Thursday, July 13, 2017

यह भी तो पालिसी - परैलिसिस जैसा ही है...

केंद्र की तत्कालीन यूपीए सरकार के खिलाफ हल्ला-बोल के लिए भाजपा ने एक टर्म 'पालिसी - परैलिसिस' का जमकर इस्तेमाल किया था. डाॅ मनमोहन सिंह सरकार को इसकी कीमत भी चुकानी पड़ी. खैर, मौजूदा मोदी सरकार को फटाफट निर्णय लेने वाले नायक फिल्म सरीखे पेश किया जा रहा है. लेकिन, कई मामलों में अनिर्णय की स्थिति मोदी सरकार को भी 'पालिसी - परैलिसिस' के कटघरे में खड़ा करती है.
देश का बड़ा  भू-भाग बाढ से जूझ रहा है. वैसे भी इस समय प्रलंयकारी बाढ की संभावना तो बनी ही रहती है. भूकंप के हल्के झटके तो आते ही रहते हैं. भगवान न करे अगर बाढ के बीच धरती जोर से कांपी तो...दरअसल, देश में आपदा से निपटने का जिस पर सबसे ज्यादा दारोमदार है, वही खुद आपदाग्रस्त है. राट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण यानी एनडीएमए व राट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान एनआईडीएमए में अतिमहत्वपूर्ण पद खाली पड़े हैं. गत बुधवार को दिल्ली हाईकोर्ट ने गृह मंत्रालय को फटकार लगाते हुए कहा था कि क्यों नहीं आप इन संस्थनों को बंद कर देते हैं, अगर आप खाली पड़े  पदों को भरने की मंशा नहीं रखते. एनडीएमए में वाइस चेयरपर्सन और सचिव के पद खाली पडे हैं. वाइस चेयरपर्सन का पद जुलाई 2014 और सचिव का पद दिसंबर 2015 से ही खाली है. स्थाई कार्यकारी निदेशक तक के पद पर कोई तैनात नहीं है. एनआईडीएमए के आठ एकेडमिक फैकल्टी छोड कर जा चुके हैं. जान कर हैरत में पड जाएंगे कि 2009 से ही कोई नई बहाली नहीं हुई है. लोगों की कमी के कारण कोई ट्रेनिंग प्रोग्राम तक संचालित नहीं हो पा रहा है. गृह मंत्रालय के अधीन आने वाले एनडीएमए के चेयरपर्सन प्रधानमंत्री होते हैं. इसके बाद वाइस चेयरपर्सन. ऐसे में काम - काज संबंधी निर्देश और निर्णय लेने के लिए पीएम और एचएम की प्रतीक्षा करने के सिवाय कोई उपाय नहीं है. यानी सरकार की इस 'पालिसी - परैलिसिस' के कारण देश का आपदा प्रबंधन खुद आपदाग्रस्त है. और लोग राम भरोसे.
       वहीं केंद्रीय मंत्रीमंडल में दो अहम मंत्रालय ढक पेंच से चल रहा है. पहला रक्षा मंत्रालय. मनोहर पार्रिकर के गोवा लौट जाने के बाद यह मंत्रालय वित मंत्री अरुण जेटली के पास अतिरिक्त प्रभार के तौर पर है. इतने महत्वपूर्ण मंत्रालय भला अतिरिक्त प्रभार के चल सकता है? जब दो पडोसी पाकिस्तान व चीन के साथ युदध् सरीखे हालात हों. पर्यावरण, वन एवं जलवायु मंत्रालय राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार के तौर पर हर्षवर्धन देख रेख कर रहे हैं. वर्तमान समय में ऐसे महत्वपूर्ण मंत्रालय को कोई यूंही कैबिनेट मंत्री के बगैर नहीं छोड़ सकता. क्या यह 'पालिसी - परैलिसिस' का उदाहरण नहीं है.
   लोकपाल. इस मामले में शीर्ष अदालती फटकार के बावजूद मोदी सरकार मौन है. लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष न होने का बहाना बनाया जा रहा है. इससे संबंधित संशोधन संसद में लंबित है. न खाएंगे, न खाने देंगे. भ्रष्टाचार पर जीरो टोलरेंस. ऐसे में क्या सरकारी तंत्र के भ्रष्टाचार पर नजर रखने वाली संस्था लोकपाल की नियुक्ति 'पालिसी - परैलिसिस' नहीं है.
उधर कश्मीर जल रहा है. यहां भी कई पहलुओं पर मोदी सरकार अनिर्णय की स्थिति में खड़ी दिख रही है. सीएम महबूबा मुफती अपना हाथ खडा करते हुए बोल चुकी हैं कि अब मोदी पर ही समस्या के हल की आश है. वहीं मोदी सरकार राज्य में कुछ नया व स्थिति को बेहतर बनाने के लिए कोई ठोस उपाय करते नहीं दिख रही है. ऐसे में खुद को सौ मीटर रेस के धावक सरीखे पेश करने वाली मोदी सरकार को भी पाॅलिसी पैरालिसिस का तमगा मिलता नजर आने लगा है. 

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