जरनैल सिंह ने गृह मंत्री पी चिदम्बरम पर सांकेतिक रूप से जुटा फेका । यह मामला इराक के पत्रकार जैदी से बिल्कुल भिन्न है । जैदी सांकेतिक रूप से नही बल्कि चोट पहुचने के उदेश्य से जुटा फेंका था । अगर बुश को जुटा लगता तो उन्हें चोट जरुर पहुचती । यह अलग बात है की जनरैल सिंह के इस बर्ताव को भी बिल्कुल जायज नही बताया जा सकता । सोच के देंखे की उनके सवाल को चिदम्बरम क्यो aन्देखी कर रहे थे । साफ है उनके पास जनरैल सिंह के सवाल का जवाब नही था । पत्रकार होने से पहले कोई आदमी एल इन्सान है । इन्सान की कुछ भावनाएं होती हैं । सीखो के साथ १९८४ में क्या कुछ नही हुआ । क्या उस घटना के लिए कोई जिम्मेवार नही है । क्या कोई असमान से टपक कर सीखो को मौत के घाट उतर कर चला गया । जब राजनेता जो मंत्री पड़ पर असं हैं , उन्हें सिर्फ़ वोट की राजनीतक करनी चाहिए । इसमे में भी कोई दो राइ नही की पी चिदम्बरम आज की तारीख में अन्य राजनेताओ में शायद सबसे अच्छे हैं । वे देश के गृह मंत्री हैं । इसलिए उन्हें सेबीअई के कार्यो कलापों पर भी ध्यान देना चाहिए । अगर उनका सीबीआई ग़लत करेगा तो वे अच्छे कैसे बने रह सकते हैं ।
mआने या न माने अगर चुनाव का समय नही होतो तो जनरैल सिंह को कभी इतनी आसानी से नही छोरा जाता । आज के समय में हर कोई अपनी जज्बातों पर कबू नही रख प् रहा है । रोड पर हलकी सी टक्कर पर जन लेने पर लोग उतारू हो जाते हैं । जनरैल सिंह को भी अपनी जज्बातों पर काबू रखना चाहिए था । खैर ऐसी बातें करना असं है , उसपर अमल करना कठिन है । यहाँ यह सवाल भाई खरा करना लाजिमी है की हो सकता है की जनरैल सिंह ने चुनाव को ध्यान में रख कर ऐसा कम क्या हो । किसी राजनीती मोहरा के सीकर हुए हों । इनसब के बाबजूद जो लोग उन्हें जानते है वे उनकी अछइयो की bअत करतें हैं । जनरैल सिंह ने ऐसा क्यो कियालेकिन इतना तो sअच् है की यह सब भावनावो का उद्गम था .