Tuesday, December 23, 2008

मुंबई हमले के बाद कठोर रूख का सच्चाई


मुंबई हमले के बाद आतंकवाद के प्रति कठोर रूख को अमलीजामा पहनाने के लिए संसद में दो बिल पास किया गया है. पहले बिल में राष्टीय सुरक्षा एजेंसी (एनआइए) को कानूनीजामा पहनाने की तैयारी है, तो दूसरे में इस एजेंसी को ताकत प्रदान की गयी है. अनलॉफुल (प्रीवेंशन) एिक्टविटी एक्ट को संशोधित कर इसे और अधिक सख्त बनाने की बात कही गयी है.
एनआइए
यह एजेंसी केंद्र सरकार के तहत होगी. इसके तहत अनुसूचित अपराधों की जांच के लिए इसके अफसरों को देशर में वही अधिकार होंगे, जो पुलिस अफसरों को मिले होते हैं.
राष्टीय जांच एजेंसी बिल में यह व्यवस्था की गई है कि राज्य सरकार की अनुमति के बिना ही यह अपना काम करेगी. जांच के लिए इस एजेंसी को किसी की अनुमति लेने की जरूरत नहÈ पड़ेगी. किसी ी घटना पर स्वत:स्फूर्त यह एजेंसी जांच का काम शुरू कर देगी.
एजेंसी अनुसूचित अपराधों की जांच करेगी, लेकिन केंद्र सरकार के पूर्व अनुमोदन पर जांच के लिए राज्य सरकार को ी सौंप सकेगी. राज्य सरकार जांच के लिए एजेंसी को पूरी मदद करेगी.
इस एजेंसी को आतंकवाद, आर्थिक अपराध, विस्फोटक पदार्थ जैसे मामलों की जांच के लिए सीधे हस्तक्षेप करने का अधिकार होगा.
एनआइए के सब इंस्पेक्टर रैंक से ऊपर के अधिकारी को जांच के लिए स्पेशल पावर दी जायेगी.
एनआइए के अपने स्पेशल वकील और अदालतें होंगी, जहां आतंकवाद से संबंधित मामलों की सुनवाई होगी.
इस जांच एजेंसी के कार्यक्षेत्र के लिए अपराधों को अधिसूचित किया जायेगा. इसके बाद जांच एजेंसी को इन अपराधों की जांच करने का अधिकार रहेगा.
एनआइए के अंतगर्त आनेवाले अपराधों की सूची में शामिल किसी अपराध की सीधी सूचना एजेंसी को देनी होगी.
एजेंसी एटोमिक एनजÊ एक्ट- 1962, स्पेशिफिक एक्अस फॉर इंवेस्टिगेशन-यूएनपीए, एंटी हाइजैÇकग एक्ट -1982, सार्क एक्ट-1993, वैपंस ऑफ मास डिस्टक्शन एंड देयर डिलिवरी सिस्टम एक्ट-2005 के तहत काम करेगी.
अनलॉफुल (प्रीवेंशन) एिक्टविटी एक्ट में संशोधन
ो और अधिक मजबूती प्रदान करने के लिए अनलॉफुल (प्रीवेंशन) एक्टिविटी संशोधन बिल ी संसद द्वारा पास किया गया है.
संदिग्ध आरोपियों को पुलिस तीन महीने तक के लिए हिरासत में रख सकती है. 90 दिनों के बाद जमानत न देने की पुख्ता वजह या सबूत पेश करने होंगे.
आतंकवादी घटनाअों के आरोपियों की सुनवाई के लिए अलग से स्पेशल अदालत की व्यवस्था होगी. उच्च न्यायालय को इसके लिए अधिकार प्रदान किया गया है. स्पेशल अदालत के न्यायाधीश सेशन जज या अतिरिक्त सेशन जज होंगे, जो हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश द्वारा नियुक्त किये जायेंगे. लोक अियोजकों की नियुक्ति केंद्रीय सरकार द्वारा की जायेगी.
इस अदालत में सुनाई गई सजा के एक माह के अंदर ऊपरी अदालत में अपील करने की मोहलत आरोपी को दी गयी है.
आतंकवादियों को आर्थिक मदद पहुंचाने वाले लोगों के लिए ी सजा का प्रावधान किया गया है. इसके लिए उन्हें पांच साल से लेकर आजीवन कारावास की सजा और जुर्माना तक देना पड़ सकता है. इसके अलावा आतंकवादी कारZवाई करने या इसका षडयंत्र करने पर ी ऐसी ही सजा का प्रावधान है. अगर आरोपी विस्फोटक पदार्थ रखते हुए या इसे आतंकियों को पहुंचाने का काम करते हैं, तब ी उन्हें ऐसी ही सजा ुगतनी पड़ सकती है.
विदेशी आतंकवादियों को जमानत न देने का ी प्रस्ताव है.६ अब नक्सलवाद ी आतंकवाद की श्रेणी में.

