Monday, July 31, 2017
Sunday, July 30, 2017
मोदी को चुनौती देने के लिए कांग्रेस को गोंद बनना पड़ेगा
भला रणक्षेत्र में कमजोर की अगुवाई में कौन लड़ना पसंद करेगा?
विपक्ष के पास खोने के लिए ज्यादा कुछ नहीं और पाने के लिए बहुत कुछ
इस समय देश की राजनीति में विपक्ष के पास काफी संभावनाएं हैं. दरअसल, विपक्ष के पास खोने के लिए अब ज्यादा कुछ बचा नहीं है. वहीं सत्ता के केंद्र में बैठी भाजपा के लिए अब पाने को बहुत कुछ बचा भी नहीं है. हां, उसे नवीकरण के लिए हाथ पैर मारते रहना होगा. गिने - चुने राज्य बचे हैं, जो देर सबेर उसकी झोली में जाते दिख रहे हैं. विपक्ष की मौजूदा स्थिति को देखते हुए कहा जा सकता है कि कोई बड़ा चमत्कार ही 2019 में कोई उलटफेर कर सकता है. राजनीतिक हालात इंडिया शाइनिंग से इतर है. अगर, स्थिति यही बनी रही, तो 2024 का भी सपना देखना भूल जायें. इन सब के बावजूद विपक्ष के लिए काफी संभावनाएं मौजूद हैं. 2014 के बाद हुये दिल्ली व बिहार विधानसभा चुनाव इसके उम्दा उदाहरण हैं. बडे अंतर से विपक्ष ने जीत दर्ज की थी. इसके बाद विपक्ष को कमर कस सियासी मैदान में उतर जाना चाहिए था. लेकिन हुआ ठीक उलट. भाजपा मैदान में और विपक्ष गायब. फिलहाल, विपक्ष में सिद्धांत से ज्यादा व्यक्तिवाद हावी है. परिवारवाद हावी है. एजेंडा सैट करने में असफल है. पीछे - पीछे चल कर केवल विरोध की राजनीति तक सीमित है. जनता से सीधे संवाद का घोर अभाव दखिता है. भ्रटाचार के मामले... इन सबसे अलग भाजपा मोदी के इर्द-गिर्द ऐसा जाल बुनने में सफल रही है, जिस चक्रव्यूह को भेदने तो दूर उसे चुनौती देता कोई नहीं दिख रहा. भाजपा में अनुशासन व संगठन तौर पर मजबूती दिखाई देती है. जहां किसी पार्टी में झंडा बैनर तक लगाने वाले कार्यकर्ता नहीं बचे, वहीं भाजपा के कार्यकर्ता हरेक चुनाव में एक - एक मतदाता के पास तीन - तीन बार घंटी बजाते दिख रहे हैं. विपक्ष के केंद्र में कांग्रेस गोवा व मणीपुर में मिले जनादेश को भी बचा पाने में असफल रही. ऐसे में भरोसा हो तो कैसे हो? लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष की भूमिका अहम है. विपक्ष के पास राज्यसभा में आंकड़े हैं, वहां सरकार को जन संवेदी मुद्दों पर घेरा जा सकता है. लेकिन सदन को न चलने देने व हंगामा के अलावा कोई रणनीति ही नहीं दिखती. विपक्ष अवाम का अवाज बनने में असफल हो रहा है. महंगाई में कमी आई क्या? बेरोजगारी कम हो गई क्या? ऐसे में क्या वाकई अच्छे दिन आ गये? मुद्दों का अभाव नहीं है. मुद्दे भी वही उठाये जा रहे हैं, जिनसे कमजोर होने के बजाए मोदी मजबूत हो रहे हैं. बंगाल में ममता, ओडिशा में पटनायक, तमिलनाडू में डीएमके कोई भी कांग्रेस के साथ हरेक मुद्दे पर मजबूती के साथ खड़े नहीं दिखते. क्योंकि वह कमजोर है. साफ है कांग्रेस उन्हें समझाने में नाकाम है. वाम पार्टियां सबसे खराब दौर से गुजर रही हैं. लगता है उनमे कोई नेता ही नहीं बचा. कांग्रेस को गोंद बनना पडेगा. गोंद बनने के लिए मजबूत होना पडेगा. भला रणक्षेत्र में कमजोर की अगुवाई में कौन लड़ना पसंद करेगा?
Friday, July 28, 2017
सात फेरों के एक वचन ऐसा भी...
गुड न्यूज----------
विवाह का मंगल मौका. दिनांक- 22 जुलाई, 2017. विवाह स्थल - क्विंसी रिप्ले, सेलर्स. न्यूयाॅर्क. एमिली लेहैन परिणय जोशुआ न्यूविले. 'मैं चाहती हूं कि तुम सुरक्षित रहो और खूब कोशिश करूंगी कि तुम एक अच्छा इंसान बनो.' यह वचन वधु एमिली दे रही है. वर जोशुआ उसेे गर्व से देख व सुन रहा है. इस दौरान वर का बेटा गेज परिणय सूत्र में बंध रही अपनी सौतेली मां से लिपट जाता है. अपने नन्हे हाथों से लिपटा चार साल का गेज भावुक हो रो रहा है. एमिली गेज को पुचकारते हुए कह रही है, मत रो बेटे. उपस्थित लगभग डेढ सौ मेहमानों के लिए बेहद भावुक पल. सभी हंसकर माहौल को हल्का करने की कोशिश करतें हैं. सभी की निगाहें गेज पर टिकी हैं. इस अंतराल के बाद एमिली आगे का वचन पढ रही है. 'मुझे पता है कि मेरी और तुम्हारी सोच जुदा होगी. लेकिन मुझे तहेदिल से आशा है कि जब तुम बड़े होगे, तब तुम मेरे व्यवहार को समझोगे और एहसास करोगे कि मैंने केवल वहीं किया जो तुम्हारे लिए सबसे अच्छा होता. आइ लव यू. अंत में मुझे आशा है कि समझोगे कि तुम खास लडके हो. तुम बेहद बुद्धिमान, खूबसूरत और दयालु हो. तुमने मुझे वैसी महिला बनने में मदद की है, जैसी आज हूं. और हां भले ही मैंने तुम्हे जीवन का तोहफा ना दिया हो, लेकिन निश्चित तौर पर जीवन ने तुम्हे उपहार स्वरुप मुझे दिया है.' इस भावुक क्षण व अनमोल वचन को कैद करने वाले वीडियो को दुनिया भर में लाखों लोग देख चुके हैं. एमिली और जोशुआ अमेरिकी सेना के अधिकारी हैं. वाकई एक सौतेली मां का अपने सौतेले बेटे के प्रति प्रेम की ऐसी बानगी सुनने-सुनाने लायक है. आप भी देखना पसंद करेंगे यह वीडियो...Wednesday, July 26, 2017
फटाफट राजनीति 20-20 - 'बीपीएल 2017'
बिहार के सियासी मैदान पर बुधवार शाम को दूधिया रौशनी में फटाफट राजनीति ने दर्शकों का खूब मनोरंजन किया. इसे आइपीएल के तर्ज पर बीपीएल की भी संज्ञा दे सकते हैं. बिहार पाॅलिटिकल लीग 20-20. यानी दनादन क्रिकेट की तरह राजनीति का टी - 20. बिल्कुल फटाफट बैटिंग, बॉलिंग, फिल्डिंग के बीच ताबड़तोड़ रनों की बारिश.
गत 7 जुलाई से ही सियासी रणभूमि में बादशाहत के लिए सभी राजनीतिक दलों की टीम के सूरमा शिद्दत से पसीना बहा रहे थे. प्रवक्ताओं की फड़कती बाजुओं और कई पुराने धुरंधरों की जाँबाजी को देखते हुए अनुमान लगाया जा रहा था कि एक जलजला उठेगा. बतौर अंपायर राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी पटना में मौजूद थे. भजपा-जदयू के धुंआधार बैंटिंग के बीच राजद के कप्तान लालू प्रसाद को फिल्डिंग सैट करने का मौका भी नहीं मिल सका. या उनकी धारदार कप्तानी थोडी कुंद सी पडती दिखाई दी. मैदान सियासी हो या खेल का फिटनेस की बडी भूमिका होती है. ऐसे में उनकी उम्र भी आडे आ रही है. इतना ही नहीं पटना में चल रहे इस मैच के बीच ही कप्तान को ही रांची जाना पडा. चारा मामले में रांची की अदालत में हाजिरी लगाने. टाइमिंग. बैटिंग में टाइमिंग की काफी अहमियत होती है. इस दिलचस्प मैच के बीच मीडिया कामेंट्री का सिलसिला जारी रहा. सीएम नीतीश कुमार ने राज्यपाल को इस्तीफा सौंपा. बाहर निकले और पत्रकारों से बातचीत शुरू. इसी बीच पीएम मोदी का ट्वीट. दिल्ली में भाजपा संसदीय बोर्ड व पटना में आला नेताओं की बैठक. राज्यपाल को समर्थन का पत्र सौंपा. सीएम आवास पर एनडीए विधायकों का पहुंचना शुरू. मैच में सब कुछ कोच व पहले से तय लय-ताल के साथ हो, तो हार की गुंजाईश कम ही रह जाती है. वैसे इस दनादन स्वरूप में दोनों टीमों के खिलाड़ी एक दूसरे के मजबूत और कमजोर पक्षों से बखूबी वाकिफ हैं और वे जानते हैं कि 20 - 20का खेल ऐसा है, जिसमें एक साथ ही अपना सब कुछ झोंकना होता है, क्योंकि यहां वापसी करने की कोई गुंजाइश नहीं होती है. पहले भी एक दूसरे के साथ और एक दूसरे के खिलाफ खेल चुके हैं. कोच मोदी-शाह की जोडी और कप्तान नीतीश कुमार की जुगलबंदी का रंग देखते ही बना. विपक्षी टीम के लिए कोई मौका नहीं. वहीं लगता है पगबाधा आउट करने को लेकर राजद - कांग्रेस ने डीआरएस मांगने का वक्त भी गंवा दिया. हालांकि बड़ी देर बाद पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने सरकार बनाने का दावा पेश करने के लिए राज्यपाल से मिलने का समय मांगा है. ऐसे में तीसरे अंपायर यानी अदालत के पास जाने का एक विकल्प भले ही खुला है लेकिन ज्यादा उम्मीद बेमानी ही है. ताबड़तोड़ बैटिंग के पीछे सियासी मैच के जानकारों का भी मानना है कि राजद के सबसे बडे दल होने व जदयू के 15 और 6 विधायकों का राजद खेमे में जाने का खतरा मंडरा रहा था. जीत के बाद नीतीश बतौर कप्तान आज फिर से सीएम पद का शपथ लेंगे. लेकिन, इन तमाम के बावजूद हमें यह याद रखना चाहिए कि फटाफट क्रिकेट में आए दिन कुछ ऐसे रिकार्ड बन व टूट जाते हैं, जिससे लोगों का मुंह खुला का खुला रह जाता है. ऐसे में सियासी मैदान पर भी फटाफट राजनीति में कौन कब नया रिकार्ड बना कर सब को हैरत में डाल दे. कहा नहीं जा सकता.
