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रहा होगा कभी चित्रकूट राम के वनगमन का पहला पड़ाव, रहे होंगे कभी तुलसीदास भी. लिखा होगा कि चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीड़, तुलसीदास चंदन घिसैं तिलक देत रघुवीर. लेकिन अब जो नाना जी देशमुख चित्रकूट पर विकास, रोजगार और शांति का चंदन लगा गए हैं, ना वह किसी के वश का है नहीं जो उसे मिटा दे. नाना जी देशमुख रहे होंगे कभी जनसंघ या आरएसएस में भी. लेकिन उन्हों ने जेपी मूवमेंट में जब जेपी पर पुलिस की लाठियां चलीं, तो वह नाना जी देशमुख ही थे जिन्हों ने बढ़ कर किसी फ़ौजी की तरह जेपी को कवर किया और सारी लाठियां खुद खाईं, जेपी को एक लाठी नहीं लगने दी. लोग पीठ या पैर पर पुलिस की लाठियां खाते हैं, नाना जी ने जेपी को अपनी पीठ के नीचे लेते हुए सीने पर पुलिस की लाठियां खाई थीं. यह फ़ोटो अखबारों में छपी थी. इंडियन एक्सप्रेस ने इसे पहले पेज पर तब छापा था. सोचिए कि पुलिस की वह लाठी अगर जेपी पर पड़ी होतीं तो क्या हुआ होता जेपी का और क्या हुआ होता देश का? नाना जी जेपी के साथ ही जेल गए. 60 साल की उम्र में नाना जी सक्रिय राजनीति त्याग कर समाज सेवा की ओर मुड़ गए. वह महाराष्ट्र के रहने वाले थे. लेकिन समाज सेवा के लिए उन्हों ने उत्तर प्रदेश चुना. उत्तर प्रदेश में सब से पिछडा ज़िला गोंडा. वहां भी उन्हों ने महात्मा गांधी की तर्ज़ पर जेपी की पत्नी प्रभावती के नाम पर प्रभावती ग्राम ही बनाया. ठीक वैसे ही जैसे गांधी ने दक्षिण अफ़्रीका में टालस्टाय आश्रम या देश में वर्धा या साबरमती आश्रम बनाया था. बल्कि नाना जी ने दो कदम आगे जा कर इस आश्रम को शिक्षा और रोजगार से जोड़ा. लेकिन जल्दी ही वह चित्रकूट चले गए. आज नाना जी देशमुख नहीं हैं पर कोई धृतराष्ट्र जैसा जन्मांध भी जो चित्रकूट चला जाए तो उसे उन का काम साफ दिखेगा, सुनाई देगा. वहां के लोगों खास कर आदिवासियों के बच्चों के लिए प्राइमरी से स्नातकोत्तर तक की शिक्षा, भोजन और चिकित्सा मुफ़्त है. कम से तीन दशक से. इतना ही नहीं वहां के लोगों को रोजगार तक वह सिखाते थे. कि कैसे काम सीख कर खुद का रोजगार वह शुरू कर सकें. तरह तरह के रोजगार. तमाम पिछडे़पन के बावजूद चित्रकूट आज तरक्की की राह पर है. न सिर्फ़ तरक्की बल्कि शांति की राह पर. नहीं तय मानिए कि अगर नाना जी देशमुख चित्रकूट न गए होते तो आज की तारीख में चित्रकूट दंतेवाडा से भी ज़्यादा बड़ा खतरनाक मोड़ पर खड़ा होता. चित्रकूट क्या है पथरीला इलाका है. जहां आज भी खेती भगवान भरोसे होती है. ऐसे में नाना जी देशमुख चित्रकूट पहुंचे थे. और चित्रकूट का नक्शा बदल दिया.
साभार- डी. पांडेय के एक लेख का संपादित अंश
रहा होगा कभी चित्रकूट राम के वनगमन का पहला पड़ाव, रहे होंगे कभी तुलसीदास भी. लिखा होगा कि चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीड़, तुलसीदास चंदन घिसैं तिलक देत रघुवीर. लेकिन अब जो नाना जी देशमुख चित्रकूट पर विकास, रोजगार और शांति का चंदन लगा गए हैं, ना वह किसी के वश का है नहीं जो उसे मिटा दे. नाना जी देशमुख रहे होंगे कभी जनसंघ या आरएसएस में भी. लेकिन उन्हों ने जेपी मूवमेंट में जब जेपी पर पुलिस की लाठियां चलीं, तो वह नाना जी देशमुख ही थे जिन्हों ने बढ़ कर किसी फ़ौजी की तरह जेपी को कवर किया और सारी लाठियां खुद खाईं, जेपी को एक लाठी नहीं लगने दी. लोग पीठ या पैर पर पुलिस की लाठियां खाते हैं, नाना जी ने जेपी को अपनी पीठ के नीचे लेते हुए सीने पर पुलिस की लाठियां खाई थीं. यह फ़ोटो अखबारों में छपी थी. इंडियन एक्सप्रेस ने इसे पहले पेज पर तब छापा था. सोचिए कि पुलिस की वह लाठी अगर जेपी पर पड़ी होतीं तो क्या हुआ होता जेपी का और क्या हुआ होता देश का? नाना जी जेपी के साथ ही जेल गए. 60 साल की उम्र में नाना जी सक्रिय राजनीति त्याग कर समाज सेवा की ओर मुड़ गए. वह महाराष्ट्र के रहने वाले थे. लेकिन समाज सेवा के लिए उन्हों ने उत्तर प्रदेश चुना. उत्तर प्रदेश में सब से पिछडा ज़िला गोंडा. वहां भी उन्हों ने महात्मा गांधी की तर्ज़ पर जेपी की पत्नी प्रभावती के नाम पर प्रभावती ग्राम ही बनाया. ठीक वैसे ही जैसे गांधी ने दक्षिण अफ़्रीका में टालस्टाय आश्रम या देश में वर्धा या साबरमती आश्रम बनाया था. बल्कि नाना जी ने दो कदम आगे जा कर इस आश्रम को शिक्षा और रोजगार से जोड़ा. लेकिन जल्दी ही वह चित्रकूट चले गए. आज नाना जी देशमुख नहीं हैं पर कोई धृतराष्ट्र जैसा जन्मांध भी जो चित्रकूट चला जाए तो उसे उन का काम साफ दिखेगा, सुनाई देगा. वहां के लोगों खास कर आदिवासियों के बच्चों के लिए प्राइमरी से स्नातकोत्तर तक की शिक्षा, भोजन और चिकित्सा मुफ़्त है. कम से तीन दशक से. इतना ही नहीं वहां के लोगों को रोजगार तक वह सिखाते थे. कि कैसे काम सीख कर खुद का रोजगार वह शुरू कर सकें. तरह तरह के रोजगार. तमाम पिछडे़पन के बावजूद चित्रकूट आज तरक्की की राह पर है. न सिर्फ़ तरक्की बल्कि शांति की राह पर. नहीं तय मानिए कि अगर नाना जी देशमुख चित्रकूट न गए होते तो आज की तारीख में चित्रकूट दंतेवाडा से भी ज़्यादा बड़ा खतरनाक मोड़ पर खड़ा होता. चित्रकूट क्या है पथरीला इलाका है. जहां आज भी खेती भगवान भरोसे होती है. ऐसे में नाना जी देशमुख चित्रकूट पहुंचे थे. और चित्रकूट का नक्शा बदल दिया.
साभार- डी. पांडेय के एक लेख का संपादित अंश
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