एजेंसी की अर्थव्यवस्था
एनआइए के वित्तीय व्यवस्था गृह मंत्रालय द्वारा की जायेगी. फिलहाल नये एजेंसी के गठन और इसके परिचालन के लिये लागत व व्यय का अंदाजा लगाया जाना बंाकी है. शरूआती लागत के तौर पर 2 करोड़ रुपये का और व्यय के लिये 3 करोड़ रुपये का प्रावधन किया गया है. स्पेशल कोर्ट के गठन के लिये 1 करोड़ और लोक अियोजक के नियुक्ति के लिये 50 लाख रुपये का प्रावधान किया गया है. आने वाले समय में धन राशि की जरूरत के हिसाब से पूर्ति करने की बात कही गयी है.
एजेंसी पर ी रहेगी नजर
नये एजेंसी और कानून के किसी ी दुरूपयोग पर एक स्वतंत्र प्रधिकरण की निगरानी होगी. अदालत में जांच अधिकारी के समक्ष दिये गये बयान को चुनौती दी जा सकती है. 90 दिनों के बाद जमानत न देने की पुख्ता वजह या सबूत पेश करने होंगे.

सी नागरिकों पर लागू
इस बिल के प्रावधान ारत के सी नागरिकों पर लागू होगा, साथ ही विदेशों में रहने वाले ारतीयों पर ी. इतना ही नहÈ ारत सरकार द्वारा पंजी—त हवाई व पानी के जहाजों पर तैनात लोगों पर ी बिल के प्रावधान लागू होंगे. मामले की सुनवाई इन कैमरा हो सकता है, अगर स्पेशल कोर्ट, गवाह या लोक अियोजक इसकी जरूरत समझें.

