Thursday, July 6, 2017

नन्ही परी...

नन्ही परी...

वह मेरे  मुस्कुराने की वजह बन गयी थी. अहले सुबह नींद से जागते ही. पिछले एक महीने से सुबह की चाय की चुस्कियों के साथ उसे निहारने का आनंद...शब्दों में कैसे बयां करूं? वह किसी परी से कम नहीं. नन्ही परी. वह अपने घर के अहाते में खिलखिलाती खेलती. और जितनी जल्दी कभी रुठती तो उतनी ही जल्दी मान जाती. वह अपने पिता के साथ कितनी खुश थी. इस दौरान कई बार हम दोनों की नजरें मिली. पहले पहल मैं मुस्कुराता, लेकिन वह ऐसा दर्शाती जैसे मानो उसने मुझे देखा ही ना हो. लेकिन चंद दिनों बाद वह भी देख कर मुस्कुराने लगी. यह सिलसिला महीना दिन चला. उसके बाद मै गर्मी की छुट्टी में बाहर चला गया. लौटा, तो सुबह की वह रौनक गायब थी. सुबह की चाय भी फीकी लगने लगी. उस नन्ही परी का चेहरा उतरा हुआ देख मन कौतूहल से भर उठा. पडोस में रहने वाली आंटी ने कारण बताना शुरू किया. जैसे ही उन्होंने बोला कि उसके पिता सीआरपीएफ कश्मीर में... वैसे ही मेरे मन में आशंकाओं के बादल मंडराने लगे और मुंह से 'ओह' निकल गया. लेकिन अगले ही पल आंटी ने कहा फिक्र की  कोई बात नहीं अरे, उसकी छुट्टियां समाप्त हो गयी थी. 'आह', सकून मिला. अब मैं उस चार साल की नन्ही परी का दोस्त बन गया हूं. सुबह के उस आधे घंटे में वह न जाने कितनी बार अपने पापा को याद करती है. ऐसे नहीं पापा ऐसे खेलते हैं. अरे आप मुझे पापा की तरह नहीं खिलाते. आप बुद्धू हो...अंकल मेरे पापा कब आएंगे...ममा कहती है जल्द आजाएंगे...  
सोचिए, देश में कितनी ऐसी नन्ही परी होंगी, जिनके पिता अब कभी वापस नहीं आयेंगे. वतन की हिफाजत करते हुए शहीद हो गये होंगे. शहीद सैनिकों के अबोध बच्चों पर क्या गुजरता होगा. मन व्यथित हो गया, अब आगे नहीं लिखा जा रहा...माफ किजिएगा 

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