने इसे चलाना छोड़ दिया है. गाड़ी अपने आप बढ़ती जा रही है. मैं भी इस गाड़ी में बैठा हूं. यह बेतहाशा बढ़ती जा रही है. इसके बारे में मैं सिर्फ, इतना ही काम कर सकता हूं कि चिल्लाऊं और कहूं कि रोको. यह हिंदुस्तान इतना बेमतलब हो गया है कि तर्क से इसे चलाने के लिए आप तैयार नहीं हैं. यहां विस्फोट होना चाहिए जिस गति से हम लोग अपने प्रधानमंत्री के लिए समाधि स्थल बना रहे हैं, यह शहर जल्द ही जिंदा लाशों के बजाए मुर्दो का शहर बन जायेगा.  राष्ट्र जितना भी गरीब हो, जीवित या मृत सरकारी आदमियों पर उतना ही अधिक खर्च हो. भविष्य की पीढ़ियों को इन मूर्तियों, संग्रहालायों और चबूतरों से बहुत तेजी से हटना पड़ेगा.  समूचा हिन्दुस्तान कीचड़ का तालाब है, जिसमें कहीं-कहीं कमल उग आये हैं, कुछ जगहों पर अय्याशी के आधुनिकतम तरीके के सचिवालय, हवाई अड्डे, होटल, सिनेमाघर और महल बनाए गए हैं और उनका इस्तेमाल उसी तरह के बने-ठने लोग - लुगाई करते हैं. लेकिन कुल आबादी के एक हजारवें हिस्से से भी उसका कोई सरोकार नहीं है. बड़ी राजनीति देश के कूड़े को बुहारती है और छोटी राजनीति मोहल्ले के कूड़े को.'

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