गत 7 जुलाई से ही सियासी रणभूमि में बादशाहत के लिए सभी राजनीतिक दलों की टीम के सूरमा शिद्दत से पसीना बहा रहे थे. प्रवक्ताओं की फड़कती बाजुओं और कई पुराने धुरंधरों की जाँबाजी को देखते हुए अनुमान लगाया जा रहा था कि एक जलजला उठेगा. बतौर अंपायर राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी पटना में मौजूद थे. भजपा-जदयू के धुंआधार बैंटिंग के बीच राजद के कप्तान लालू प्रसाद को फिल्डिंग सैट करने का मौका भी नहीं मिल सका. या उनकी धारदार कप्तानी थोडी कुंद सी पडती दिखाई दी. मैदान सियासी हो या खेल का फिटनेस की बडी भूमिका होती है. ऐसे में उनकी उम्र भी आडे आ रही है. इतना ही नहीं पटना में चल रहे इस मैच के बीच ही कप्तान को ही रांची जाना पडा. चारा मामले में रांची की अदालत में हाजिरी लगाने. टाइमिंग. बैटिंग में टाइमिंग की काफी अहमियत होती है. इस दिलचस्प मैच के बीच मीडिया कामेंट्री का सिलसिला जारी रहा. सीएम नीतीश कुमार ने राज्यपाल को इस्तीफा सौंपा. बाहर निकले और पत्रकारों से बातचीत शुरू. इसी बीच पीएम मोदी का ट्वीट. दिल्ली में भाजपा संसदीय बोर्ड व पटना में आला नेताओं की बैठक. राज्यपाल को समर्थन का पत्र सौंपा. सीएम आवास पर एनडीए विधायकों का पहुंचना शुरू. मैच में सब कुछ कोच व पहले से तय लय-ताल के साथ हो, तो हार की गुंजाईश कम ही रह जाती है. वैसे इस दनादन स्वरूप में दोनों टीमों के खिलाड़ी एक दूसरे के मजबूत और कमजोर पक्षों से बखूबी वाकिफ हैं और वे जानते हैं कि 20 - 20का खेल ऐसा है, जिसमें एक साथ ही अपना सब कुछ झोंकना होता है, क्योंकि यहां वापसी करने की कोई गुंजाइश नहीं होती है. पहले भी एक दूसरे के साथ और एक दूसरे के खिलाफ खेल चुके हैं. कोच मोदी-शाह की जोडी और कप्तान नीतीश कुमार की जुगलबंदी का रंग देखते ही बना. विपक्षी टीम के लिए कोई मौका नहीं. वहीं लगता है पगबाधा आउट करने को लेकर राजद - कांग्रेस ने डीआरएस मांगने का वक्त भी गंवा दिया. हालांकि बड़ी देर बाद पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने सरकार बनाने का दावा पेश करने के लिए राज्यपाल से मिलने का समय मांगा है. ऐसे में तीसरे अंपायर यानी अदालत के पास जाने का एक विकल्प भले ही खुला है लेकिन ज्यादा उम्मीद बेमानी ही है. ताबड़तोड़ बैटिंग के पीछे सियासी मैच के जानकारों का भी मानना है कि राजद के सबसे बडे दल होने व जदयू के 15 और 6 विधायकों का राजद खेमे में जाने का खतरा मंडरा रहा था. जीत के बाद नीतीश बतौर कप्तान आज फिर से सीएम पद का शपथ लेंगे. लेकिन, इन तमाम के बावजूद हमें यह याद रखना चाहिए कि फटाफट क्रिकेट में आए दिन कुछ ऐसे रिकार्ड बन व टूट जाते हैं, जिससे लोगों का मुंह खुला का खुला रह जाता है. ऐसे में सियासी मैदान पर भी फटाफट राजनीति में कौन कब नया रिकार्ड बना कर सब को हैरत में डाल दे. कहा नहीं जा सकता.
नीतीश कुमार भाजपा के साथ बनाएंगे सरकार !
क्या आप भाजपा के साथ सरकार बनाएंगे? इस सवाल पर नीतीश कुमार ने कहा की आगे देखिए क्या होता है. राज्य के हित के लिए जो अच्छा होगा वह करेंगे. यानी उन्होंने साफ तौर पर इंकार ना करके खुले तौर पर भाजपा के साथ जाने का संकेत दे दिया. इसके बाद पीएम मोदी ने बगैर समय गंवाए हुए ट्वीट करते हुए नीतीश को बधाई भी दे दी. 'देश के, विशेष रूप से बिहार के उज्जवल भविष्य के लिए राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठकर भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ एक होकर लड़ना,आज देश और समय की माँग है. नीतीश द्वारा इस्तीफा देने के बाद जब वह पत्रकारों से बात कर रहे थे तभी पीएम का यह ट्वीट आया. संकेत साफ है पटकथा पहले से ही लिखा जा चूका था. इन सब के बीच राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद के खेमे से खबर है कि जदयू के कुछ विधायक पाला बदलने के लिए तैयार हैं. ऐसे में नीतीश कुमार पर जल्द ही निर्णय लेकर नई सरकार के गठन का दबाव है.
Tuesday, July 25, 2017
'प्रोफसर यशपाल'- विज्ञान में एक दिलचस्प जीवन
'हर एक छात्र के लिए अलग - अलग पाठ्यक्रम होना चाहिए. अगर, ऐसा हो तो केंद्रीकृत परीक्षा की जरूरत ही नहीं रह जायेगी. हमें हरेक बच्चे को परखना चाहिए, जैसे एक संगीत या डांस गुरु अपने एक - एक शिष्यों को परखते हैं. या जैसे एक उस्ताद या शिल्पकार अपने प्रशिक्षुओं को प्रशिक्षित करता है'...' प्रोफेसर यशपाल भले ही अलविदा कह गए हों, लेकिन उनके ऐसे अनुकरणीय विचार हमेशा हमारे अंधी शिक्षा वयवस्था के लिए चिराग का काम करेगा. उनका मानना था की हमें बच्चों के लिए प्रतिस्पर्धात्मक बाधा दौर आयोजित नहीं करनी चाहिए. कोचिंग क्लासेस की भी कोई जरुरत नहीं होनी चाहिए. यह संपूर्ण शिक्षा को बर्बाद कर देगा. जिज्ञासु बच्चों के सवालों का जवाब यह कह कर कि यह पाठयक्रम से बाहर है, देने से मना कर देना अपराध है. सवाल का जवाब मिलने से बच्चों में ज्ञान के प्रति चस्का पैदा होगा. यही चस्का उनके और देश की बौद्धिक तरक्की का सबसे बड़ा कारगर राह होगा. वह अक्सर सवालिए लहजे में कहा करते थे, समझने योग्य जो कुछ है, वह पाठयक्रम से भला बाहर कैसे हो सकता है? यशपाल सदैव बच्चों के जानने की अभिलाषा का सम्मान किया और हरेक कौतुहल का जवाब देने का प्रयास. वह अक्सर कहा करते थे, उनकी आंखें हमेशा विश्व के उन तत्वों व पहलुओं को लेकर खुली रहती है, जिसे लेकर वह अंधा सरीखे हैं. जानने की जरूरत नहीं है, ऐसा कहना ही अंधा बना देना है. बच्चे पाठ्यक्रम बनाने वालों से कहीं ज्यादा नई जानकारी रखते हैं. मानव देखने, प्रयोग करने और समझने के लिए जन्मा है. लेकिन, प्राय: हमारी शिक्षा पद्धति हमारी इस मेधा को कुंठित या धुंधला कर देती है. मैं यह मानता हूं कि एक दिन हमें पढ़ाने और समझने का ऐसा तरीका अपनाना होगा जो मुख्य रूप से बच्चों द्वारा खोजे और पूछे गए प्रश्नों पर आधारित होगा. प्रोफेसर यशपाल ने अपनी जिंदगी के मिशन को बडे ही सारगर्भित ढंग से बताया था, 'मैं नहीं समझता कि मैंने अपनी जिंदगी में कोई गंभीर वैज्ञानिक कार्य किया है. महान जैसा तो कुुछ नहीं, लेकिन, हां गंभीर दिलचस्पी के साथ विज्ञान को जिया है. जिससे मुझे बौद्धिक आनंद की अनुभूति होती है. कुछ लोग सोचते हैं कि असीम संभावनाओं के बीच मैंने अपना करयिर बर्बाद कर लिया. लेकिन मैं सोचता हूं मेरा लोगों से जुडाव कायम है. अगर मैं स्पेस सेंटर जाता तो मुझे महसूस होता कि मैं इसका एक हिस्सा हूं. अंतरिक्ष उपयोग केंद्र छोडे कई साल गुजर गये. लेकिन आज भी क्यों आइआइटी संस्थानों खासकर छात्रों की ओर से लगातार आमंत्रण आते हैं. स्कलों से क्यों लगातार बुलावे आते हैं. आज मैं जहां खडा हूं. मैं खुद को भाग्यवान समझता हूं. यह जमीन से जुडाव के कारण ही है. कुछ भी नहीं खोया है. उपर ही उठा हूं.' दिवंगत यशपाल लीक से हटकर ऐसा पाठ्यक्रम तैयार कर गये है जिसे अगर पूरे देश में लागू किया जाए तो शिक्षा की तस्वीर बदल सकती है. शायद यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजली होगी.
#profyashpal courtesy - Book Yash Pal A life in science by Biman Basu.
Monday, July 24, 2017
थोड़ी ही देर के लिए सही, लेकिन एक ठौर तो देना बनता है...
