Saturday, July 1, 2017

टोपी न पहनना बेटा......


रोजाना की तरह आज सुबह भी मोबाइल पर कई ईपेपर खंगाल रहा था. लेकिन, निगाह 'द टेलीग्राफ' के पहले पन्ने की लीड स्टोरी पर ऐसी जमी की कुछ लम्हों तक उसी में डूबा रहा. वैसे, 'कैप फाॅर्बिडन बाइ मॉम' शीर्षक वाली यह स्टोरी लगभग आठ सालों से मेरे एक अजीज मित्र फिरोज एल. विंसेंट की है. वैसे, इस स्टोरी का दिल को छू जाने की वजह फिरोज की दमदार लेखनी भी है. कल यानी ईद के दिन फिरोज ने ट्रेन में सवार हो दिल्ली से असावती (हरियाणा के बल्लबगढ का अगला स्टेशन) तक का सफर तय किया. 
यह वही असावती स्टेशन है, जहां पिछले गुरुवार को जुनैद को मार डाला गया था. इस स्टोरी में उसने अपने हमसफर नौ वर्षीय अमजद और उसकी 5 साल की बहन ज़ेबुनीसा का बड़ी बारीकी से हवाला दिया है. स्टोरी के अनुसार, ये दोनों बच्चे अपने पिता व बड़े भाई के साथ बल्लबगढ स्टेशन पर हजरत निजामुद्दीन (के नजदीक किसी जगह), जहां उनकी दादी रहती हैं, ईद मनाने के लिए ट्रेन में सवार हुए. फरिदाबाद में एक पुलिस अधिकारी उस कोच में सवार हुआ (लगा उनका जानने वाला हो), उन्हें ईद की मुबारकबाद दी. उस पुलिस वाले ने अमजद से पूछा कि अम्मा-अब्बू नेे ईद पर क्या गिफ्ट दिया और उसने कुर्ता और टोपी क्यों नहीं पहनी ? पिता के उतरे हुए मुंह के भाव के बीच अमजद ने जवाब दिया, 'मम्मी ने मना किया'. उसकी बहन ज़ेबुनीसा फुसफुसाते हुए बोली, 'मम्मी बोली लोग मारेंगे.' मरहूम जुनैद का घायल भाई (घटना वाले दिन साथ था) ने गवाही दी है, 'हमलावर ने उनकी टोपी फेंक दी थी. उनकी दाढ़ी खींचते हुए हमलावरों ने उन्हें मुसलिम गाय खाने वाले व देशद्रोही कह रहे थे.' मामले में अकेला गिरफतार संदिग्ध राकेश ने स्वीकार किया है कि उस दिन कुछ यात्रियों ने सांप्रदायिक आग उगलने वाली बातें कही थीं.

फिरोज आगे लिखता है, लगभग सौ यात्रियों वाले दो कम्पार्टमेंट में केवल एक ने टोपी और तीन ने कढाईदार कुर्ता पहन रखा था, जिसे ईद से जोड़ कर देखा जा सकता था. ट्रेन में जिंस और शर्ट पहने बच्चों के कुछ समूह दिखे, लेकिन बात करने पर बस इतना ही कह सके कि वे निजामुद्दीन जा रहे है. स्टोरी के अनुसार, असावती स्टेशन के प्लेटफाॅर्म नंबर चार, जहां खून के निशान आज भी देखे जा सकते हैं, वहां खड़े लोग ईद मुबारक कहने पर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. कई सह यात्रियों ने फिरोज को बताया कि पहले की तुलना में इस बार ईद मनाने वाले ट्रेन में काफी कम लोग दिखे. अमूमन, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के गांव वालों का ईद के मौके पर दिल्ली के जामा मस्जिद व निजामुददीन दरगाह सहित दूसरे मस्जिद व दरगाह आने की रिवायत पुरानी है......................The End.
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-मेरी राय में प्रसिद्ध कवि और गीतकार जावेद अख्तर सही फरमाते हैं, "एक आम मुसलमान और एक आम हिन्दू में कोई फर्क नहीं है. एक औसत हिंदू और औसत मुस्लिम की सोच और जीवन के तरीके में कोई विभाजन नहीं है, इनके बीच धार्मिक आधार पर विभाजन को समाज ने थोपा है. एक औसत मुस्लिम सिर्फ एक औसत हिंदू की तरह है. एक औसत मुसलमान कभी भी किसी दूसरे धर्म के अनुयायी को नहीं मारना चाहेगा, ठीक इसी तरह एक औसत हिंदू भी नहीं चाहेगा. आम आदमी सांप्रदायिक सद्भाव में फलता-पनपता है, जबकि साम्प्रदायिक शक्तियां अव्यवस्था में पनपती है. सांप्रदायिक लोग आपको हमेशा एक युद्ध क्षेत्र में रखने की कोशिश करेंगे. वह कैसे अपने शुभचिंतक हो सकता है? "

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