Saturday, July 15, 2017

सब सही है , बस ...

घुमक्कड़ी रिपोर्टिंग के पन्ने (छत्तीसगढ़)

रायपुर से दुर्ग जाने के क्रम में गाड़ी जैसे ही खारून नदी पर बने पुल के पास पहुंची. ड्राइवर ने कहा, साहब पुल पर टोल टैक्स देना हो क्यों न हम बगल के रास्ते से चलें. इससे पैसा भी बचेगा और गांव घूमना भी हो जायेगा. मैंने हामी भर दी.  आश्चर्य तब हुआ जब हाइवे और गांव की सड़क में कोई अंतर ही नहीं दिखा। ड्राइवर से बातचीत शुरू हो गयी. देवेंदर (ड्राइवर) हरियाणा के एक गांव का रहने वाला है. देवेंदर ने बताया कि यहां की गांव की सड़कें बेजोड़ हैं. वह यहां के गांव की तुलना हरियाणा से करते हुए बताता है कि 5 साल से मैं देख रहा हूं. शहरों सहित गांवों की दशा काफी बदल गयी है. गाड़ी सड़क पर फर्राटा भरने लगी. चरंदा, सिरसा, उमदा आदि गांव रास्ते में पड़े. सड़क के दोनो ओर पक्के मकान हैं. लेकिन भीतर की तस्वीर कुछ अलग है. कच्चे घर ज्यादा दिखते हैं. खुर्सीपार गांव में पंडित जवाहर लाल शासकीय उच्च विद्यालय दिखा। उस वक्त स्कूलों में छुट्टी हो चुकी थी. गांव के कुछ किशोर दिखे। पूछने पर पता चला कि वे इसी स्कूल के छात्र हैं. छात्र प्यारे डांगरे ने बताया कि गांव में नया स्कूल भवन बना है. सब कुछ नया है. पढाई - लिखाई भी अच्छी होती है. आगे बढ़ने पर केडिया गांव में स्प्रिंग डेल्स पब्लिक स्कूल दिखता है, जो एक कान्वेंट स्कूल है. एक शिक्षक गोपीचंद जडवानी बताते हैं कि गांवों में अंग्रेजी माध्यम से अपने बच्चों को पढ़वाने का क्रेज बढ़ रहा है. आगे बढ़ने पर ढ़ाबा गांव आया. यहां दिनेश कुमार गेंडरी नाम का युवा मिलता हैं. गांव का हाल पूछने पर दिनेश बताता है कि 24 घंटे बिजली रहती है. खुद के बोरिंग से पानी निकालते हैं. सरपंच ढीला-ढाला है. इसलिए कई योजनाओं का लाभ नहीं मिलता। गांव के सभी के दीवारों पर अंत्योदय खाद्य योजना, मुख्यमंत्री खाद्यान्न योजना, एक रुपया और दो रुपये किलो चावल लिखा मिलता है. पूछने पर एक ग्रामीण अमर दास बताते हैं कि गरीबी रेखा से नीचे वाले लोगों को एक रुपया किलो चावल मिलता है और अन्य को दो रुपया किलो। हां साथ में दो किलो नमक मुफ्त में. मनरेगा के बारे में लक्ष्मण जोशी (ग्रामीण) ने बताया कि एक साल में केवल एक माह ही काम मिला। 100 दिन काम नहीं मिला। मजदूरी भी कम ही मिली। 10-20 रुपये घूस ले लेते हैं. गांव में ही काम मिल जाता है. कहीं जाने की जरूरत नहीं है. गांव में एक आंगनबाड़ी केंद्र है. यहां बसंती यादव आंगनबाड़ी कार्यकर्ता मिलीं। बसंती ने बताया कि यहां सब कुछ सही है. बस किचन नहीं है. लकड़ी पर खाना बनाते हैं. एक ही कमरे के कारण काफी धुआं हो जाता है. बच्चों को भी तकलीफ होती है. 2000 रुपये प्रति माह मिलते हैं. वहीं गांव की एक महिला सुहागा यादव बाइ शिकायत करते कहती हैं कि यहां डॉक्टर नहीं आते. बस महीने में एक बार टीका देने वाले आते हैंण। गर्भवती महिलाओं में खून की कमी आम समस्या है. सरकार को कुछ करना चाहिए। मरमुंदा, खरेघा, भिमोरी, बेरला आदि गांवों की दशा कमोबेश एक जैसी ही है.
छत्तीसगढ़ के पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री अजय चंद्राकर के अनुसारए मनरेगा के माध्यम से प्रदेश में जरूरतमंद परिवारों को लगातार रोजगार उपलब्ध कराया जा रहा है. इससे लोग खुशहाल हो रहे हैं और उन्हें पलायन से भी मुक्ति मिल रही है. इस दावे का पोल खोलते हुए पूर्व पंचायत मंत्री अमितेश शुक्ला बताते हैं कि पिछले दस सालों में बदलाव तो आया है, लेकिन कई खामियां भी उजागर हुई हैं. पंचायतों में ग्राम सभाए होती हैं. लेकिन ग्राम सभाओ को अभी तक अधिकार नहीं दिये गये. अफसरशाही हावी है. वहीं पंचायत विभाग के विशेषज्ञ पीपी सोती कहते हैं कि प्रदेश के गांवों में दस सालोें में सामाजिक रूप से बड़ा बदलाव आया है. सरपंच शब्द अब विलोपित हो गये हैं. अब महिलाएं खुद अपने अधिकारों को लेकर खड़ी हैं. डुमरतराइ गांव की सरपंच शकुंतला जोशी कहती हैं कि राज्य निर्माण के बाद ग्रामीण महिलाएं सशक्त हुइ हैं. सरकार की योजनायें बहुत सीमित हैं. इसलिए पंचायतों को ही ऐसे अधिकार दिए जायें जिससे पंचायत मजबूत हो सके. किसी भी राज्य को आगे आने के लिए शिक्षा और स्वास्थ की दिशा में बेहतर सुधार होने चाहिए। किसी भी गांव के विकास में सरपंच, सचिव, कोटवार से लेकर पंचायत सचिव की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. इसलिए इन चारोें कड़ियों के बीच जुड़ाव आवश्यक है.

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