दूर से वह दूसरे गैस फिलिंग स्टेशन जैसा साधारण दिखता है. लेकिन, जैसे ही नजदीक जाएंगे, तो वह आसाधारण दिखने लगेगा. दरअसल, इस स्टेशन के मालिक बेघर लोगों को बारिश, तेज धूप व हाड कंपकपा देने वाली ठंड से बचने के लिए सहुलियतें प्रदान कर रहे हैं. वह भी 24*7. यह संता फे स्प्रिंग गैस स्टेशन, लाॅस एंजलिस काउंटी में है. अपने एक यात्रा के दौरान इस स्टेशन पर पहुंची पिलर लव ने इस प्रेरणदायक कहानी को साझा किया है. वह लिखती हैं, ‘ मैं सिंक में हाथ धो रही थी, तभी स्टेशन मालिक का आना हुआ. और वह बोले, ओह मैंने सोचा कि कोई बेघर आयी है. इसके बाद मालिक ने बताया कि वह कैसे गरीब बेघरों के लिए सोने, आराम करने, नहाने आदि का निःशुल्क व्यवस्था करते हैं. फ्यूल व गैस स्टेशन के पास जगह और छत काफी बड़ा होता है. ऐसे में इसका उपयोग मानवता सेवा में करने में क्या जाता है.‘ बारिश के मौसम में रात भर जब बारिश होती है, तो बेघरों के हालात का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है. कई लोग जहां अपने घरों, दुकानों के सामने ऐसे लोगों को मिनट भर भी बर्दाश्त नहीं करते. वहीं इस स्टेशन मालिक ने तो अपना दिल ही खोल कर रख दिया है. वाकई, देश में भी बेघरों और सड़कों पर रहने के लिए मजबूर लोगों की कमी नहीं है. महानगरों व बडे - बडे नगरों में ऐसे लोगों के लिए महज खनापूर्ती के तौर पर सरकार या एनजीओ द्वारा रैन बसेरा संचालित किये जा रहे हैं. ठंड के दिनों में न्यूज चैनलों के जरिए हकीकत सामने आती रहती हैं. बारिश व तेज धूप के दौरान तो कोई पूछता तक नहीं है. ऐसे में संता फे स्प्रिंग गैस स्टेशन से प्रेरणा लेकर देश के फ्यूल पंप व गैस फिलिंग स्टेशन के मालिकों को भी बेघरों के लिए सहुलियतें देने के लिए आगे आना चाहिए. थोड़ी ही देर के लिए सही, लेकिन एक ठौर तो देना बनता है...
---courtesy-goodnewsnetwork---
Sunday, July 23, 2017
हार के भी जीत गये हम... उम्मीदें जवां हो गयीं...
उम्मीदें जवां हो गयीं...
21वीं सदी से 17 साल पहले और ठीक 17 साल बाद भारतीय क्रिकेट वैसा ही इतिहास रचने में भले ही कामयाब न रहा हो. लेकिन काफी कुछ हासिल करने में कामयाब भी रहा. 1983 में कपिल देव की अगुवाई में इसी लॉर्ड्स के मैदान पर विश्व कप जीत कर इतिहास रचा था. और आज वुमन इन ब्लू फाइनल तक पहुंची. वाकई निःशब्द. चक दिया. इस साल के शुरुआत में कौन जानता था कि वुमन इन ब्लू विश्व कप खेल भी पायेगी. जिस टीम को विश्व कप में खेलने के लिए क्वालीफाइ टूर्नामेंट खेलना पडा हो. वह टीम न सिर्फ विश्व कप खेली बल्कि फाइनल तक पहुंची. विश्व कप में लगातार दो मैच गंवाने के बाद हर एक मैच से भरोसा बढता गया और उम्मीदें जवां होती गईं. अब यहां से देश में महिला क्रिकेट का एक नये दौर देखने को मिलगा. फाइनल मैच. बेहद रोमांचक. नाखुन कुतरने वाला. भारतीयों के लिए और इंग्लैंड के दर्शकों के लिए भी. कप्तान मिताली राज तो अंत तक अपना पैड तक नहीं उतारा. सांसे थमा देने वाला फाइनल का महा मुकाबला. इंग्लैंड की टीम को बड़े मुकाबले खेलने का अनुभव के आगे हमारे सिर्फ दो ही खिलाडी झूलन और मिताली राज ही टिक सकती थीं. लेकिन जिस तरह से लडकियों ने खेला उसके लिए सभी को बधाई.
क्रिकेट की दुनिया में भगवान का दर्जा पा चुके मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंडुलकर का मानना है कि 22 वर्षों के क्रिकेट करियर में पांच बार विश्वकप में असफलता के बाद मिली सफलता से उन्होंने जाना कि उम्मीद का दामन कभी नहीं छोड़ना चाहिए. सचिन जैसे को भी कई बार विश्व कप सेमीफाइनल व फाइनल में हार का मुंह देखना पड़ा. इसलिए वुमन इन ब्लू से उम्मीदें बढ गईं हैं.
#WWCFinal17हाॅल आॅफ फेम 'झूलन गोस्वामी' !
England- 228/7
#jhulangoswami #worldcupfinale
Saturday, July 22, 2017
मिताली और झुलन के लिए विशेष अवसर
तैयार है वुमेन इन ब्लू
वर्ल्ड कप के खिताबी जीत से वुमेन इन ब्लू महज एक मैच दूर है. अगर टीम ने मन मुताबिक प्रदर्शन किया तो उसके बाद जश्न ... जश्न ... जश्न ... सबसे बड़ी खबर होगी. 2005 वर्ल्ड कप फाइनल में आस्ट्रेलिया के हाथ मिली हार के मलाल को वुमेन इन ब्लू ने डर्बी सेमीफाइनल में उसी को हरा कर हिसाब चुकता कर चुकी है. अब कल लॉर्ड्स के मैदान पर इतिहास रचने का वक्त होगा. खासकर, यह मौका कप्तान मिताली राज और झुलन गोस्वामी के लिए विशेष है. 12 साल बाद फिर से दोनों के पास वर्ल्ड कप फाइनल मैच खेलने का मौका आया है. कप्तान और गोस्वामी के लिए यह आखिरी वर्ल्ड कप है. ऐसे में प्रतिद्वंदी इंग्लैंड के लिए तीसरे वल्र्ड कप जितने की राह असंभव बनाने मे कोई कोर कसर नहीं छोडेंगी. मिताली ने कहा है, 'मेरे और झुलन के लिए विशेष मौका है, क्योंकि हम दोनों ही ऐसे खिलाडी हैं, जो 2005 से लगातार टीम के साथ हैं. यह हमारे लिए 2005 में लौटने जैसा है. हम सभी वर्ल्ड कप फाइनल का हिस्सा बनने पर उत्साहित हैं. हमें मालूम था कि यह टूर्नामेंट हमारे लिए आसान नहीं होगा. लेकिन टीम के हर जरुरत के मौकों पर लडकियां उभर कर सामने आयीं. मैं काफी खुश हूं कि लड़कियों ने हमें दोबारा वर्ल्ड कप फाइनल का हिस्सा बनने का अवसर दिया है. इंग्लैंड के लिए आसान नहीं होगा. आस्ट्रेलिया को हराने के बाद लड़कियों का मनोबल काफी उंचा है. लेकिन काफी कुछ फाइनल में हमारे प्रदर्शन पर निर्भर करता है. मेजबान के साथ उसी के देश में खेलना चुनौती है, लेकिन टीम इसके लिए तैयार है.' इंग्लैंड टीम नाटकिय तौर से दक्षिण अफ्रीको को दो विकेट से हरा कर फाइनल में पहुंची है. यह टीम टूर्नामेंट में केवल एक बार हार का स्वाद चखी है. वह भी डर्बी में वुमेन इन ब्लू के हाथ ही. 35 रनों से. इसके बाद सात लगातार जीत. टीम की कप्तान हेथर नाइट को विश्वाश है कि उसकी टीम और बेहतर प्रदर्शन करेगी. नाइट ने कहा है, हम लगातार जीत की राह तलाश रहे हैं.
Courtesy - www.icc-cricket.com
Friday, July 21, 2017
'क्योंकि हर कोई किसी का कोई है'
गुड न्यूज---- 'मिरकल मैसेज'. एक स्टार्ट अप ऐसा भी हो...
'मां मैं आपको मिस कर रहा हूं. मैं आपसे प्यार करता हूं. आपको देख कर खुशी होगी. दस साल हो गये, आपको देखे हुये.' एक वालंटियर अपने मोबाइल कैमरा से माइकल केली का वीडियो संदेश रिकार्ड कर रही है. इसी तरह पेरी थाॅनले का संदेश, 'मेरे बच्चों मैं आपको कई सालों से खोजने में असफल रहा हूं.' एक के बाद एक ऐसे कई संदेश. ऐसे न जाने कितने संदेश होंगे, जिनका इंतजार सडकों पर लावारिस हालात में भटकते लोगों और उनके परिवारों को होगा.
सैन फ्रांसिस्को की सड़कों पर दर - दर भटकते 15 लोग फिर से अपने परिवार से जुड़ने में कामयाब हो गये. इसके लिए सोशल मीडिया और एक स्वयंसेवी संगठन को धन्यवाद. 'मिरकल मैसेज'. एक स्टार्ट अप. बिछड़े परिवार के लिए एक प्यारा सा संदेश देता छोटा संक्षेप में वीडियो. इसके बाद लाइक, शेयर, काॅमेंट... मिलने - मिलाने का सिलसिला. 30 में से 15 मामलों में सफलता. यानी 50 फीसदी सफलता. वाकई में कमाल. मिरकल मैसेज के संस्थापक और सीइओ केविन एडलर के चाचा भी सिजोफेरनिया के कारण 30 सालों तक अपने परिवार से बिछड़कर लवारिस हालात में भटकते रहे थे. पहले पहल केविन ने यह प्रोजेक्ट प्रायोगिक तौर पर वर्ष 2014 में छुट्टियों के दौरान शुरू की थी. सैन फ्रांसिस्को की सड़कों पर भटकते लोगों को अपने परिवार के लिए संदेश देने के लिए प्रेरित किया. इसके बाद इस काम में लोग वालंटियर के तौर पर भी जुड़ते चले गये. संबंधों में खट्टास, मानसिक बीमारी, शर्मिंदगी, खुद को किसी लायक न समझना, संपर्क सूत्र का न होना, कई अन्य बीमारी, गरीबी, उत्पीड़न, भय आदि कारणों से लोगों के घर से लापता होने के प्रमुख कारण हैं. इसमें सबसे बड़ा कारण सामाजिक सहायता न होना है. अब तो डीजिटल व तकनीक निरक्षरता भी कारण बनता जा रहा है. इन सब के बीच मिरकल मैसेज बेघर लोगों और उनके परिवार के बीच बेहतर सेतु का काम करने लगा है. तो क्या ऐसे में 'मिरकल मैसेज' जैसा स्टार्ट अप योजना अपने देश में शुरू नहीं होना चाहिए?
courtesy-Miraclemassage.org
इसे नहीं देखा तो क्या देखा...
