Sunday, November 12, 2017

किसान का दम खेतों में घुट रहा है...

(2.5 मिनट में पढ़ें)  
भारत कृषि प्रधान देश है. इसका सबसे बड़ा लाभ यह है कि किसान रैली कोई भी आयोजित करें लगभग हमेशा सफल होती है. चरण सिंह ने जब की थी तब भीड़ हमेशा रही. श्रीमती गांधी ने की तो भीड़ हुई. आजकल भी कई नेता, सामाजिक कार्यकर्त्ता करते हैं तो भी भीड़ होती है. कल से मैं या आप करें तो भी ताजुब नहीं की भीड़ हो जाए. असली समस्या यह है कि किसान का दम खेतों में घुट रहा है. वह कहीं जाना चाहता है. उसके खेत के करीब से बस गुजरती है. सुपरफास्ट रेल निकल जाती है. ऊपर से हवाई जहाज गुजर जाता है. जिन्हें देखो किसान बरसों से एक ही बात सोचता है, यार हम भी मनुष्य हैं इतना भी हमारे भाग्य में नहीं कि दिल्ली तक जा सके. अरे जिसे हम वोट का टुकड़ा डालते हैं वह दिल्ली हो आता है. तो हम खुद नहीं जा सकते? इसलिए जब कोई कार्यकर्ता खेत के पास आकर उस से पूछते हैं, क्यों रे घाटी दिल्ली चलेगा? तो खुशी में किसान की आंखें चमक जाती है फिर वह उन्हें शक की निगाह से देखता है.... कहीं यह देवदूत तो नहीं! और लपककर किसान रैली की बस में चढ़ जाता है....  अधिकतर किसान को यह तो उसे बहुत दूर जाकर पता चलता है की रैली में उसे किसने बुलाया है. मैंने भी एक बार रैली में आए एक किसान से साफ - साफ पूछा, आपके यहां आने से खेती को नुकसान नहीं होगा? वह बोला उसकी चिंता मत कीजिए आज खेती की चिंता करने वाले बहुत हैं....  सरकार का कृषि विभाग है, बीडीओ है, स्टेट बैंक है, बीज निगम है, खाद्य निगम है, कई योजनाएं हैं, विश्व बैंक है, कई संस्थान है, कृषि की यूनिवर्सिटी हैं....  फिर भी उत्पादन कम हुआ तो हम विदेश से अनाज मंगा लेंगे मगर किसान रैली के लिए किसान तो देश से ही जुटेंगे...    

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