Tuesday, July 25, 2017

'प्रोफसर यशपाल'- विज्ञान में एक दिलचस्प जीवन

'हर एक  छात्र के लिए अलग - अलग पाठ्यक्रम होना चाहिए. अगर, ऐसा हो तो केंद्रीकृत परीक्षा की जरूरत ही नहीं रह जायेगी. हमें हरेक बच्चे को परखना चाहिए, जैसे एक संगीत या डांस गुरु अपने एक - एक शिष्यों को परखते हैं.  या जैसे एक उस्ताद या शिल्पकार अपने प्रशिक्षुओं को प्रशिक्षित करता है'...' प्रोफेसर यशपाल भले ही अलविदा कह गए हों, लेकिन उनके ऐसे अनुकरणीय विचार हमेशा हमारे अंधी शिक्षा वयवस्था के लिए चिराग का काम करेगा.   उनका मानना था की हमें बच्चों के लिए प्रतिस्पर्धात्मक बाधा दौर आयोजित नहीं करनी चाहिए. कोचिंग क्लासेस की भी कोई जरुरत नहीं होनी चाहिए. यह संपूर्ण शिक्षा को बर्बाद कर देगा. जिज्ञासु बच्चों के सवालों का जवाब यह कह कर कि यह पाठयक्रम से बाहर है, देने से मना कर देना अपराध है. सवाल का जवाब मिलने से  बच्चों में ज्ञान के प्रति चस्का पैदा होगा. यही चस्का उनके और देश की बौद्धिक तरक्की का सबसे बड़ा  कारगर राह होगा.  वह अक्सर सवालिए लहजे में कहा करते थे, समझने योग्य जो कुछ है, वह पाठयक्रम से भला बाहर कैसे हो सकता है? यशपाल सदैव बच्चों के जानने की अभिलाषा का सम्मान किया और हरेक कौतुहल का जवाब देने का प्रयास. वह अक्सर कहा करते थे, उनकी आंखें हमेशा विश्व के उन तत्वों व पहलुओं को लेकर खुली रहती है, जिसे लेकर वह अंधा सरीखे हैं. जानने की जरूरत नहीं है, ऐसा कहना ही अंधा बना देना है. बच्‍चे पाठ्यक्रम बनाने वालों से कहीं ज्‍यादा नई जानकारी रखते हैं. मानव देखने, प्रयोग करने और समझने के लिए जन्‍मा है. लेकिन, प्राय: हमारी शिक्षा पद्धति हमारी इस मेधा को कुंठित या  धुंधला कर देती है. मैं यह मानता हूं कि एक दिन हमें पढ़ाने और समझने का ऐसा तरीका अपनाना होगा जो मुख्‍य रूप से बच्‍चों द्वारा खोजे और पूछे गए प्रश्‍नों पर आधारित होगा. प्रोफेसर यशपाल ने अपनी जिंदगी के मिशन को बडे ही सारगर्भित ढंग से बताया था, 'मैं नहीं समझता कि मैंने अपनी जिंदगी में कोई गंभीर वैज्ञानिक कार्य किया है. महान जैसा तो कुुछ नहीं, लेकिन, हां गंभीर दिलचस्पी के साथ विज्ञान को जिया है. जिससे मुझे बौद्धिक आनंद की अनुभूति होती है. कुछ लोग सोचते हैं कि असीम संभावनाओं के बीच मैंने अपना करयिर बर्बाद कर लिया. लेकिन मैं सोचता हूं मेरा लोगों से जुडाव कायम है. अगर मैं स्पेस सेंटर जाता तो मुझे महसूस होता कि मैं इसका एक हिस्सा हूं. अंतरिक्ष उपयोग केंद्र छोडे कई साल गुजर गये. लेकिन आज भी क्यों आइआइटी संस्थानों खासकर छात्रों की ओर से लगातार आमंत्रण आते हैं. स्कलों से क्यों लगातार बुलावे आते हैं. आज मैं जहां खडा हूं. मैं खुद को भाग्यवान समझता हूं. यह जमीन से जुडाव के कारण ही है. कुछ भी नहीं खोया है. उपर ही उठा हूं.' दिवंगत यशपाल लीक से हटकर ऐसा पाठ्यक्रम तैयार कर गये है जिसे अगर पूरे देश में लागू किया जाए तो शिक्षा की तस्‍वीर बदल सकती है. शायद यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजली होगी.
#profyashpal

courtesy - Book Yash Pal A life in science by Biman Basu.


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