तारीख- 21 फरवरी, 2017. स्थान कोलंबो. आइसीसी महिला वर्ल्ड कप क्वालीफाइयर का फाइनल मैच. इंडिया बनाम दक्षिण अफ्रीका. 244 रनों का लक्ष्य का पीछा करते हुए वूमेन इन ब्लू के 49वें ओवर में 8 विकेट के नुकसान पर 236 रन. बोलर लेट्ज़ेलो. आखिरी 50वें ओवर की पहली गेंद. हरमनप्रीत कौर ने गेंद को डीप मीड विकेट की ओर धकेला. दूसरे रन के लिए भी भाग पड़ी. बोलर छोर पर पुनम यादव रन आउट. अब 5 गेंद पर 8 रन की जरुरत. और हाथ में मात्र एक विकेट. हरमनप्रीत कौर स्ट्राइकर एंड पर. अगली तीन गेंदों पर कोई रन नहीं... आखिरी ओवर का रोमांच चरम पर...अब दो गेंदों पर 8 रनों की जरुरत. पांचवी गेंद... और ओह..... आगे वीडियो देखिए...
#harmanpreetkaur
Thursday, July 20, 2017
म्हारी छोरियां छोरों से कम है के?
दंगल फिल्म में आमीर खान के दो डायलॉग. एक, 'म्हारी छोरियां छोरे से कम है के?' और दूसरा, 'गोल्ड तो गोल्ड होता है...छोरा लावे या छोरी.' वाकई में देश की क्रिकेटर छोरियों ने कमाल कर दिया. वर्ल्ड कप की सबसे मजबूत दावेदार और छह बार की चैंपियन आस्ट्रेलिया को जिस कदर हराया उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता.
हरमनप्रीत कौर 117 बाॅल पर 171 रनों की शानदार पारी. दर्शकों में से एक के कौर की फोटो पर लेडी युवराज सिंह लिखे को कई बार दिखाया गया. वाकई कौर युवराज से भी बेहतर खेली. पैर में खींचाव के बावजूद व अंत तक आस्ट्रेलियाई गेंदबाजों के नको दम करती रही. 98 के व्यक्तिगत स्कोर पर जब कौर रन आउट होने से बाल - बाल बची और इस दौरान उसका दूसरे छोर पर बल्लेबाजी कर रही दीप्ती शर्मा पर झल्लाना. और विकट के उखडने और उसे दोबारा ठीक से लगाने में करीब 15 मीनट का समय लगना. लगा कि कौर की एकाग्रता भंग हो जायेगी. लेकिन काउंटी ग्राउंड पर उसी का दिन था. 20 चौके और 7 छक्के. टीम इंडिया के नये कोच रवि शास्त्री ने टवीट किया, राॅकस्टार हरमनप्रीत. शहवाग ने लाइफटाइम वाली इनिंग करार दिया. 12 जुलाई को ही आस्ट्रलिया से आठ विकेट से करारी हार मिली थी. और 38 मैचों में से 8 में हार के बाद इस जीत की खुशी कई लिहाज से बड़ी है. टीम की सबसे अनुभवी झुलन गोस्वामी ने आस्ट्रेलिया को शुरुआती झटके दिया. लेकिन, दो मौकों पर आस्ट्रेलियाई बल्लेबाज ने सांसे थमा देने वाली भी पारी खेली. एक, एलेस विलानी का 58 गेंदो पर 75 रनों की धमाकेदार पारी. और दूसरा, अंतिम में एलेक्स ब्लैकवेल की 56 गेंदों पर 90 रनों की आतिशी पारी. आखिरकार, म्हारी छोरियों ने 36 रनों से सिकस्त देने में कामयाब रही. अब फाइनल में टीम इंडिया का मुकाबला इंग्लैड से होगा जिसे इसी वल्र्ड कप में हरा चुकी है. इसलिए 23 जुलाई को टीम इंडिया का लॉर्ड्स के मैदान पर मनोबल काफी ऊंचा रहेगा.
हरमनप्रीत कौर 117 बाॅल पर 171 रनों की शानदार पारी. दर्शकों में से एक के कौर की फोटो पर लेडी युवराज सिंह लिखे को कई बार दिखाया गया. वाकई कौर युवराज से भी बेहतर खेली. पैर में खींचाव के बावजूद व अंत तक आस्ट्रेलियाई गेंदबाजों के नको दम करती रही. 98 के व्यक्तिगत स्कोर पर जब कौर रन आउट होने से बाल - बाल बची और इस दौरान उसका दूसरे छोर पर बल्लेबाजी कर रही दीप्ती शर्मा पर झल्लाना. और विकट के उखडने और उसे दोबारा ठीक से लगाने में करीब 15 मीनट का समय लगना. लगा कि कौर की एकाग्रता भंग हो जायेगी. लेकिन काउंटी ग्राउंड पर उसी का दिन था. 20 चौके और 7 छक्के. टीम इंडिया के नये कोच रवि शास्त्री ने टवीट किया, राॅकस्टार हरमनप्रीत. शहवाग ने लाइफटाइम वाली इनिंग करार दिया. 12 जुलाई को ही आस्ट्रलिया से आठ विकेट से करारी हार मिली थी. और 38 मैचों में से 8 में हार के बाद इस जीत की खुशी कई लिहाज से बड़ी है. टीम की सबसे अनुभवी झुलन गोस्वामी ने आस्ट्रेलिया को शुरुआती झटके दिया. लेकिन, दो मौकों पर आस्ट्रेलियाई बल्लेबाज ने सांसे थमा देने वाली भी पारी खेली. एक, एलेस विलानी का 58 गेंदो पर 75 रनों की धमाकेदार पारी. और दूसरा, अंतिम में एलेक्स ब्लैकवेल की 56 गेंदों पर 90 रनों की आतिशी पारी. आखिरकार, म्हारी छोरियों ने 36 रनों से सिकस्त देने में कामयाब रही. अब फाइनल में टीम इंडिया का मुकाबला इंग्लैड से होगा जिसे इसी वल्र्ड कप में हरा चुकी है. इसलिए 23 जुलाई को टीम इंडिया का लॉर्ड्स के मैदान पर मनोबल काफी ऊंचा रहेगा.
#harmanpreetkaur #womencricket
कांग्रेस से बड़ी लकीर नहीं खींच पायी भाजपा
मोदी - शाह की जोड़ी से राष्ट्रपति चुनाव में भी राजनीति की बड़ी लकीर खींचने की उम्मीद लगाई जा रही थी. लेकिन, नतीजे इसकी गवाही देते नहीं दिखते. लोकसभा में प्रचंड बहुमत के साथ ही कई राज्यों में सरकार होने के बावजूद भाजपा राष्ट्रपति चुनाव में रिकार्ड तोड़ प्रदर्शन करने में असफल रही. पिछले चुनाव (2012) में वर्तमान राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को 7 लाख,13 हजार, 763 वोट वैल्यू हासिल हुए थे. जबकि इस चुनाव में सत्ता पक्ष के उम्मीदवार राम नाथ कोविंद को 7 लाख, 2 हजार, 44 वोट वैल्यू हासिल हो सके. यानी प्रणब दा से 11 हजार, 719 कम वोट वैल्यू हासिल हुये. इसी तरह तब विपक्षी एनडीए के उम्मीदवार पीए संगमा को 3 लाख, 15 हजार, 987 वोट वोट वैल्यू हासिल हुए थे. जबकि, इस बार विपक्ष की उम्मीदवार मीरा कुमार को 50 हजार ज्यादा वोट वैल्यू (2012 विपक्षी उम्मीदवार की तुलना में ) 3 लाख, 67 हजार, 314 ज्यादा प्राप्त हुये. यानी आंकड़ों के आधार पर कांग्रेस की रणनीति भाजपा से ज्यादा बेहतर दिखती है. भले हीं कांग्रेस की अगुवाई वाले विपक्ष को हार का मुंह देखना पड़ा हो. कांग्रेस मुखर्जी के लिए 69 फीसदी वोट का जुगाड़ करने में सफल रही थी, जबकि इस बार के विजय उम्मीदवार के खाते में 66 फीसदी वोट ही दर्ज हो सके.
#राष्ट्रपतिचुनाव #कोविंदमीरा #बीजेपीकांग्रेस
#presidentialelection #kovindmeera #bjpcongress
Wednesday, July 19, 2017
किसी की मौत. किसी के लिए वरदान
'बबुआ के आंख से देखलेहनी. अब विश्वास हो गइल. सावन में ही गइलन, आ सावन में अइलन.' तेतरा देवी की यह बोल आठ साल बाद अपने बिछड़े बेटे को गले लगाने के बाद की है. दरअसल, छपरा (बिहार) के जलालपुर के रहने वाले सुरेंद्र महतो की वतन वापसी का सपना साकार हुआ है. मानसिक तौर पर कमजोर सुरेंद्र वर्ष 2009 से पाकिस्तान की जेल में कैद था. इस रिहाई की कहानी काफी दिलचस्प है. दरअसल, पिछले सप्ताह गुजरात के 78 मछुआरों को पाकिस्तानी जेल से रिहा किया जाना था. उसमें 35 वर्षीय करनाला खमन का भी नाम शामिल था. लेकिन बदकिस्मती से वह रिहाई की खुशखबरी को बर्दाश्त नही कर सका. जेल के बदले वह दुनिया से ही आजाद हो गया. दिल का दौरा पड़ा और उसकी मृत्यु हो गयी. खमन के साथ सुरेंद्र भी पाकिस्तान के पंजाब जेल में कैद था. खमन की मौत सुरेंद्र के लिए वरदान साबित हुआ. खमन की जगह सुरेंद्र को रिहा कर पाकिस्तान ने 78 की संख्या पूरी कर दी. वैसे इससे पहले भी सुरेंद्र ने कई घटनाओं का सामना किया है. पिता मनोज महतो के अनुसार, शादी के एक साल बाद पेड से गिर जाने की वजह से उसका मानसिक संतुलन बिगड़ गया था. इस कारण उसकी पत्नी घर छोड़ कर चली गयी थी. पत्नी के चले जाने के बाद वह खुद भी लापता हो गया. कहीं नहीं मिला. थक हार कर भगवान भरोसे बैठ गया था. छपरा टू पाकिस्तान यात्रा वृतांत बताते हुए सुरेंद्र, 'उसके पास एक भी पैसा भी नहीं था. किसी भी गाड़ी में बैठ जाता. भाड़ा नहीं देने के कारण गाड़ी वाले उतार देते थे. कई बार ऐसा हुआ. भटकते - भटकते कब पाकिस्तानी सीमा में चला गया, पता ही नहीं चला. मुझे जासूस समझ कर पहले कुछ दिनों तक टाॅर्चर किया गया. उसके बाद कैद के दौरान घास उखाड़ने, बागवानी और साफ-सफाई का काम कराया जाने लगा. जेल से रिहा होने और वतन वापसी के दौरान भी बदकिस्मती ने सुरेंद्र का साथ नहीं छोड़ा. बकौल सुरेंद्र, पाकिस्तानी जेल की ओर से एक लाल बैग और दस हजार रूपये दिये गये थे. लेकिन, साथ में रिहा हुए मछुआरों ने रास्ते में पैसे चुरा लिया.