मुंबई हमले के बाद आम लोगों में उपजे असंतोष के कारण सरकार को नेशनल इंटेलीजेंस एजेंसी का गठन करना पड़ा. लेकिन इस एजेंसी से आतंकवाद की घटनायें कम हो जायेंगी, यह नहÈ कहा जा सकता है. यह एजेंसी सिर्फ आतंकी घटनाओं की जांच करने और वििé खुफिया एजेंसियों के बीच समन्वय का काम करेगी. देश में कागज पर काफी अच्छी नीतियां बनती है, लेकिन उसका सही तरीके से क्रियान्वयन नहÈ हो पाता है. जांच के लिए सीबीआइ जैसी एजेंसी पहले ही से मौजूद है, जो राजीतिक इस्तेमाल का औजार बन कर रह गयी है. एनआइए, सीबीआइ से केवल इस मामले में अलग है कि इसे किसी घटना की जांच के लिए किसी मंजूरी की जरूरत नहÈ पड़ेगी. इसमें पोटा के प्रावधानों को लागू नहÈ किया गया है. पोटा कानून में टेलीफोन इंटरसेप्सन, पुलिस अधिकारियों के समक्ष दिये गये बयान को साक्ष्य के तौर पर मानने और अियुक्त को स्वयं ही अपनी बेगुनाही साबित करने जैसे सख्त प्रावधान शामिल थे. आतंकवाद से निपटने के लिए सख्त कानून होने ही चाहिये.
आतंकवाद ही नहÈ अन्य अपराधों को रोकने के लिए इंटेलीजेंस और जांच की अलग एजेंसी होनी चाहिए. जिस प्रकार आतंकवाद और अपराध का स्वरूप बदल रहा है, उसे देखते हुए सुरक्षा एजेंसियों खासकर पुलिस बल की टेÇनग को आधुनिक बनाने की आवश्यकता है. पुलिस को आधुनिक टेÇनग देने की बात काफी पुरानी है और हर आतंकी वारदात के बाद यह बात सामने आती है कि खुफिया एजेंसियों में काफी पद रिक्त है. ऐसे में सरकार इस ओर कदम उठाने की बजाय एक नयी एजेंसी बनाकर इस समस्या से निजात नहÈ पा सकेगी. काफी समय पहले आइबी के अधीन ज्वाइंट टेरेरिज्म टास्क फोर्स का गठन किया गया था. इस टास्क फोर्स का काम ी वििé खुफिया एजेंसियों के बीच समन्वय बनाना था, जो आज तक पूरा नहÈ हो पाया है.एनआइए को अगर सफल होना है, तो उसे एक सेंटल डाटाबेस तैयार करना होगा साथ ही इसे राजनीतिक दखलंदाजी से ी मुक्त रखना होगा. वरना यह ी अन्य एजेंसियों की तरह ही अक्षम साबित होगी. लगातार हो रही आतंकी घटनाओं के बाद आखिकार सरकार की नÈद टूटी और उसने आनन-फानन में नेशनल इंटेलीजेंस एजेंसी का गठन कर दिया. सरकार द्वारा उठाया गया कदम स्वागत योग्य है, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि यह एजेंसी कैसे और किस तरीके से काम करेगी. सरकार ने इस एजेंसी का गठन चुनावों को ध्यान में रखकर किया है. सबसे पहले इसका ढांचा कैसा होगा, केंद्र और राज्य खुफिया के बीच कैसे तालमेल बनाया जायेगा, इसमें कौन लोग शामिल होंगे और यह राष्टीय सुरक्षा सलाहकार या गृह मंत्रालय के अधीन काम करेगा, ये बातें स्पष्ट करनी चाहिए. इन सी बातों पर विचार कर इसका गठन करना सही होता. यह सही है कि देश में जांच के लिए कई एजेंसियां मौजूद है, लेकिन आतंकी घटनायें राज्यों का ही नहÈ, बल्कि पूरे देश का विषय है. आतंकवादियों के तार दूसरे राज्यों से ही नहÈ बल्कि अन्य देशों से ी जुड़े होते हैं, ऐसे में वििé एजेंसियों के जांच में शामिल होने से बाधा उत्पé होती है. मुंबई हमले के तार रामपुर सीआरपीएफ कैंप के आरोपी से जुड़े पाये गये हैं. ऐसे मामलों में केंद्रीय एजेंसी का महत्व काफी बढ़ जाता है. आतंकी घटनाओं को रोकने के लिये सरकार को आंतरिक सुरक्षा के ढांचे को मजबूत बनाना होगा.
सबसे पहले पुलिस बल और आइबी को राजनीति से मुक्त करना होगा. आइबी का उपयोग खुफिया जानकारी एकत्र करने के बजाय राजनीतिक गतिविधियों पर नजर रखने के लिए किया जाता है. इसे बदलने की जरूरत है. आतंकी घटनाओं के कारण आम लोगों में गुस्सा है. इस गुस्से की वजह से ही सही पुलिस सुधार की वषोंZ पुरानी मांग पर ी अमल होने की उम्मीद बंधी है. आतंकवादियों से निपटने के लिए सुरक्षा एजेंसियों की चुस्ती के साथ ही कठोर कानून ी होने जरूरी है. सरकार ने अनलॉफुल एिक्टविटी प्रीवेंसन एक्ट में कुछ बदलाव किये हैं, लेकिन कानून पोटा प्रावधानों की तरह सख्त नहÈ है. आतंकियों के मन में य पैदा किये बिना, उनसे नहÈ निपटा जा सकता है. वर्तमान सरकार राजनीतिक वजहों से पोटा के प्रावधानों को लागू नहÈ करना चाहती है. कड़े कानून एंटी डिटरेंस का काम करते है. बाहरी खुफिया एजेंसी रॉ को ी दुरूस्त बनाने की जरूरत है. आतंकवादियों को यह संदेश देने की जरूरत है कि अगर वे आतंकी घटना को अंजाम देंगे, तो पकड़े जाने पर उन्हे सख्त सजा दी जायेगी और वे जहां से ी आयेंगे वहां जाकर ी ारतीय सुरक्षा एजेंसी कारZवाई कर सकती है. राजनेताओं को बयानबाजी और कोरे आश्वासन बंद कर सख्त कारZवाई करनी ही होगी. आंतरिक और बाह्य सुरक्षा एजेंसियों को बेहतर और आतंकियों के प्रति जीरो टोलरेंस की नीति अपना कर इस जंग से पार पाया जा सकता है.

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