जैसे- टीचर: स्टूडेंट. डाॅक्टर: आबादी. पुलिस: अवाम
फर्ज कीजिए....एक दिन ऐसा आए कि देश में नेता ज्यादा हो जाए, जनता कम रह जाए. स्थिति यहां तक विकट हो जाए कि हर मोहल्ले में दस में से नौ नेता हो जाएं और सिर्फ एक जनता रह जाये. इससे एक तरफ नेता परेशान, तो दूसरी तरफ जनता. नेताओं को जनता नहीं मिले. सडक पर जनता को आवारा कुत्तों से उतनी परेशानी नहीं हो, जितनी कि नेताओं से. किसी को कतई अंदाजा नहीं रहा कि स्थिति इतनी बिगड जाएगी. नेताओं का विकास जनता के दम पर होता है इसलिए जब जनता नहीं रही तो नेताओं का विकास भी रुक जाएगा. अंतत सरकार को मजबूर होकर खुला लाइसेंस नीति के तहत विदेंशों से जनता का आयात करना पडेगा. तब नेता-जनता संतुलन कुछ संभलेगा और नेताओं का धंधा फिर से चमक उठेगा.
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