#indianprisoninpakistanijailTuesday, July 18, 2017
सौ हाथियों के बल वाली 'दिवाकर रूपा मुद्गिल'
'हमें उस जैसी बहुतों की जरुरत है.' पुड्डुचेरी की राज्यपाल किरण बेदी के इस हौसला अफजाई वाले ट्वीट पर डी रूपा ने आभार जताते हुए लिखा, 'धन्यवाद मेम. आपके द्वारा समर्थन का एक शब्द सौ हाथियों की शक्ति प्राप्त करने जैसा है. राज्यपाल बेदी ने पीएमओ, मंत्री डाॅ जितेंद्र सिंह को टैग करते हुए लिखा है, 'मजबूती से आगे बढो. जहां कहीं भी पोस्टेड की जाये. देश के युवा तुम्हारी तरह बनना चाहेंगे, तुम इसकी प्रेरणास्रोत बनोगी. दरअसल, इन दिनों डी रूपा यानी दिवाकर रूपा मुद्गिल बेंगलुरू सेंट्रल जेल में बंद अन्नाद्रमुक नेता और जयललिता की करीबी रहीं वीके शशिकला के लिए स्पेशल किचन के कथित इंतजाम के लिए अपने बॉस से सार्वजनिक तौर पर उलझने के लिए सुर्खियों में हैं. जैसा हरेक ईमानदार अधिकारी के साथ होता है. इस आईपीएस अधिकारी का भी तबादला कर दिया गया है. रूपा से जेल विभाग के डिप्टी आईजी की जिम्मेदारी लेकर ट्रैफिक और रोड सेफ्टी विभाग में कमिश्नर का चार्ज दे दिया गया है. उनकी दो ट्वीट पर नजर डालें. पहला, 'If egg is broken by outside force, life ends. If broken by inside force, life begins. Great things always begin from inside.' और दूसरा, 'I have keys but no locks. I have space but no room. You can enter but cant go outside. What am i?' इन ट्वीट के जरिए किसी ईमानदार कर्तव्यपरायण अधिकारी की मनोदशा को समझा जा सकता है. पिछले वर्ष ही उन्हें राष्ट्रपति पुलिस मेडल से सम्मानित किया गया. मौजूदा मामला डी रूपा के लिहाज से कोई नया नहीं है. नौकरी के शुरुआती समय में बेंगलुरु की डीसीपी रहते हुए उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री सहित कई रसूखदार राजनीतिज्ञों के लिए जरुरत से ज्यादा तैनात सुरक्षा कर्मी व गाडियों को वापस कर लिया था. वैसे जेल डीआइजी रहते रूपा ने खासकर महिला कैदियों के लिए काफी अच्छा काम किया. तुमकुर जेल में बेकरी से सम्बंधित काम काज की ट्रेनिंग. जो कैदी खुद के बचाव के लिए वकील नहीं रख सकते उनके लिए मुफ्त में कानूनी मदद उपलब्ध करने की पहल की. पहली बार जेल में प्रवेश के समय कैदियों के लिए स्वास्थ्य जांच जैसी सुविधा. ताकि संक्रमण न फैले व गंभीर हाने से पहले बीमारी का इलाज संभव हो सके. देश में यह अनूठा प्रयोग साबित हुआ.
#Droopa
#Droopa
Sunday, July 16, 2017
योगीजी वाह योगीजी...
अपनों पर रहम गैरों पर सितम...
यूपी सचिवालय एनेक्सी भवन. तारीख 22 मार्च, 2017. यूपी के नये नवेले सीएम योगी आदित्यनाथ. वहां उनका पान की पीक देख कर नाराज होना. इसके बाद सरकारी दफ्तरों में पान, पान मसाला व गुटखा खाने पर प्रतिबंध लगा देना. मीडिया में जोरदार वाह - वाही. वहीं गत शनिवार को सुरक्षा दस्ता की टीम यूपी विधानसभा पहुंचीं. चप्पे - चप्पे की तलाशी ली गयी. तलाशी के दौरान माननीयों की करतूत जोकि किसी विस्फोटक से कम नहीं, खुलकर सामने आयी. दरअसल, सदन की तलाशी के दौरान माननीयों के दो टकिया करतूत व योगी की नाफरमानी की पोल खुल गयी. विधायकों की सीट और कुशन के बीच पान मसाले, गुटखा व खैनी की खाली पुड़िया मिली. इतना ही नहीं कई माननीयों के आसन के नीचे पान व गुटखे की पीक भी देखी गयी. इससे साफ जाहिर होता है कि वे सदन की कार्यवाही के दौरान भी इन चीजों का सेवन करते हैं. योगी सरकार द्वारा प्रतिबंध लगाये जाने के बाद विधानसभा भवन के सुरक्षा कर्मियों ने कई मौकों पर सरकारी मुलाजिमों व सफाई कर्मियों से पान मसाले, गुटखा व खैनी की पुडियां जब्त किया है. ऐसे में अब विधानसभा कर्मी दो गाने की रिमिक्स गुना गुना रहे हैं, योगीजी वाह योगीजी... अपनों पर रहम गैरों पर सितम...
वैसे यूपी विधानसभा में विस्फोटक मिलना. राज्य सरकार की सुरक्षा के लिहाज से बडी चूक है. बात दिगर है कि सरकार व अधिकतर मीडिया इसे योगी के खिलाफ आंतकी साजिश से जोड कर ज्यादा पेश कर रही हैं. माननीय सुरक्षा कर्मियों को कितना भाव देते हैं, यह सब चैनलों पर दिख चुका है.
Saturday, July 15, 2017
सब सही है , बस ...
घुमक्कड़ी रिपोर्टिंग के पन्ने (छत्तीसगढ़)
रायपुर से दुर्ग जाने के क्रम में गाड़ी जैसे ही खारून नदी पर बने पुल के पास पहुंची. ड्राइवर ने कहा, साहब पुल पर टोल टैक्स देना हो क्यों न हम बगल के रास्ते से चलें. इससे पैसा भी बचेगा और गांव घूमना भी हो जायेगा. मैंने हामी भर दी. आश्चर्य तब हुआ जब हाइवे और गांव की सड़क में कोई अंतर ही नहीं दिखा। ड्राइवर से बातचीत शुरू हो गयी. देवेंदर (ड्राइवर) हरियाणा के एक गांव का रहने वाला है. देवेंदर ने बताया कि यहां की गांव की सड़कें बेजोड़ हैं. वह यहां के गांव की तुलना हरियाणा से करते हुए बताता है कि 5 साल से मैं देख रहा हूं. शहरों सहित गांवों की दशा काफी बदल गयी है. गाड़ी सड़क पर फर्राटा भरने लगी. चरंदा, सिरसा, उमदा आदि गांव रास्ते में पड़े. सड़क के दोनो ओर पक्के मकान हैं. लेकिन भीतर की तस्वीर कुछ अलग है. कच्चे घर ज्यादा दिखते हैं. खुर्सीपार गांव में पंडित जवाहर लाल शासकीय उच्च विद्यालय दिखा। उस वक्त स्कूलों में छुट्टी हो चुकी थी. गांव के कुछ किशोर दिखे। पूछने पर पता चला कि वे इसी स्कूल के छात्र हैं. छात्र प्यारे डांगरे ने बताया कि गांव में नया स्कूल भवन बना है. सब कुछ नया है. पढाई - लिखाई भी अच्छी होती है. आगे बढ़ने पर केडिया गांव में स्प्रिंग डेल्स पब्लिक स्कूल दिखता है, जो एक कान्वेंट स्कूल है. एक शिक्षक गोपीचंद जडवानी बताते हैं कि गांवों में अंग्रेजी माध्यम से अपने बच्चों को पढ़वाने का क्रेज बढ़ रहा है. आगे बढ़ने पर ढ़ाबा गांव आया. यहां दिनेश कुमार गेंडरी नाम का युवा मिलता हैं. गांव का हाल पूछने पर दिनेश बताता है कि 24 घंटे बिजली रहती है. खुद के बोरिंग से पानी निकालते हैं. सरपंच ढीला-ढाला है. इसलिए कई योजनाओं का लाभ नहीं मिलता। गांव के सभी के दीवारों पर अंत्योदय खाद्य योजना, मुख्यमंत्री खाद्यान्न योजना, एक रुपया और दो रुपये किलो चावल लिखा मिलता है. पूछने पर एक ग्रामीण अमर दास बताते हैं कि गरीबी रेखा से नीचे वाले लोगों को एक रुपया किलो चावल मिलता है और अन्य को दो रुपया किलो। हां साथ में दो किलो नमक मुफ्त में. मनरेगा के बारे में लक्ष्मण जोशी (ग्रामीण) ने बताया कि एक साल में केवल एक माह ही काम मिला। 100 दिन काम नहीं मिला। मजदूरी भी कम ही मिली। 10-20 रुपये घूस ले लेते हैं. गांव में ही काम मिल जाता है. कहीं जाने की जरूरत नहीं है. गांव में एक आंगनबाड़ी केंद्र है. यहां बसंती यादव आंगनबाड़ी कार्यकर्ता मिलीं। बसंती ने बताया कि यहां सब कुछ सही है. बस किचन नहीं है. लकड़ी पर खाना बनाते हैं. एक ही कमरे के कारण काफी धुआं हो जाता है. बच्चों को भी तकलीफ होती है. 2000 रुपये प्रति माह मिलते हैं. वहीं गांव की एक महिला सुहागा यादव बाइ शिकायत करते कहती हैं कि यहां डॉक्टर नहीं आते. बस महीने में एक बार टीका देने वाले आते हैंण। गर्भवती महिलाओं में खून की कमी आम समस्या है. सरकार को कुछ करना चाहिए। मरमुंदा, खरेघा, भिमोरी, बेरला आदि गांवों की दशा कमोबेश एक जैसी ही है.
