बिहार में प्रलयंकारी बाढ़ से लाखो लोग बेघर और दाने दाने के लिए मोहताज हैं। आखिर यह दिन क्यों देखना पर रहा है। खैर अभी इसकी छानबीन करने का सही वक़्त नहीं है। फ़िलहाल प्रभावित लोगो को समुचित राहत कैसे पहुचें इस बात की फ़िक्र करने की जरुरत है। राजनेता एक दुसरे पर आरोप लगा कर न जाने क्यों परभावित लोगो की दुखों को बढ़ाना चाहते हैं। अफसर पहले से क्या कर रहे थे अभी भी वे प्रभावित इलाकों में जाने से डर रहे हैं। दुःख की बेला में दुसरे राज्यों से माफिक मदद प्रदान नही क्या जा रहा है। यह बात मै मनसे के राज ठाकरे से प्रेरणा लेकर नही लिख रहा हूँ बल्कि मेरे अन्दर का मानव बोल रहा है। क्या बिहारियों के प्रति संवेदना नही रखनी चाहिए। २५ लाख से जायदा आदमी दाने दाने को मोहताज हैं। एक गरीब राज्य को प्रकृति भी डांस रही है। मीडिया अपना रोल निभा तो रही है। लुट पात से जायदा क्या दूर के इलाकों से रिपोर्टिंग नही करनी चाहिए । एक दो चैनल ने कबीले तारीफ कम किया है। उन्हें साधुवाद देना चाहिए।
चलिए त्रासदी में तंत्र की बदहाली पर गौर फरमाए। नीतिश और उनके मंत्रिगन सहित प्रसाशन सिर्फ़ दिक्खावे के लिए दुःख का भावः प्रकट कर रहे हैं या वास्तव ऐसा है। अगर वास्तव में ऐसा है तो वे सभी प्रभावित इलाकों में केम्प क्यो नही कर रहे। शयद ऐसा न करना उनकी मन में एक डर के कारन भी हो सकता है। जनता सब जानती है की कसूर किसका है। अगर वे उनिलकों में जायेंगे तो सायद जनता हिसाब चुकता कर दे। नीतिश कहते है की केन्द्र मदद नही क्र रहा । केन्द्र कहता है राज्य सरकार वक्त पर नही जगी फ़िर भी १००० करोर रूपये दान में दे रहे हैं। आखिर इन सब के बिच जनता का क्या कसूर। सायद यही है की उसने ऐसे लोगो को अपना प्रतिनिधि बनाया है। बाढ़ आने से पहले और बाद में सभी अपनी तिजोरी भरने में लगे हैं। बिहार का दर्द सिर्फ़ बिहार वाले ही जानते हैं। त्रासदी का दूसरा पछ भी देखिये लाखो लोग तो पहले ही बिहार छोड़कर दुसरे राज्यों में ठिकाना बनाये बैठे हैं। यह सवाल है उन हुकुमरानों से जो सत्ता के गल्यारो में बैठे किसी जुगत में लगे रहते हैं। दुसरे राज्यों में रोजी रोटी कम रहे लोग कौन से बाढ़ प्रभावित लोग हैं। इनकी सुधि कब तक ली जायेगी।
बाढ़ प्रभावित लोगो को जो तकलीफ हो रही है उसे दूर बैठे सिर्फ़ अनुमान लगाया जा सकता है.