'बबुआ के आंख से देखलेहनी. अब विश्वास हो गइल. सावन में ही गइलन, आ सावन में अइलन.' तेतरा देवी की यह बोल आठ साल बाद अपने बिछड़े बेटे को गले लगाने के बाद की है. दरअसल, छपरा (बिहार) के जलालपुर के रहने वाले सुरेंद्र महतो की वतन वापसी का सपना साकार हुआ है. मानसिक तौर पर कमजोर सुरेंद्र वर्ष 2009 से पाकिस्तान की जेल में कैद था. इस रिहाई की कहानी काफी दिलचस्प है. दरअसल, पिछले सप्ताह गुजरात के 78 मछुआरों को पाकिस्तानी जेल से रिहा किया जाना था. उसमें 35 वर्षीय करनाला खमन का भी नाम शामिल था. लेकिन बदकिस्मती से वह रिहाई की खुशखबरी को बर्दाश्त नही कर सका. जेल के बदले वह दुनिया से ही आजाद हो गया. दिल का दौरा पड़ा और उसकी मृत्यु हो गयी. खमन के साथ सुरेंद्र भी पाकिस्तान के पंजाब जेल में कैद था. खमन की मौत सुरेंद्र के लिए वरदान साबित हुआ. खमन की जगह सुरेंद्र को रिहा कर पाकिस्तान ने 78 की संख्या पूरी कर दी. वैसे इससे पहले भी सुरेंद्र ने कई घटनाओं का सामना किया है. पिता मनोज महतो के अनुसार, शादी के एक साल बाद पेड से गिर जाने की वजह से उसका मानसिक संतुलन बिगड़ गया था. इस कारण उसकी पत्नी घर छोड़ कर चली गयी थी. पत्नी के चले जाने के बाद वह खुद भी लापता हो गया. कहीं नहीं मिला. थक हार कर भगवान भरोसे बैठ गया था. छपरा टू पाकिस्तान यात्रा वृतांत बताते हुए सुरेंद्र, 'उसके पास एक भी पैसा भी नहीं था. किसी भी गाड़ी में बैठ जाता. भाड़ा नहीं देने के कारण गाड़ी वाले उतार देते थे. कई बार ऐसा हुआ. भटकते - भटकते कब पाकिस्तानी सीमा में चला गया, पता ही नहीं चला. मुझे जासूस समझ कर पहले कुछ दिनों तक टाॅर्चर किया गया. उसके बाद कैद के दौरान घास उखाड़ने, बागवानी और साफ-सफाई का काम कराया जाने लगा. जेल से रिहा होने और वतन वापसी के दौरान भी बदकिस्मती ने सुरेंद्र का साथ नहीं छोड़ा. बकौल सुरेंद्र, पाकिस्तानी जेल की ओर से एक लाल बैग और दस हजार रूपये दिये गये थे. लेकिन, साथ में रिहा हुए मछुआरों ने रास्ते में पैसे चुरा लिया.
#indianprisoninpakistanijail
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