छत्तीसगढ़ के पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री अजय चंद्राकर के अनुसारए मनरेगा के माध्यम से प्रदेश में जरूरतमंद परिवारों को लगातार रोजगार उपलब्ध कराया जा रहा है. इससे लोग खुशहाल हो रहे हैं और उन्हें पलायन से भी मुक्ति मिल रही है. इस दावे का पोल खोलते हुए पूर्व पंचायत मंत्री अमितेश शुक्ला बताते हैं कि पिछले दस सालों में बदलाव तो आया है, लेकिन कई खामियां भी उजागर हुई हैं. पंचायतों में ग्राम सभाए होती हैं. लेकिन ग्राम सभाओ को अभी तक अधिकार नहीं दिये गये. अफसरशाही हावी है. वहीं पंचायत विभाग के विशेषज्ञ पीपी सोती कहते हैं कि प्रदेश के गांवों में दस सालोें में सामाजिक रूप से बड़ा बदलाव आया है. सरपंच शब्द अब विलोपित हो गये हैं. अब महिलाएं खुद अपने अधिकारों को लेकर खड़ी हैं. डुमरतराइ गांव की सरपंच शकुंतला जोशी कहती हैं कि राज्य निर्माण के बाद ग्रामीण महिलाएं सशक्त हुइ हैं. सरकार की योजनायें बहुत सीमित हैं. इसलिए पंचायतों को ही ऐसे अधिकार दिए जायें जिससे पंचायत मजबूत हो सके. किसी भी राज्य को आगे आने के लिए शिक्षा और स्वास्थ की दिशा में बेहतर सुधार होने चाहिए। किसी भी गांव के विकास में सरपंच, सचिव, कोटवार से लेकर पंचायत सचिव की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. इसलिए इन चारोें कड़ियों के बीच जुड़ाव आवश्यक है.
Friday, July 14, 2017
बिहार सरकार वेंटिलेटर पर
राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद ने जदयू अध्यक्ष व सीएम नीतीश कुमार को तथ्यात्मक जवाब दे दिया है. जवाब मीडिया के जरिए आया. यानी दोनों के रिश्ते में खट्टास इस कदर बढ़ गई है कि बातें मीडिया के जरिए होने लगी. संकेत साफ है. लालू प्रसाद ने दो टूक जवाब देते हुए कहा कि डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव इस्तीफा नहीं देंगे. आरोपों पर कोई तथ्यात्मक जवाब भी नहीं दिया जायेगा. सारा कुछ पहले से ही सार्वजनिक है. जवाब उचित प्लेटफार्म पर यानी सीबीआई व अदालत के सामने ही दिया जायेगा. इतना ही नहीं उन्होंने साफ लहजे में कह दिया कि जिसे जो निर्णय लेना है, वह ले लें. हां, महागठबंधन तोडने की पहल वह नहीं करेंगे. ऐसे में अब निगाहें नीतीश कुमार पर टिक गई है कि वह डिप्टी सीएम का बर्खास्त करने संबंधी सिफारिश राज्यपाल को कब भेजते हैं. उधर बीच का रास्ता निकालने की कांग्रेस की कवायद भी धरी की धरी रह गयी. पूरे प्रकरण पर जदयू का स्टेंड पहले से ही जगजाहिर है. ऐसे में सूबे की मौजूदा सरकार को अब कोई चमत्कार ही बचा सकता है.
Thursday, July 13, 2017
यह भी तो पालिसी - परैलिसिस जैसा ही है...
केंद्र की तत्कालीन यूपीए सरकार के खिलाफ हल्ला-बोल के लिए भाजपा ने एक टर्म 'पालिसी - परैलिसिस' का जमकर इस्तेमाल किया था. डाॅ मनमोहन सिंह सरकार को इसकी कीमत भी चुकानी पड़ी. खैर, मौजूदा मोदी सरकार को फटाफट निर्णय लेने वाले नायक फिल्म सरीखे पेश किया जा रहा है. लेकिन, कई मामलों में अनिर्णय की स्थिति मोदी सरकार को भी 'पालिसी - परैलिसिस' के कटघरे में खड़ा करती है.
देश का बड़ा भू-भाग बाढ से जूझ रहा है. वैसे भी इस समय प्रलंयकारी बाढ की संभावना तो बनी ही रहती है. भूकंप के हल्के झटके तो आते ही रहते हैं. भगवान न करे अगर बाढ के बीच धरती जोर से कांपी तो...दरअसल, देश में आपदा से निपटने का जिस पर सबसे ज्यादा दारोमदार है, वही खुद आपदाग्रस्त है. राट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण यानी एनडीएमए व राट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान एनआईडीएमए में अतिमहत्वपूर्ण पद खाली पड़े हैं. गत बुधवार को दिल्ली हाईकोर्ट ने गृह मंत्रालय को फटकार लगाते हुए कहा था कि क्यों नहीं आप इन संस्थनों को बंद कर देते हैं, अगर आप खाली पड़े पदों को भरने की मंशा नहीं रखते. एनडीएमए में वाइस चेयरपर्सन और सचिव के पद खाली पडे हैं. वाइस चेयरपर्सन का पद जुलाई 2014 और सचिव का पद दिसंबर 2015 से ही खाली है. स्थाई कार्यकारी निदेशक तक के पद पर कोई तैनात नहीं है. एनआईडीएमए के आठ एकेडमिक फैकल्टी छोड कर जा चुके हैं. जान कर हैरत में पड जाएंगे कि 2009 से ही कोई नई बहाली नहीं हुई है. लोगों की कमी के कारण कोई ट्रेनिंग प्रोग्राम तक संचालित नहीं हो पा रहा है. गृह मंत्रालय के अधीन आने वाले एनडीएमए के चेयरपर्सन प्रधानमंत्री होते हैं. इसके बाद वाइस चेयरपर्सन. ऐसे में काम - काज संबंधी निर्देश और निर्णय लेने के लिए पीएम और एचएम की प्रतीक्षा करने के सिवाय कोई उपाय नहीं है. यानी सरकार की इस 'पालिसी - परैलिसिस' के कारण देश का आपदा प्रबंधन खुद आपदाग्रस्त है. और लोग राम भरोसे.
वहीं केंद्रीय मंत्रीमंडल में दो अहम मंत्रालय ढक पेंच से चल रहा है. पहला रक्षा मंत्रालय. मनोहर पार्रिकर के गोवा लौट जाने के बाद यह मंत्रालय वित मंत्री अरुण जेटली के पास अतिरिक्त प्रभार के तौर पर है. इतने महत्वपूर्ण मंत्रालय भला अतिरिक्त प्रभार के चल सकता है? जब दो पडोसी पाकिस्तान व चीन के साथ युदध् सरीखे हालात हों. पर्यावरण, वन एवं जलवायु मंत्रालय राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार के तौर पर हर्षवर्धन देख रेख कर रहे हैं. वर्तमान समय में ऐसे महत्वपूर्ण मंत्रालय को कोई यूंही कैबिनेट मंत्री के बगैर नहीं छोड़ सकता. क्या यह 'पालिसी - परैलिसिस' का उदाहरण नहीं है.
लोकपाल. इस मामले में शीर्ष अदालती फटकार के बावजूद मोदी सरकार मौन है. लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष न होने का बहाना बनाया जा रहा है. इससे संबंधित संशोधन संसद में लंबित है. न खाएंगे, न खाने देंगे. भ्रष्टाचार पर जीरो टोलरेंस. ऐसे में क्या सरकारी तंत्र के भ्रष्टाचार पर नजर रखने वाली संस्था लोकपाल की नियुक्ति 'पालिसी - परैलिसिस' नहीं है.
उधर कश्मीर जल रहा है. यहां भी कई पहलुओं पर मोदी सरकार अनिर्णय की स्थिति में खड़ी दिख रही है. सीएम महबूबा मुफती अपना हाथ खडा करते हुए बोल चुकी हैं कि अब मोदी पर ही समस्या के हल की आश है. वहीं मोदी सरकार राज्य में कुछ नया व स्थिति को बेहतर बनाने के लिए कोई ठोस उपाय करते नहीं दिख रही है. ऐसे में खुद को सौ मीटर रेस के धावक सरीखे पेश करने वाली मोदी सरकार को भी पाॅलिसी पैरालिसिस का तमगा मिलता नजर आने लगा है.
देश का बड़ा भू-भाग बाढ से जूझ रहा है. वैसे भी इस समय प्रलंयकारी बाढ की संभावना तो बनी ही रहती है. भूकंप के हल्के झटके तो आते ही रहते हैं. भगवान न करे अगर बाढ के बीच धरती जोर से कांपी तो...दरअसल, देश में आपदा से निपटने का जिस पर सबसे ज्यादा दारोमदार है, वही खुद आपदाग्रस्त है. राट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण यानी एनडीएमए व राट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान एनआईडीएमए में अतिमहत्वपूर्ण पद खाली पड़े हैं. गत बुधवार को दिल्ली हाईकोर्ट ने गृह मंत्रालय को फटकार लगाते हुए कहा था कि क्यों नहीं आप इन संस्थनों को बंद कर देते हैं, अगर आप खाली पड़े पदों को भरने की मंशा नहीं रखते. एनडीएमए में वाइस चेयरपर्सन और सचिव के पद खाली पडे हैं. वाइस चेयरपर्सन का पद जुलाई 2014 और सचिव का पद दिसंबर 2015 से ही खाली है. स्थाई कार्यकारी निदेशक तक के पद पर कोई तैनात नहीं है. एनआईडीएमए के आठ एकेडमिक फैकल्टी छोड कर जा चुके हैं. जान कर हैरत में पड जाएंगे कि 2009 से ही कोई नई बहाली नहीं हुई है. लोगों की कमी के कारण कोई ट्रेनिंग प्रोग्राम तक संचालित नहीं हो पा रहा है. गृह मंत्रालय के अधीन आने वाले एनडीएमए के चेयरपर्सन प्रधानमंत्री होते हैं. इसके बाद वाइस चेयरपर्सन. ऐसे में काम - काज संबंधी निर्देश और निर्णय लेने के लिए पीएम और एचएम की प्रतीक्षा करने के सिवाय कोई उपाय नहीं है. यानी सरकार की इस 'पालिसी - परैलिसिस' के कारण देश का आपदा प्रबंधन खुद आपदाग्रस्त है. और लोग राम भरोसे.
वहीं केंद्रीय मंत्रीमंडल में दो अहम मंत्रालय ढक पेंच से चल रहा है. पहला रक्षा मंत्रालय. मनोहर पार्रिकर के गोवा लौट जाने के बाद यह मंत्रालय वित मंत्री अरुण जेटली के पास अतिरिक्त प्रभार के तौर पर है. इतने महत्वपूर्ण मंत्रालय भला अतिरिक्त प्रभार के चल सकता है? जब दो पडोसी पाकिस्तान व चीन के साथ युदध् सरीखे हालात हों. पर्यावरण, वन एवं जलवायु मंत्रालय राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार के तौर पर हर्षवर्धन देख रेख कर रहे हैं. वर्तमान समय में ऐसे महत्वपूर्ण मंत्रालय को कोई यूंही कैबिनेट मंत्री के बगैर नहीं छोड़ सकता. क्या यह 'पालिसी - परैलिसिस' का उदाहरण नहीं है.
लोकपाल. इस मामले में शीर्ष अदालती फटकार के बावजूद मोदी सरकार मौन है. लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष न होने का बहाना बनाया जा रहा है. इससे संबंधित संशोधन संसद में लंबित है. न खाएंगे, न खाने देंगे. भ्रष्टाचार पर जीरो टोलरेंस. ऐसे में क्या सरकारी तंत्र के भ्रष्टाचार पर नजर रखने वाली संस्था लोकपाल की नियुक्ति 'पालिसी - परैलिसिस' नहीं है.
उधर कश्मीर जल रहा है. यहां भी कई पहलुओं पर मोदी सरकार अनिर्णय की स्थिति में खड़ी दिख रही है. सीएम महबूबा मुफती अपना हाथ खडा करते हुए बोल चुकी हैं कि अब मोदी पर ही समस्या के हल की आश है. वहीं मोदी सरकार राज्य में कुछ नया व स्थिति को बेहतर बनाने के लिए कोई ठोस उपाय करते नहीं दिख रही है. ऐसे में खुद को सौ मीटर रेस के धावक सरीखे पेश करने वाली मोदी सरकार को भी पाॅलिसी पैरालिसिस का तमगा मिलता नजर आने लगा है.
सुशासन बाबू तथ्यात्मक जवाब तो आपसे भी चाहिए...
मिस्टर क्लीन क्या आपने कुर्सी की खातिर कई मौकों पर भ्रष्टाचार से समझौता नहीं किया ?
1. 7 जुलाई को ही सीबीआई ने लालू और उनके परिवार के आवास पर छापा मारा. लेकिन अगले चार दिन यानी 11 जुलाई तक न ही आप और ना ही आपकी पार्टी का कोई नेता ने मामले पर प्रतिक्रिया दी. आप तो अब तक चुप हैं.
2. आपने साल 2013 में एनडीए का साथ छोडा. उसी साल अदालत द्वारा को चारा घोटाले में दोषी ठहराये जाने के बावजूद लालू प्रसाद से गले मिले.
3. अगस्त 2008 में आपके ही पार्टी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव और कद्दावर नेता राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने पीएम को 600 पन्नों का दस्तावेज देते हुए लालू के रेल मंत्री रहते हुए भूमि सौदों की जांच कराने की मांग की थी. क्या आप इससे अनजान थे?
4. पिछले लोकसभा में कांग्रेस की हार का एक बड़ा कारण भ्रष्टाचार के कई गंभीर आरोप रहे. इसके बावजूद आपने कांग्रेस के साथ महागठबंधन किया.
5. अनंत सिंह उर्फ छोटे सरकार और सुनील पांडे जैसों के खिलाफ जघन्य अपराध के मामले लंबित होने के बावजूद उन जैसों को लगातार पार्टी का उम्मीदवार बनाया
#nitishcorruption
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पीटने आ रहे और 531
बुधवार को बिहार कैबिनेट की बैठक के बाद पत्रकारों के बदसलूकी की यह तस्वीर सामने आई. उसी बैठक में प्रथम प्रस्ताव के तहत मुख्यमंत्री व पूर्व मुख्यमंत्रियों को सुरक्षा देने वाले विशेष सुरक्षा दल यानी एसएसजी में 531 अतिरिक्त बहाली को स्वीकृति प्रदान की गयी. वहीं एक चिकित्सा पदाधिकारी को भ्रष्ट आचारण के लिए सेवा से बर्खास्त करने को हरी झंडी दी गयी... और कुछ लिखने की जरुरत है, क्या?
जस्ट प्ले, हेव फन
जदयू ने तेजस्वी से कहा, आरोपों का तथ्यात्मक जवाब दें. तेजस्वी ने भांजे को बैटिंग के गुर सिखाते हुए वीडियो व कुछ तस्वीरों के साथ ट्विट किया, ' जस्ट प्ले, हेव फन. खेल का आनंद लें, क्योंकि खेल चरित्र नहीं गढता, बल्कि इसे प्रदर्शित करता है.'
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महापुरुषों की कुछ कथनी पर गौर फरमाएं. जस्ट रीड, हेव फन...
*'राजनीति कोई खेल नहीं है.ये सबसे गंभीर व्यवसाय है.'- विंस्टन चर्चिल
*'निर्णयों को तब तक स्थगित करते जाना जब तक कि प्रासंगिकता ही खो दें, राजनीति है.' -हेनरी कुयूइल्ले
*'राजनीति में होना, एक फुटबाॅल टीम में कोच होने जैसा है. आप इतने बुद्धिमान हों कि खेल को समझ सकें और इतने मूर्ख कि ये सोच पायें कि खेल महत्वपूर्ण है'.- यूजीने मेककेर्थी
#tejaswicricket
Monday, July 10, 2017
तेजस्वी इस्तीफा देंगे या बर्खास्त होंगे
# बात अब सरकार गिरने - गिराने तक पहुंच आयी है.
बात अब बिहार सरकार गिरने - गिराने तक आ पहुंची है. राजद ने साफ कर दिया है कि डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव इस्तीफा नहीं देंगे. ऐसे में गेंद अब सुशासन बाबू यानी सीएम नीतीश कुमार के पाले में डाल दिया गया है. तीन दिन के स्वास्थ लाभ प्रवास के बाद नीतीश कुमार रविवार को राजगीर से लौट आये. रविवार को ही राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने नीतीश को फोन किया. बातचीत नीतीश के वायरल बुखार तक ही सीमित रही. हालाकि लालू ने हालिया घटनाक्रम को लेकर मौनी बाबा के मन को टटोलने के लिए फोन किया था. जदयू के एक बडे नेता के अनुसार, नीतीश कुमार हर हाल में तेजस्वी का इस्तीफा चाहते हैं. चाहे इसके बदले लालू अपने बड़े बेटे तेज प्रताप या किसी अन्य को तेजस्वी के विभाग दिलवा दें. लेकिन लालू के आज के रुख से साफ हो गया है कि वह तेजस्वी का इस्तीफा नहीं दिलवाएंगे. हलाकि यह दबाव की भी एक रणनीति है. ऐसे में बात सरकार गिरने-गिराने तक आ पहुंची है. सूत्रों के अनुसार, कल यानी मंगलवार को नीतीश कुमार अपनी चुप्पी तोडेंगे. संभावना यह भी है कि वह पहले औपचारिक तौर पर तेजस्वी को इस्तीफा देने के लिए कहें. अगर नहीं माना गया तो वह राज्यपाल से तेजस्वी को बर्खास्त करने की सिफारिश कर दें. इस मुद्दे पर नीतीश कुमार अपनी सरकार की तिलांजली देने तक को तैयार हैं. सरकार का गिरना या बने रहना अब राजद पर निर्भर करता है. अगर सरकार गिरती है तो लालू प्रसाद की मुश्किलें बहुत बढ जायेगी. यही एक कारण है कि राजद तेजस्वी के इस्तीफा को लेकर मान जाये. और अब यही एक रास्ता जिससे सरकार बच सकती है.#tejaswiresignation
Sunday, July 9, 2017
अलविदा चार्जर, बैटरी। स्वागत बैटरी फ्री मोबाइल
अब मोबाइल चार्जर और बैटरी को अलवीदा कहने का समय आ गया है. और कभी न खत्म होने वाली बैटरी का स्वागत करने की बारी आ गई है. वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के रिसचर्स बैटरी फ्री मोबाइल बनाने में कामयाबी हासिल कर ली है. फोन को आसपास के प्रकाश और रेडियो सिंग्नल से मिलने वाले कुछ माइक्रोवाटस से पाॅवर मिलता है. बात करने के दौरान माइक्रोफोन या स्पीकर में होने वाले कंपन से ही अपने लिए पॉवर प्राप्त करने में सक्षम है. एनालाॅग साउंड को डिजिटल डाटा में तब्दील करने की जरुरत को समाप्त कर रिसचर्स ने लगभग न के बराबर पॉवर से चलने वाले डिवाइस को बनाने में सफलता प्राप्त कर ली है. इससे मोबाइल फोन की बुनियादी उपयोग कोल व एसएमएस करने की जरुरतें पूरी होती हैं. रिसचर्स इस नये मोबाइल फोन से स्कइप काॅल्स भी करके दिखाया है. एक रिसचर याम गोलाकोटा के अनुसार, हमने जीरो पावर से संचालित होने वाला पहला मोबाइल फोन बनाने में सफलता प्राप्त कर ली है. उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाले कुछ समय में आम उपभोक्ता को बैटरी फ्री मोबाइल फोन उपलब्ध हो.
# batteryfreephone.cs.washington.edu
Saturday, July 8, 2017
आज मेरा गांव है. घर है. पता नहीं कल होगा या नहीं...
आज मेरा गांव है. घर है. पता नहीं कल होगा या नहीं...
'भरल - भरल छलै बाग बगैचा, सोना कटोरा खेत, देख - देख मोरा हिया फटैया, सगरो पानी गांव ...'. बारिश की फुहारों के बीच सहरसा से सुपौल जाने वाली सड़क पर कार फर्राटा भर रही थी. और 55 साल के ड्राइवर अनवर इस लोक गीत के जरिए हाल ए कोसी बयां कर रहे थे. 'यहां के लोग कभी किसी से मांगते नहीं थे. लेकिन अब लोग सौ - दो सौ के लिए तरसते हैं.' अनवर सुपौल से 10 किमी की दूरी पर दुबियाही पंचायत के बेगमगंज के रहने वाले हैं. सुपौल पहुंचने के बाद कोसी महासेतु बाइपास रोड़ होते हुए जैसे ही कोसी तटबंध सड़क पर पंहुचा, तो नजारा देख अनवर की बातें हकीकत में तब्दील होती नजर आने लगी. लोग अपना बोरिया - बिस्तर गठरी बांधे माथे पर लादे तटबंध की ओर आते दिखे. वहीं रुक गया. अनवर ने बताया, तटबंध के अंदर पानी बढने के कारण लोग अपने - अपने घरों को छोड़ कर आ रहे हैं. लोगों की एक टोली घेर लेती है. गुस्से में पूछते हैं, किस विभाग से आये हैं. पहले एसडीओ को बुलाइये. तब कुछ आगे होगा. लोग सरकार द्वारा नाव व अन्य राहत न उपलब्ध कराये जाने से नाराज हैं. खैर, काफी मान - मुनव्वल के बाद वे लोग माने कि मैं कोई सरकारी अधिकारी नहीं हूं. उन्हीें में से एक रामू मुखिया बताते हैं, 'सबसे ज्यादा परेशानी चारा नहीं मिलने के कारण पशुओं को हो रही है. नाव के सहारे परिजनों व पशुओं को ऊंचे स्थान पर ला रहे हैं. मौसमी सब फसल बर्बाद हो गया.' सरकारी फाइलों में बाढ की अवधि 15 जून से 15 अक्तूबर तक निर्धारित है. यानी साल के चार महीने कोसी नदी से प्रभावित लोग शरणार्थी की जिंदगी जीने पर विवश हैं. एक महिला शीला पासवान रुंधे गले से गांव का हाल बताती हैं, 'खाना त जैसे - तैसे ईंटा थकियाइ के उपर चौकी पर बना लेते थे, लेकिन पखाना पेशाब ...मत पूछू. शीला की बातों से हर घर शौचालय मुहीम जेहन में कौंध गया. अब तटबंध के भीतर रह रहे लोगों के लिए शौचालय निर्माण कैसे हो. सरकार सोचे... लोगों ने बताया कि अभी भी कुछ लोग गांव में घरों की रखवाली के लिए रुके हैं. उनकी हालात के बारे में सोचने से भी डर लगता है. ऐसे हालात में जब कोई बीमार पड़ जाता है, तो आफत कई गुनी बढ जाती है. कोसी की बदलती धारा से लोग खासे चिंतित नजर आते हैं. अनवरुल बड़े मायूसी से कहते हैं, आज मेरा गांव है. घर है. पता नहीं कल होगा या नहीं. सब अनिश्चित है. रोजी-रोजगार नहीं है. लगातार सियान लईका सब बाहर दिल्ली, गुजरात, पंजाब...पलायन करने पर मजबूर हैं.' कोसी सेवा सदन के राजेंद्र झा बताते हैं, जब कोसी तटबंध नहीं था, तब दो-तीन दिन से ज्यादा बाढ नहीं रहता था. ना ही जल जमाव की समस्या. बेहतर फसल पैदावार से लोग खुशहाल थे. इलाके के लोगों के जीवीकोपार्जन का मुख्य स्रोत खेती ही है, जिसे तटबंध के भीतर करने को मजबूर हैं. मैने लोगों से पूछा कि जब साल के चार महीने शरणार्थी के तौर पर जिंदगी बसर करनी पड़ती है. उसके बाद भी जल जमाव की स्थिति रहती है. तो ऐसी दुर्रह जिंदगी से बेहतर है कहीं और घर बसा लिया जाये. कई लोग एक साथ बोल उठे, आप अपना घर, गांव, लोग, समाज छोड़ सकते हैं.... मेरे पास कोई जवाब नहीं था.#kosi #flood
Thursday, July 6, 2017
नन्ही परी...
नन्ही परी...
वह मेरे मुस्कुराने की वजह बन गयी थी. अहले सुबह नींद से जागते ही. पिछले एक महीने से सुबह की चाय की चुस्कियों के साथ उसे निहारने का आनंद...शब्दों में कैसे बयां करूं? वह किसी परी से कम नहीं. नन्ही परी. वह अपने घर के अहाते में खिलखिलाती खेलती. और जितनी जल्दी कभी रुठती तो उतनी ही जल्दी मान जाती. वह अपने पिता के साथ कितनी खुश थी. इस दौरान कई बार हम दोनों की नजरें मिली. पहले पहल मैं मुस्कुराता, लेकिन वह ऐसा दर्शाती जैसे मानो उसने मुझे देखा ही ना हो. लेकिन चंद दिनों बाद वह भी देख कर मुस्कुराने लगी. यह सिलसिला महीना दिन चला. उसके बाद मै गर्मी की छुट्टी में बाहर चला गया. लौटा, तो सुबह की वह रौनक गायब थी. सुबह की चाय भी फीकी लगने लगी. उस नन्ही परी का चेहरा उतरा हुआ देख मन कौतूहल से भर उठा. पडोस में रहने वाली आंटी ने कारण बताना शुरू किया. जैसे ही उन्होंने बोला कि उसके पिता सीआरपीएफ कश्मीर में... वैसे ही मेरे मन में आशंकाओं के बादल मंडराने लगे और मुंह से 'ओह' निकल गया. लेकिन अगले ही पल आंटी ने कहा फिक्र की कोई बात नहीं अरे, उसकी छुट्टियां समाप्त हो गयी थी. 'आह', सकून मिला. अब मैं उस चार साल की नन्ही परी का दोस्त बन गया हूं. सुबह के उस आधे घंटे में वह न जाने कितनी बार अपने पापा को याद करती है. ऐसे नहीं पापा ऐसे खेलते हैं. अरे आप मुझे पापा की तरह नहीं खिलाते. आप बुद्धू हो...अंकल मेरे पापा कब आएंगे...ममा कहती है जल्द आजाएंगे...
सोचिए, देश में कितनी ऐसी नन्ही परी होंगी, जिनके पिता अब कभी वापस नहीं आयेंगे. वतन की हिफाजत करते हुए शहीद हो गये होंगे. शहीद सैनिकों के अबोध बच्चों पर क्या गुजरता होगा. मन व्यथित हो गया, अब आगे नहीं लिखा जा रहा...माफ किजिएगा
Wednesday, July 5, 2017
-------धर्म संबंधी पत्रकारिता का भी एक लेक्चर होना चाहिए...
***स्पेशलाइज़ड जर्नलिज़म***
चुनाव के दौरान हम पत्रकार भी अपने-अपने मताधिकार का प्रयोग करते हैं. मतदान में लोगों की भगीदारी बढे, इसके लिए जागरुकता अभियान में सहयोगी की भी भूमिका निभाते हैं. ऑपिनियन पोल और कितने ही सर्वे की कड़ी बनते हैं. पार्टियों को कवर करते हैं. ऐसे में हम भी कहीं न कहीं किसी न किसी पार्टी या उसके विचारधारा से प्रभावीत हुए बगैर नहीं रहते. हम में से कई पगरी, टोपी, तिलक, ब्रासलेट आदि धर्मिक संबंधी चीजें पहनते या लगाते हैं. हम भी भावनात्मक प्राणी हैं. क्योंकि हम कोई रोबोट नहीं हैं. व्यक्तिगत या जिस कंपनी या संगठन के लिए हम काम करते हैं, उसके भी अपनी पसंद व नापसंद होती हैं. लोकतंत्र में सभी की पसंद- नापसंद व विचारों को समान भाव से देखा जाना चाहिए. बगैर किसी पूर्वाग्रह के. शायद यह आदर्शवादी बात हो गयी. लेकिन आजकल हम खुद को पत्रकार कम जज ज्यादा समझ बैठे हैं (बड़े ओहदेदार या पोर्टेलिए). तभी तो हम सांप्रदायिक्ता व धर्मनिरपेक्षता की कसौटी पर हर दहशतगर्दी के वारदातों को परखने की कोशिश करते नजर आ रहे हैं. कई नये शब्द गढ डाले गये हैं. धर्म, नस्ल, जाति, समाज, समुदाय, क्षेत्र, खान- पान आदि को बेहतर तरीके से पेश करने के लिए थोड़ा विशेष अध्ययन कर लेने में गुरेज ही क्या है. खैर, तकनीक की भी इसमें बडी भूमिका हो गयी है. कुछ वैसा ही प्रचलन देखने को मिल रहा है, जैसे मानो युद्ध कवर करने वाला रिपोर्टर बैडमिंटन मैच का लाइव कर रहा होे. या एक पॉलिटिकल रिपोर्टर साइंस संबंधी खबर पर लाइव दे रहा हो. नतीजा कुछ भी हो सकता है, हास्यास्पद, बेवकूफानापन या विनाशक कुछ भी. माफ किजिएगा ! सोशल मीडिया में किसी भी खबर के तह में गये बगैर निराधार कानाफूसी या भीड मैसेज तंत्र के आधार पर अपना निष्कर्ष पेश करने का प्रचलन बढता जा रहा है. अधिकतर मामलों में ऐसा ही लगता है. खासकर, धर्म संप्रदाय आदि से जुडी खबरों में. ऐसी खबरें रजनीतिक व सत्ताधारी या विपक्ष के चश्मे से देखा जाने लगा है. कंपनी या संगठन के आदेश, ब्रेकिंग न्यूज व खुद को बुद्धिजीवी बताने की आपाधापी में खबरों की प्रमाणिकता जांचने और उसे मौलिक तौर पर पेश करना कहीं गुम हो गया है. मुनाफाखोरी व जीहजूरी, जल्द सोहरत, तरक्की व पगार बढ़वाने की भेड़चाल में हम शामिल हो गये हैं. यह अद्भुत दशा मीडिया के सामने बडी चुनौती है. शायद, एक विशेषज्ञ व निष्पक्ष निपक्ष रिपोर्टिंग ही इस दशा से हम सभी को उबार सकती है. इसलिए धर्म संबंधी पत्रकारिता का भी एक लेक्चर होना चाहिए..# संदर्भ- harmeet shah singh. 'why world urgently needs specialised journalism on religion.'
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